Friday, February 10, 2017

विमुद्रीकरण के दौर के बाद, अब आ रही है गुलाबी रंगो वाली होली


 



8 नवम्बर 2016 की रात्रि को हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी का आम जनता के नाम एक संबोधन हुआ। शुरू में तो सभी को यह लगा की हो सकता है हमारी सरकार कोई संदेश देना चाहती होगी। सभी समाचार चैनलों में ये प्रसारण लाइव चलने लगा। सभी लोग पीएम साहब का संदेश ध्यान से सुन रहे थे। अचानक ही उन्होने ये संदेश दिया कि 9 नवम्बर की प्रारंभिक पहर के साथ ही 500रू और 1000रू के नोटों का चलन रद्द कर दिया जायेगा। ये खबर जैसे ही आमजनो तक पहुची जैसे अफरातफरी मच गई। जिनके पास 500 और हजार का नोट था वो या तो पेट्रोल पम्प की ओ भागे या फिर सोने चांदी की दुकान की ओर भारी भीड के रूप में चल निकले। यह नोटबंदी का दौर अपने प्रारंभिक बिन्दु ही था। अभी तो और भी कई क्रम और सोपानो का दौर था। अगले आने वाले दो दिनों तक तो बैकों में छूट्टी था। लोगो में हडबडी का माहौल शांत होने का नाम नही ले रहा था। विभिन्न राजनितिक दलों ने विरोध किया। कई दलों ने तो मोर्चा भी खोल लिया की इस नोटबंदी को रद्द किया जाए। वही कई दलों ने इस नोटबंदी के दौर में सरकार को समर्थन दिया।
 

           एक प्रकार से सोचा जाये तो दुनिया के शिर्ष अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक हमारा भारतवर्ष लगभग सवा सौ करोड हिन्दुस्तानियों के इस मुल्क की 75प्रतिशत से भी ज्यादा की मुद्रा को सामान्य चलन से बाहर करना कितना सहासिक कदम रहा, और ये भी सराहनीय रहा कि पूरे भारतवर्ष के आमजनों नोटबंदी में समर्थन दिया । लोगों 50दिनों तक हताहत हुए। लोगों को बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी कतार में लगाकर नोट बदली कराने में लगे रहे। समुचे भारतवर्ष के कई इलाकों से मीडिया लगातार प्रसारण कर लोगों की परेशानी और विमुद्रीकरण में सहयोग की भावना का जो कवरेज देखने को मिला वो अब तक के सबसे श्रेष्ठ जिवंत चित्रण में से एक है। लोगों के इस तरह से भ्रष्टाचार, कालाधन और जाली मुद्रा के खेल में बैठे नकाबपोस लोगों को परास्त करने के लिये 50-60 दिनों के कष्ट को हसते-हसते स्वीकार कर लिया।
 

           चर्चा करते है कि क्या ये सही वक्त था विमुद्रीकरण का या नहीं विमुद्रीकरण के दौर को कई लोगों ने ये भी तर्क दिया की सरकार ने अचानक ही ये फैसला लेकर लोगों को वित्तीय संकट में डाल दिया है। लेकिन वास्तव में सोचा जाये तो ये फैसला दिवाली के पर्व के बाद ऐसे समय पर लिया गया जिससे कि जब बाजार का हाल लगभग सामान्य हो जाता है। कहने का मतलब ये है कि इस समय बडे-बडे सेक्टर में भी सामान्य हालत पर व्यापार का ग्राफ चलता है वहीं जो गरीब लोगों के लिये दिवाली के बाद सामान्य तौर पर कोई बडी खरिदारी का वक्त नहीं होता है। वही मिडिल क्लास लोगों के लिये भी ये नवम्बर-दिसम्बर का माह खरिदारी विशेष नहीं रहता है। तो ये समय विमुद्रीकरण के लिहाज से कहीं ना कहीं सही समय रहा।
 

           जनवरी के साथ ही साथ कई बैकिंग के नियमों में बदलाव आते रहे। विमुद्रीकरण के बाद लगभग अब जनजीवन और अर्थव्यवस्था अब पटरी पर आ गया है। वही फरवरी में नोट निकासी की सीमा भी खत्म हो ही गया । आने वाले माह में होली का पर्व है। होली भारतवर्ष में उत्साह और उमंग का पर्व है। इस साल का पर्व इसलिए भी खास है कि इस वर्ष मुद्रा के चलन में कई रंगों के नोटों का समावेश हुआ। गांव-गांव तक दो हजार के नये नोट अब लोगों तक पहुच रहे है। बाजार में इसका चलन भी है। ये कयाश भी लगाये जा रहे थे कि दो हजार के नोट को क्यो बाजार में उतारा गया। इसकी उपयोगिता पर भी कई विद्वानों ने प्रश्न खडे किये। लेकिन ये गुलाबी रंग का अनुठा नोट अब मानो आम हो चला है। जैसे वो गुलाबी रंग का नोट कह रहा हो कि विमुद्रीकरण के दौर के बाद, अब गुलाबी रंगों की होली आई रे।।

                                                                 आपका
                                                           पुखराज यादव