Friday, February 10, 2017

ABCD- खबर वही, बस चश्मा नया है......



कुछ सालो पहले की ही बात है गांवों में पहले समचार की सुचना का साधन केवल प्रींट मीडिया ही था। अच्छे से याद ही गांवों में कुछ चंद लोग ही थे जिनके घर अखबार आया करता था। लोग कम पढे लिखे थे। तो कम ही लोग अखबार पढ पाते थे। जो पढ पाते उनके पास जैसे जानकारी मागने वालों का मजमा लगा रहता ही था। कोई पुछता की देश की सरकार क्या कर रही है? हमारे हीतों के लिए तो कोई पुछता की ग्रहों की चाल के बारे में क्या लिखा है? कोई बरसात, कोई मुवाबजा, कोई विदेश की बाते न जाने क्या क्या पुछते रहते। धीरे-धीरे रेडियों का आगमन शहरों से उठकर गांवो की ओर हो चला। सुबह की पहली किरण के साथ जैसे ही रेडियों चालू करते एक आवाज आती कि-‘‘नमस्कार ये आकाशवाणी का रायपुर केन्द्र है। आप हमे इस फ्रिकविंशी से सुन रहे है।’’ जैसे ही यह अभीवादन समाप्त होता की एक समाचार का छोटा बुलेटिन चलता । सुबह के वक्त की ताजा सुर्खियां तो जैसे जिसके पास रेडियो था। उसके नाम माना जाता था। लोग सुबह की अलगी बुलेटिन के पहले उसको बार-बार पुछते की क्या खबरें थी। कौन प्रस्तुता था? क्या मुख्य सुर्खियां है? इत्यादि। ये दौर भी बहुत दिनो तक चला। एक ऐसा भी दौर आया जब होटलो, सराय इत्यादि में लोगों को आकर्षण के लिये भी संचालक रेडियो का प्रबंध करता था। क्रिकेट की कमेन्ट्री भी ला जवाब तरिके से लोग संुनते। जिस-दिन खेलों का सीधा प्रसारण होता उस दिन तो जैसे बैरी भी सब बैर भुल कर अपने हो जाते थे। ये दौर लगभग शहरों और गांव दोनो में आम था।
         धीरे-धीरे हम अब डिजिटल क्रांति के ओर आगे बढ रहे थे। लोगों के पहुच से टेलीविजन का मुल्य ज्यादा नहीं रहा। फिर भी ये सामान्य वर्ग के लोगों में एक प्रकार से आकर्षण का विषय था। टेलीविजन को जैसे मानों मुल्य की सीमा थोडी कम हुई लोगों तक ये साधन भी पहुच ही गया। उस समय टीवी पर केवल एक ही चैनल आता था। वो था दुरदर्शन 1 । इस चैनल ने जैसे की क्रांति ही ला दी खबरों को आमलोगों तक पहुचाने का एक नजरिया ही बदल दिया। इसमें प्रस्तोता न केवल समाचार पाठन करते अपितू साथ ही संबंधित समाचार का चलचित्रांकन होता था। खबरों जैसे देखने वालो का एक तबका खडा हो गया। वे रोज नित प्रातः , दोपहर और शाम की खबरों के नियमित दर्शक बन गये। ऐसे ही समय में जब टेलीविजन का आगमन गांवों में हुआ। जैसे मानों पुरे गांव को एक सुत्र में बांधने का प्रयास दुरदर्शन ने किया। शाम होते ही अपने-अपने काम से थके हारे लोगों का जमघट जिनके यहां टीवी था वहां लगता। पहले कि टीवी सेट का आपको अवलोकन जरूर याद होगा वो सटर से बंद टेलीविजन कुछ यादे जरूर ताजा होने को  स्मृति पटल पर जरूर आपके आमादा होगा। खैर बात करते है गांवों में खबरों को देखने की जैसे ही शाम होेता लोग टेलीविजन के सामने बैठते और ध्यान से खबरों को देखते। उस समय का माहौल मानो जैसे किसी आपातकाल की भांति शांत रहता। खबरों की समाप्ति के साथ ही चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता था। उसी समय डीडी मेट्रो नामक एक चैनल की भी प्रस्तुती डीडी वन के साथ होने लगा। हांलाकि टीवी सेट ब्लेक एण्ड वाइट था लेकिन जैसे की मनोरंजन के चैनलों का आगमन हुआ। लोगों की जिन्दगी जरूर कलर होती गई। वाह क्या दिन थे वो भी रोज शाम को रामायण. अलिफ लैला, जय हनुमान, उडान जैसी धारावहिक मुख्य केन्द्र में रहते तो वही बच्चों का पसंदीदा दिन रविवार शक्तिमान , आर्यमान और जुनियर जी जैसे कार्यक्रमों खास होता था।
     इसी दौर में केबल टीवी जन्म और साथ ही रंगीन टेलिविजन की धमाकेधार आगाज हुआ। इसी के साथ ही कई ऐसे टीवी चैनल्स का आगमन हुआ जो केवल दिन भर खबरें ही चलाती थी। धीरे-धीरे इन चैनलों की ओर दर्शकों का रूझान बढा। वो क्रेज आज भी बरकरार है। सच में खबरें तो नहीं बदले, न ही खबर पढने की प्रथा हा इतना जरूर है कि अंदाज, तेवर और जिवंतचित्रण का कलेवर नित हो रहा है।
                                                        आपका

                                                   पुखराज यादव