कागज की कस्ती हो
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बचपने की बस्ती
हो |
दुआ, दुआ देना दोस्त,
शहर सा न कोई बस्ती
हो|
नाम, नाम का कहां
पहचान शहर में,
नम्बर से नहीं,
नाम से बसी बस्ती हो |
मै रोऊं तो गम बाटे,
बाटे पीर मेरी,
हमदर्दों से भरी
ऐसी बस्ती हो |
चहकती जहां खुशियां
हों,
महकती जहां अपनों
से धरती हो |
वो, वो आकर भेष
बदले,
रहने को यहां उसकी
भी मर्जी हो |
मै तो बस मै हू
"पुक्कू"
उसकी रजा से सजी
अपनी बस्ती हो||