Tuesday, February 28, 2017

बचपने की बस्ती हो






कागज की कस्ती हो |
बचपने की बस्ती हो |

दुआ, दुआ देना दोस्त,
शहर सा न कोई बस्ती हो|

नाम, नाम का कहां पहचान शहर में,
नम्बर से नहीं, नाम से बसी बस्ती हो |

मै रोऊं तो गम बाटे, बाटे पीर मेरी,
हमदर्दों से भरी ऐसी बस्ती हो |

चहकती जहां खुशियां हों,
महकती जहां अपनों से धरती हो |

वो, वो आकर भेष बदले,
रहने को यहां उसकी भी मर्जी हो |

मै तो बस मै हू "पुक्कू"
उसकी रजा से सजी अपनी बस्ती हो||