तन्हा हु दर्द में,आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।
तन्हा हु दर्द में,
आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।
दर्द तो तेरे जाने पर नहीं,
तेरी दर्द तेरी यादे देती है।
रहु तन्हां तो रूला देती है।
षुश्क लब भी भीग जाती है
नाम लेके तेरी।
किससे कहु?,
तन्हा हु दर्द में,
आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।
पता तो तुझे भी है,
मेरे दिवानेपन का,
हर वक्त सहारा लेता था,
कन्धे का तेरा।
अब तो अलम है ये,
की आखे थक गई,
लहू इष्क का उडेलकर,
कहा ढूंढू वो सहारा,
कि कह सकू।
तन्हा हु दर्द में,
आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।
सिलवटें मेरे बिस्तर की,
आज भी वैसी ही है!
जैसे छोड गई थी तुम।
उस दिन से जैसे निन्द,
बगावत कर गई।
देखता हू कभी आइने में,
सवाल कई उभरते है।
आखिर क्यो तन्हा कर गई
किससे कहू?
तन्हा हु दर्द में,
आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।
दर्द के दरिया से उफान,
करने कि गुहार करता हू।
तैर जाने को करता हू,
अंजाम कई।।
चली तो सही गई पर,
जाती नही यादे ये किसे कहु?
तन्हा हु दर्द में,
आ सिने से तेरे लिपटकर रोलू।।