वाद-वाद ये कैसा विवाद...न तेरा ना मेरा,ये है आतंकवाद
वाद-वाद ये कैसा विवाद...
न तेरा ना मेरा,
ये है आतंकवाद।।
अपना ना पराया,
सब पर करता है आघात,
वाद -वाद ये कैसा विवाद...
न तेरा ना मेरा,
ये है आतंक वाद।।
उरी हो या पठान कोट,
हो पेषावर या ब्रसेल्स की बात,
मौत के खुनी रंग दिखता।
ये बेसर्म है आतंकवाद,
वाद-वाद ये कैसा विवाद...
न तेरा ना मेरा,
ये है आतंकवाद।।
उम्र ना देखे ना उम्रदराज,
ना देखे जाति ना धर्मवाद,
बाट रहा है समाज को,
दर्द देके कर रहा सब बरबाद।
नकाब के आड में पनप रहा है,
ये आतंकवाद।
वाद-वाद ये कैसा विवाद,
ना तेरा ना मेरा,
ये है आतंक वाद।।
ये कैसी खेती पनपात...
इसके पक्षधर,
जो दानव है करता ,
इसकी संरक्षण की बात।
खुद को बेचकर क्या दिखना है उसे
आतंकवाद को समर्पण वाद....
वाद-वाद ये कैसा विवाद,
न तेरा ना मेरा,
ये है आतंकवाद।।
कुछ सरहद के उस पार,
कुछ सरहद के इस पार,
देते है आतंक का साथ।
कब समझोगें तुम,
चंद कागज के रूपयों से,
नही बेचा जाता राश्ट्रवाद।
वाद-वाद ये कैसा विवाद
न तेरा ना मेरा,
ये है आतंक वाद।।