राउत नाचा
राउत नाचा का नाम लेते ही आपके मन में यह विचार आता है कि यादुवंश के लोगों के द्वारा दिवाली के अवसर पर हाथ में डंडा लेकर कुछ दोहे और झुमते नाचते गांव के लोगों के मनोरंजन का एक साधन मात्र समझते है। वही राउत नाचा के उल्लेख में भी कई कलमकार ज्यादा कुछ ना लिखकर सिर्फ ये कह कर किनारा करते नजर आते है कि यह एक स्थानिय नाच या लोक नाच है। परंतू क्या आपकों राउत नाच का वास्तविक उद्देश्य पता है, वर्तमान के स्थितियों का अवलोकन करने से यह ज्ञात होता है कि किसी को वास्तविकता का ज्ञान नहीं है। आइये एक संक्षिप्त अध्ययन करते है-
1. राउत नाचा:- एक परिचय
राउत नाच का वास्तविक स्वरूप यह है कि यह नाच ना होकर यह एक शौर्य-प्रदर्शन हैं। समाज के सभी वर्गो के लोगों के संरक्षण के प्रति प्रतिबघ्दता के परिचायक है राउत नाच का मंचन होना। पर वर्तमान समय में लोग यह सोचते है कि बस गोवर्धन पूजन तक के लिए लोगों का मनोरंजन कैसे किया जाये इसके लिए राउत समाज के वर्ग के लोग राउत नाचा का मंचन करते है सिर्फ इतना ही सोच पाते है। परंतू इसके मुल उद्देश्य की कल्पना नहीं कर पाते है।
2. इतिहास के पन्नों की कथात्मक विवरण-
1......कहते है कि भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव की पूजा के जगह गोवर्धन की पुजा करने को कहा। गोवर्धन की पुजा को देखकर इंद्रदेव को बहुत गुस्सा आया तब उन्होने गोकुलवासीयों को इसकी सबक सिखने की बात सोची और तेज वर्षा करने लगें उस वक्त कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली से धारण किया और शेषनांग को पर्वत के बाहरी क्षेत्र में गोल घेरा बनाने को कहा तांकी वर्षा का पानी गोवर्धन पर्वत के अंदर ना आ सके। सात दिनों के वर्षा के बाद इंद्र जी को अहसास हुआ की यह कोई साधारण मानव नहीं हो सकता तब वो ब्रम्हा जी के पास पहुचे और सारा घटना क्रम बताये । ब्रम्हा जी ने बताया की जिससे तुम जितना चाहते हो वो कोई सामान्य मानव नहीं वो तो खुद नारायण है। इंद्र तुरंत कृष्ण जी के पास पहुचे और उनसे क्षमा मागा। उसी दिन से दिवाली के दुसरे दिन गोवर्धन की पूजा होने लगा। और गोकुल के लोगों ने उस दिन उत्सव का आयोजन किया।
2.........कृष्ण जी जब गोकुल में अवतरित हुए। उसके बाद से ही गोकुल में राक्षसों का आक्रमन बढने लगा। कृष्ण जी ने देखा की गोकुल के वासी अपने रक्षा करने में असहाय है तो उन्होने गोकुल के बाल गोपालों को स्वयं रक्षा के गुर खेल-खेल में सिखाऐं। वहीं अस्त्र-शस्त्र के स्थान पर उन्होनें डंडे से आत्म रक्षा के ज्ञान दिया। विभिन्न प्रकार से लठ का चालन करना। अपने मर्जी के अनुसार लठ को संचालित करने की कला दी।
इन्ही सभी के स्मृति में गोवर्धन पुजा के दिन राउत नाच का आयोजन होता है।
3. माटी से जूडे नाच: राउत नाचा
राउत नाच हमारे छŸाीसगढ़ के माटी से जुडा नाच है। मांदर,ढोल, निसान, और बांस इत्यादि वाद्य यंत्रों के साथ थिरकते लोगों के देख कर शांत रहना इतना आसान नहीं है। दोहों में एक समाजिक संदेस के साथ इस उत्सव की धमक दिवाली के दिन से ही शुरू हो जाता है। गो माता की पुजा से लेकर गोवर्धन पूजन तक लोगों में खास उत्साह रहता है।
4. हर्षोल्लास का प्रतिक
हमारे राज्य के ग्रामीण अंचल में इस पर्व और राउत नाचा को लेकर लोगों में बहुत उत्साह रहता है। गांव के लोग एकता भाव प्रदर्शित करते है। वही धान के फसल के पकने और कटाई के पहले का यह पर्व लोगों में हर्षवधन करता है।
5. समाजिक संदेश
राउत नाचा में एक सामाजिक संदेश देखने को मिलता है। वही नवीन आधूनिक पीढी से प्रश्नात्मक रूप से ज्ञान का परख करने के लिए दोहे के द्वारा ही जनऊला(पहेलीयां )भी पुछा जाता है। वही समाज में हो रहे घटनाओं का सार भी दोहे में बताया जाता है। परातन काल से व्याप्त सामाजिक अंधविश्वास, कुरूतियों पर प्रहार कर समाज को इससे दुर रहने और इसका खण्डन करने का संदेश दोहों के माघ्यम से दिया लाता है।
6. सामाजिक संरक्षक है- राउत नाचा
सामाजिक वर्गों में राउत नाचा को लेकर कोई ऐसा चलन नहीं है कि इसे कोई खास वर्ग ही नाच और प्रदर्शित कर सकता है। सभी जाति के लोगों के द्वारा एकता का प्रतिकात्मकता है राउत नाचा। इसमें गांव के संरक्षण और विभिन्न वर्गों को एकता के सुत्र में बांधने का एक अद्वितीय उद्देश्य है राउत नाचा।।
7. कहीं भुल तो नहीं रहे हम संस्कृति
लोगों में यह एक भ्रांति है कि यह एक ग्रामीण अंचल में होने वाला नाच है जिसमें लोग सम्मिलित होते है। लाठी डंडे के साथ नाचते है और अपना मनोरंजन करते है। परंतू ऐसे आलोचनात्मक टिप्पणी करने वाले लोगों को राउत नाचा का मूल उद्देश्य पता नहीं होता है जिसके कारण वो लोग इससे दूर भागते है। वहीं ऐसे लोग पाश्चात्य संस्कृति के गोद में जाके काम्प्युटरी दूनिया में गोवर्धन और दिपावली की शुभकामनाओं का इलेक्ट्रानिक कचरा(संदेश) करते नजर आते है। इन्हे सोशल मीडिया का बुखार है। पर वास्तविता में ये उजाले में भी रहकर अंधियारे का शिकार हैं। राउत नाचा से दुर नहीं उसकी वास्तविकता का अध्ययन करें। ये भी एक संस्कृति है हमारी इससे दूर ना रहे।
8. संजोए संस्कृति
राउत नाचा को लोग नहीं जानते है या नहीं जानने का बहाना करते है ये उनकी सोच है पर यह संस्कृति हमारी अपनी है आइये इसे हम सब मिलकर संजोए।।
कुछ राउत नाचा के दोहे-
1. राउत नाचा:- एक परिचय
राउत नाच का वास्तविक स्वरूप यह है कि यह नाच ना होकर यह एक शौर्य-प्रदर्शन हैं। समाज के सभी वर्गो के लोगों के संरक्षण के प्रति प्रतिबघ्दता के परिचायक है राउत नाच का मंचन होना। पर वर्तमान समय में लोग यह सोचते है कि बस गोवर्धन पूजन तक के लिए लोगों का मनोरंजन कैसे किया जाये इसके लिए राउत समाज के वर्ग के लोग राउत नाचा का मंचन करते है सिर्फ इतना ही सोच पाते है। परंतू इसके मुल उद्देश्य की कल्पना नहीं कर पाते है।
2. इतिहास के पन्नों की कथात्मक विवरण-
1......कहते है कि भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव की पूजा के जगह गोवर्धन की पुजा करने को कहा। गोवर्धन की पुजा को देखकर इंद्रदेव को बहुत गुस्सा आया तब उन्होने गोकुलवासीयों को इसकी सबक सिखने की बात सोची और तेज वर्षा करने लगें उस वक्त कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली से धारण किया और शेषनांग को पर्वत के बाहरी क्षेत्र में गोल घेरा बनाने को कहा तांकी वर्षा का पानी गोवर्धन पर्वत के अंदर ना आ सके। सात दिनों के वर्षा के बाद इंद्र जी को अहसास हुआ की यह कोई साधारण मानव नहीं हो सकता तब वो ब्रम्हा जी के पास पहुचे और सारा घटना क्रम बताये । ब्रम्हा जी ने बताया की जिससे तुम जितना चाहते हो वो कोई सामान्य मानव नहीं वो तो खुद नारायण है। इंद्र तुरंत कृष्ण जी के पास पहुचे और उनसे क्षमा मागा। उसी दिन से दिवाली के दुसरे दिन गोवर्धन की पूजा होने लगा। और गोकुल के लोगों ने उस दिन उत्सव का आयोजन किया।
2.........कृष्ण जी जब गोकुल में अवतरित हुए। उसके बाद से ही गोकुल में राक्षसों का आक्रमन बढने लगा। कृष्ण जी ने देखा की गोकुल के वासी अपने रक्षा करने में असहाय है तो उन्होने गोकुल के बाल गोपालों को स्वयं रक्षा के गुर खेल-खेल में सिखाऐं। वहीं अस्त्र-शस्त्र के स्थान पर उन्होनें डंडे से आत्म रक्षा के ज्ञान दिया। विभिन्न प्रकार से लठ का चालन करना। अपने मर्जी के अनुसार लठ को संचालित करने की कला दी।
इन्ही सभी के स्मृति में गोवर्धन पुजा के दिन राउत नाच का आयोजन होता है।
3. माटी से जूडे नाच: राउत नाचा
राउत नाच हमारे छŸाीसगढ़ के माटी से जुडा नाच है। मांदर,ढोल, निसान, और बांस इत्यादि वाद्य यंत्रों के साथ थिरकते लोगों के देख कर शांत रहना इतना आसान नहीं है। दोहों में एक समाजिक संदेस के साथ इस उत्सव की धमक दिवाली के दिन से ही शुरू हो जाता है। गो माता की पुजा से लेकर गोवर्धन पूजन तक लोगों में खास उत्साह रहता है।
4. हर्षोल्लास का प्रतिक
हमारे राज्य के ग्रामीण अंचल में इस पर्व और राउत नाचा को लेकर लोगों में बहुत उत्साह रहता है। गांव के लोग एकता भाव प्रदर्शित करते है। वही धान के फसल के पकने और कटाई के पहले का यह पर्व लोगों में हर्षवधन करता है।
5. समाजिक संदेश
राउत नाचा में एक सामाजिक संदेश देखने को मिलता है। वही नवीन आधूनिक पीढी से प्रश्नात्मक रूप से ज्ञान का परख करने के लिए दोहे के द्वारा ही जनऊला(पहेलीयां )भी पुछा जाता है। वही समाज में हो रहे घटनाओं का सार भी दोहे में बताया जाता है। परातन काल से व्याप्त सामाजिक अंधविश्वास, कुरूतियों पर प्रहार कर समाज को इससे दुर रहने और इसका खण्डन करने का संदेश दोहों के माघ्यम से दिया लाता है।
6. सामाजिक संरक्षक है- राउत नाचा
सामाजिक वर्गों में राउत नाचा को लेकर कोई ऐसा चलन नहीं है कि इसे कोई खास वर्ग ही नाच और प्रदर्शित कर सकता है। सभी जाति के लोगों के द्वारा एकता का प्रतिकात्मकता है राउत नाचा। इसमें गांव के संरक्षण और विभिन्न वर्गों को एकता के सुत्र में बांधने का एक अद्वितीय उद्देश्य है राउत नाचा।।
7. कहीं भुल तो नहीं रहे हम संस्कृति
लोगों में यह एक भ्रांति है कि यह एक ग्रामीण अंचल में होने वाला नाच है जिसमें लोग सम्मिलित होते है। लाठी डंडे के साथ नाचते है और अपना मनोरंजन करते है। परंतू ऐसे आलोचनात्मक टिप्पणी करने वाले लोगों को राउत नाचा का मूल उद्देश्य पता नहीं होता है जिसके कारण वो लोग इससे दूर भागते है। वहीं ऐसे लोग पाश्चात्य संस्कृति के गोद में जाके काम्प्युटरी दूनिया में गोवर्धन और दिपावली की शुभकामनाओं का इलेक्ट्रानिक कचरा(संदेश) करते नजर आते है। इन्हे सोशल मीडिया का बुखार है। पर वास्तविता में ये उजाले में भी रहकर अंधियारे का शिकार हैं। राउत नाचा से दुर नहीं उसकी वास्तविकता का अध्ययन करें। ये भी एक संस्कृति है हमारी इससे दूर ना रहे।
8. संजोए संस्कृति
राउत नाचा को लोग नहीं जानते है या नहीं जानने का बहाना करते है ये उनकी सोच है पर यह संस्कृति हमारी अपनी है आइये इसे हम सब मिलकर संजोए।।
कुछ राउत नाचा के दोहे-
आवत देवारी ललहू हिया, जावत देवारी बड़ दूर।
जा जा देवारी अपन घर, फागुन उडावे धूर ।।
भावार्थ - दीवाली का त्यौहार जब
आता है तब हृदय हर्षित हो जाता है, और जब दिवाली आकर चली जाती है तो उसका
इंतजार बहुत कठिन होता है, साल भर उसका इंतजार करना पडता है। हे दीपावली,
उत्सवधर्मी हमने आनंद मना लिया अब तुम जावो और फागुन को अपनी धूल उडाने दो
यानी हमें होली की तैयारी में मगन होने दो।
भांठा देखेंव दुमदुमिया, उल्हरे देखेंव गाय हो।
ओढे देखेंव कारी कमरिया, ओही नंनद के भाय हो।।
(भांठा - उंची सपाट भूमि, दुमदुमिया - बिना कीचड का सूखा, भाय - भाई)
भावार्थ - अपने पति का परिचय
देनें की काव्यात्मक प्रस्तुति तुलसीदास जी नें सीता के मुख से रामचरित
मानस में जैसे की है वैसे ही छत्तीसगढी महिला अपने पति का परिचय दे रही
है। गांव के बाहर भांठा में गायों की भीड है वहां काले कम्बल ओढा हुआ जो
छबीला पुरूष है वही मेरी नंनद के भईया अर्थात मेरे पति हैं।
धन गोदानी भुईया पावा, पावा हमर असीस।
नाती पूत लै घर भर जावे, जीवा लाख बरीस।।
आपका अपना
Pukh Raj Yadav