वो आखरी शब्द.................
मै और वो पता नहीं किस बंधन
में थे। न कसमें न वादे किए फिर भी दिल के करीब थे हम। जीवन के पलों का यही फलसफा
है की वो पल बेसकिमती है। यूं ही चाय के कैटिंन में कभी-कभी जाता था। उस दिन भी यू
ही पहूच गया। एक पल को ऐसे लगा कि जैसे 4जी/3जी वाली जिन्दगी कही रूक गया हो, वो
चल रहा था आहिस्ते आहिस्ते जैसे फिल्मों में होता है वैसे हो रहा था हूबहू।
नजरें मिली, बातों तक तो बात
नहीं पहूचा पर नजरों से जैसे बात हो गया। उस दिन का अहसास जैसे सिर पर हैंगओवर से
कम नहीं था, मै तो नशे में था मेरे साथ पुरी रात भी नशे में झूम रहा था। सायद
आंखों ने किसी हसी ख्वाब को नजरों मे भर लिया, पता नही निन्द क्यों नहीं था।
अगले दिन वक्त से पहले कालेज पहूच गया। उसके आने
का इंतेजार कर रहा था। विचारों के ख्याल में था कि बस वो आए और किसी बहाने से बात
हो जाए। वो आ रही थी, मै भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा। आखिरकार बात हो ही गया। उसने
कहा कि आप वही है न जो कल कैटिंन मे थे। वो बाते कर रही थी और मै किसी सैनिक के
भाति अपने कप्तान को सूनता जा रहा था। कुछ दिनों में दोस्ती बहूत गहरा हो गया।
लाईफ स्टाइल कितना भी क्यों न बदल जाए पर प्रेम संबंधों के मामले 2जी के स्पीड के
ही तरह चलता है।
प्रेम वो गंध के समान है जिसका
ईत्र आसपास रहने वालों को कब खबर हो कह नहीं सकते है। मेरे साथ भी य़ही हो रहा था
सब मित्र कहते कि अब तो उसे अपने दिल की बाते कह दे। मै टाल जाता बातों को, ऐसे करते
करते कैसे सेमेस्टर पर सेमेस्टर पर होते गए। प्रेम के चंद लफ्ज नहीं कह सका।
स्नातकीय शिक्षा का आखरी दिन औऱ
कैरियर के दिनों का प्रारंभिक दिन था। उससे मिला, जैसे वो सवालों की तूफान लेकर आई
थी। क्या करोगे आगे ? कैसे हो? फ्यूचर प्लान क्या
है? बडी सूलझी लड़की आज क्यो उलझी सी लग रही थी। मै कुछ न कह सका। वो कह रही थी
की घर (अपने गांव ) जा रही हूं। और एक पंक्ति कह गई- “ प्यार का पहला, इश्क का
दूसरा और मोहब्बत का तीसरा शब्द आधा है, पर सच कहूं तूम्हारे लिए दिल में प्रेम
बहूत ज्यादा है।”
ये आखरी पंक्ति कहकर शर्माते हूऐ
चली गई। आचम्भित रह गया फिर ख्याल आया किसी ने मेरे मन की बात बताया हो, फिर दिल
ने कहा कि दिल का हाल सूने दिल वाला ।