Sunday, September 4, 2016

कब तक अंधेरे में रहेगें...........हम


कब तक अंधेरे में रहेगें...........हम


21वीं सदी के विश्व में कई तरह के अविष्कार हूआ और हो रहा है। बिजली उत्पादन के लिए हम अब कोयले और बांध परियोजनाओं पर निर्भर नहीं है।ऊर्जा के आपार साधन के रूप में सौर ऊर्जा है। हम परमाणू ऊर्जा की ओर अग्रणीय है। लेकिन भारतवर्ष के कई राज्यों के ग्रामीण कस्बों में विद्युत तार तक नहीं बिछे है।आजादि के बाद भी कई गांव में आजतक बिजली नहीं पहूच पायी है।

           जरा सोचिए हम एक घंटे के लाईट-कट से परेशान हो जाते है, ज्यादा देर हूआ नहीं की हम दफ्तर पहूचकर हंगामा करने लग जाते है। ओडिसा और छ.ग. के राजकीय सीमावर्ती क्षेत्र में कई गांवो के लोंग बिजली से परिचित नहीं है।


           बिजली के ना होने से वो लोग जैसे आजाद भारत में अंधेरे के गुलाम बने हूऐ है। बचपन का एक वाक्या याद आया। उस समय डी.डी.01 में एक धारावाहीक आता था- शक्तिमान। उसमें विलेन का पात्र का नाम तमराज किलविश था,उनका तकिया कलाम –अंधेरा कायम रहे। वो शब्द सूनकर मन में अंधेरे के नाम से हमे नफरत होता था।


          वैसे ही 21वीं सदी मे अंधेरे ने उन गांवों के लोगों को गुलाम बनाया हूआ जहां बिजली नहीं पहूचा है। वो लोग विकास से कीतने पिछे है जरा सोचिऐ। जैसे वो लोग विकास के निर्धारकों से पुछ रहे है की- कब तक अंधेरे में रहेगें..............हम।।।