किसान – तेरी कहानी
मै किसान
हूं...............
सुखे खेत-खलिहानों और तेज
गर्मी से तड़क उठे मृदा पर एक आदमी बैठा था। वो बार-बार खुले आसमान को देख रहा था
जैसे किसी का इंतेजार कर रहा हो। कोई उस जगह से गुजर रहा था। वो सायद रहगुजर का
राही था रास्ते की पूछपरख करने रुका। उसने खेत में बैठे आदमी से पूछा की भाई आसमान
में क्या निहार रहे हो।
उस आदमी ने सरल शब्दों में कहा कि मै
किसान हूं। इन्द्रदेव के महरबानी की प्रतिक्षा कर रहा हूं। मेरे नन्हे-नन्हे पौधे
पानी के अभाव में सूख गए है। खेत में गर्मी के कारण तड़क रहे है। नहर, नदी , नाले
, बांध सभी में पानी के जल स्तर निम्न है। ऐसे ही मेरा श्रम क्षेत्र भी सूख गया
है। इसी परेशानी से जूझते हूए वर्षा के इंतेजार में हूं। देवताओं को मनाने के लिए
हम लोगों ने कई बार यज्ञ किये, पर फिर भी वर्षा के बून्द नहीं गिरे। थोडा परेशान
हूं क्योंकि मै किसान हूं।
एक घडी बनाने वाला, खाद बेचने वाला, भौतिक
वस्तूओं के निर्माता अपने निर्माण किए वस्तू का मूल्य स्वयं निर्धारित करते है। उन
वस्तूओं के बीना हम रह सकते है लेकिन अनाज के बीना जीवन मूहाल ही है। विड़म्बना यह
है कि मै मेरे ही श्रम से निर्मित अनाज का मूल्य का निर्धारण किसी और से पाता हूं।
सायद इसलिए किसान हूं।