(बिचार)
ए शहर ल होइस का? कहूँ राख हे, कहूँ धुँआ-धुँआ। काबर दरद ल झेलत हे।काबर कोनो काहिं नइ बोलत हे। ये कोनो फिल्म के डिस्क्लेमर नइ होय; ये बरतमान के छत्तीसगढ़ के पीरा हरै। बीत कुछ दिन मं तनाव के स्थिति म आनीबानी के घटना क्रम उल्होवत हे। जगा-जगा धारा एक चवालिस ले हे। बेमेतरा के गांव मं अस्थाई पुलिस के चौकी बनके तियार होगे हे। ये छत्तीसगढ़ के माटी मं जिंहा मनखे-मनखे के समान कहइया संत घासीदास के पावन धरती हरे। जिंहा 15 वीं शताब्दी मं वल्लभाचार्य शांति के संदेसा ल बगरावत खातू कस भुइयां ल सिचोए परे हे।
छत्तीसगढ़ सम्मान के रचइय्या डॉ. खूबचंद बघेल के सरग ले आशु पल-पलावत होही जब छत्तीसगढ़ महतारी के अछरा मं हिंसा,झगरा अऊ लहू के छटकत छिचार दिखथे। समानता के गुण गवइया संत गहिरा गुरु के चिंता बाढ़ गे होही, काबर छत्तीसगढ़ मं जाति अऊ संप्रदाय के आपसी टकराव ले छत्तीसगढ़ के मान गिरथे। धनी धर्म दास के कमल के सियाही थिराजवत होही काबर लाल लहू के कतरा,करेजा के पीरा ल बढ़ोवत हे। दुधाधारी महाराज के जी कचोट होही कि मोर नगर के संगी मन आपस म लडे परत हे। नारी शिक्षा के पाठ सिखइया स्वामीआत्मानंद के आत्मा घलो कहत होही का बने के बीजा रोपे रेहेव अऊ छत्तीसगढ़ के पेड़ का बने बाट धर डाले हवस कहिके। माता राजमोहिनी के मद्य निषेद संंदेसा लगथे कान के फूली के रसाय कर टूट के गीर गेहे। मिनी माता के बिचार लगथे बियंग के करसा म अँधना के उफान कर बांगा के छोर ले कूद गेहे। जेन भुइंया म कभू भूमकाल के नायक ब्रिटिश सत्ता ल हला दे रिहिस; जेन भुइंया म बीर नारायण के बलिदान के कंथली कहे जाथे। जे भुइंया मं हनुमान सिंह के ताकती के लहर युवा मन में गहराथे। जेन भुइंया मं सुन्दर लाल जैसे रतन ह उपजथे। आज नही भुइंया मं मनखे मार मुड़ी मसान चढ़े कस भाई ल भाई नइ चिन्हत हे। जिहां शांति के मंत्र गावत हरियर खेत ही उहां मारपीट के एती-ओती जम्मो कोती खबर बगरत हे। रोज अखबार के पोथी मं सनाय लहूँ के कतरा छपत हे। का करने छत्तीसगढ़ मं संप्रदायिक हिंसा कोती बढ़त हे। कभू कबीरधाम, कभू बेमेतरा कइ जगह पैरा मं धरे आगी कर धधकत हे।
राजनीति के गणित में जाने कोन भूर्री बरईया ते, छत्तीसगढ़ के चोरोमुड़ा आगी के ताप दिखे मिलत हे। अपन अपन के पूरतिन अंगारकर तो जम्मो मनखे मन पुरोवत हे,फेर ये बिचार कोन करहि की धरती हमर,मनखे-मनखे हमर अऊ बिद्रोह के तान म फुटइया कान तको हमर हरे। जाति-पाति के घीव तको उही आगी मं पूरौनी कर डारत हे। तेकरे परिणाम हरे कि मनखे-मनखे ल मारत हे। कभी परदर्सन के नाम म, कभू गुस्सा के रंगोली मं लहुँ के होली खेलइ होवत हे। कोनो कहत हे हम हमर माटी ल सुलगन नइ देवन, फेर संप्रदाय के बाढ़े झगरा मं एकता के दीया कोनो नइ बारत हे। कभी धरम बदले के ब्योपार ,त कभू जबरन धरम लेवाए के अबिस्कार होगे हे। धंधा बना डारे हे जइसे राजनीति म कि, दोनो पक्ष ल लड़वाके अपन-अपन सीट ल मजबूत बनलेवन कहिके।
मोर संग चलव रे के मधुर तान के सागर अटा गेहे। तरिया के पथरा म डोपिंग के काइ जगा पोगरा लेहे। बाहरी मनखे मन के आवाजाही ले मोर छत्तीसगढ़ के शांति म खलल के राग बाढ़त हे।अइसे में जागव रे मनखे, जागव रे छत्तीसगढ़िया के तान कोलाहल म लुका गेहे। पड़की, मैना के बोली खिलथे, जिहाँ गीत मं संस्कृति पलथे। अइसन धरती म जाति-धर्म के रार ले बिकास के बाट एकदम चोरो बोरो होगे हे। अऊ माते चिखला मं माइ-पिल्ला छत्तीसगढ़िया मनखे फिसलगे। जो गोठ बर लड़ना रिहिस तौन तो सुन्ना होगे। रोजगार के बात तो जुन्ना होगे। लगत हे जइसे हिंसा के उल्होना मं बढ़ोना के तियारी हे। काबर की एसो चुनाव के बारी हे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़