(अभिव्यक्ति)
बेटी को घर की गौरैय्या बताते गीत 'ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया अंगना में फिर आजा रे' के गीतकार स्वानंद किरकिरे की कल्पना में भी गौरैय्या की मीठी तान से लेकर मन को मोह लेने वाली मीठी आवाज जरूर रही होगी। हिंदी के अमर शब्द सागर में न जाने कितने ऐसे शब्दों की मोती है जिनका पर्याय न सिर्फ शब्द बल्कि चारित्रिक चित्रण भी करती है। हिंदी कब आई कैसे आई ये किसी को नहीं पता है, लेकिन सर्वमान्य सिद्ध है कि सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है। हिंदी भाषा का इतिहास लगभग हजार वर्ष पुराना है। हिन्दी में संस्कृत के जटिल शब्दों को सरल बनाया गया। हिंदी भाषा के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था से हिंदी का उद्भव मानते है। इसके लिए विद्वानों ने संस्कृत के कई श्लोक ढूंढे हीनं दुष्यन्ति इति हिन्दू:;कहा है। हिन्दी में गौरैय्या के कई अर्थ है जैसे स्वप्नघटक, बहुशत्रु,वृषायण, अकली, विहंगिका, छोटा पक्षी है। लेकिन गौरैया कहते ही मन:पटल पर सीधे एक छोटी चिड़िया का छायाचित्र उभरता है। जो घर के आंगन में चीं-चीं की आवाज करती चावल के कण चुगती है।
हिन्दी साहित्य में कई कलमकारों ने गौरैया के प्रति अपने प्रेम और परिदृश्य को प्रदर्शित करते हुए लेखनी चली है। जैसे विनय विश्वास अपनी लेखनी में गौरैया के बदलते पर्यावरण और असंतुलन को उकेरते हुए लिखते हैं, बेज़ार हैं परिन्दे। असंगघोष लिखते हैं, उड़ती हुई गौरैया चली आती है। हमेशा की तरह मेरे जेहन मे चिड़ची करती। अस्थिर अन्तर्मन की मुझे जरूरत नहीं है। राकेश मिश्र बेटी और गौरैया की स्थिति को एक जैसे बताते हुए लिखते है। रश्मि शर्मा अपने शब्दों में कहती हैं, ओ री गौरैया..! क्यों नहीं गाती अब तुम..मौसम के गीत। जो बदलते मानवीय परिवेश और परिवार के आधुनिकी की ओर इशारा करती है। कौशल किशोर लिखते हैं, गौरैये की चहल उसकी उछल-कूद और फुदकना मालिक-मकान की सुविधाओं में खलल है। नीरजा हेमेन्द्र साँझ और गौरैया के अंतर्संबंधों को इंगित करती लिखती हैं, मेरे घर के आँगन में अमरूद के वृक्ष़ पर बैठी गौरैया चुपके से उतरती है। भास्कर चौधुरी गौरैया को प्रेम का प्रतिक बाते हुए लिखते हैं कि गौरैया की कविताएं प्रेम छलकाती है। निवेदिता झा, झारखंड के खुबसूरत जंगल के बीचों बीच गौरैया की दस्तक और शहर की गुँज को समेकित करती आपाधापी की जिंदगी का उल्लेख करती हैं। स्वप्निल श्रीवास्तव कहते हैं कि गौरैया को देख कर अक्सर मुझे गौरैया घोष की याद आती है। हर्षित 'हर्ष' गौरैया की उपस्थिति में मन की शीतलता का पर्याय देते हुए गौरैया के जीवन काल को संदर्भित बदलते मानवीय नीड़ के स्वरूप के लक्षित करते लिखते हैं, ऐ प्यारी गौरैया मेरी! गोलेन्द्र पटेल गौरैया की सामाजिक परिदृश्य और मनुष्यों के समाज में विभिन्नता से परे सबके घर पर दस्तक को उकेरते हुए लिखते हैं कि, चिड़िया रानी चुगलीन पनारे कऽ जूठन। त्रिलोक सिंह ठकुरेला गौरैया के संदर्भ में लिखते हैं कि, घर में आती जाती चिड़िया,सबके मन को भाती चिड़िया।
अंटार्कटिका, चीन और जापान को छोड़कर हर महाद्वीप में घरेलू गौरैया दुनिया भर में फैली हुई है। यह यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका के मूल निवासी है, और इसे दक्षिण अफ्रीका, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मध्य पूर्व, भारत और मध्य एशिया में पेश किया गया था, जहां इसकी आबादी विभिन्न पर्यावरणीय और जलवायु परिस्थितियों में बढ़ी है। भारत के भीतर, यह पूरे देश में असम घाटी और असम पहाड़ियों के निचले हिस्सों तक पाया जाता है। पूर्वी हिमालय की ओर, प्रजातियों को यूरेशियाई वृक्ष गौरैया द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। यह मानव आवास के करीब रहने के लिए जाना जाता है, और इसलिए यह शहरी शहरों में सबसे अधिक पाई जाने वाली पक्षी प्रजातियों में से एक है। आवासीय कॉलोनियों, बगीचों, खेतों, कृषि क्षेत्रों, कार्यालय भवनों और यहां तक कि तेज गति वाले यातायात वाले राजमार्गों के पास गौरैया के झुंड एक आम दृश्य हैं।
घरेलू गौरैया मनुष्यों के साथ विकसित हुई है, जो जंगलों के बजाय केवल हमारे निकट संपर्क में रहने के लिए जानी जाती है। वर्षों से यह हमारे भवनों और बगीचों में हमारे साथ शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में है, लेकिन पिछले दो दशकों में लगभग हर शहर में इनकी आबादी घट रही है। जिम्मेदार कारण हैं: तेजी से बदलते शहर अब घरेलू गौरैया के लिए उपयुक्त आवास नहीं हैं, क्योंकि बुनियादी ढांचे के नए और आधुनिक डिजाइन गौरैया को घोंसला बनाने के लिए कोई जगह नहीं देते हैं; माइक्रोवेव टावरों और कीटनाशकों के कारण होने वाला प्रदूषण; घर की गौरैया अपने चारागाहों (प्राकृतिक घास के मैदानों) को खो देती है क्योंकि हमारे शहरों में हरित स्थान अधिक ठोस निर्माणों को रास्ता देते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार आंध्र प्रदेश में घरेलू गौरैया की आबादी 88% तक कम हो गई है और केरल, गुजरात, राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में यह 20% तक गिर गई है। भारत के तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या में 70 से 80% तक भारी गिरावट आई है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़