Thursday, March 30, 2023

शहरी आबादी में कंकरीट होती मानवता


                (अभिव्यक्ति) 


सभ्यता की दौड़ और मानवीय एकजुटता ने आधुनिकीकरण के उद्भव के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया। आधुनिकीकरण के कारण ग्राम की पृष्ठभूमि से शहर और महानगरों का विकास हुआ। यहीं की सिविलाइजेशन को आंग्लभाषाशास्त्रियों ने अर्बन पॉपुलेशन का नाम दिया। बढ़े जनसंख्या और रोजगारोन्मुखी संसाधनों की प्रचुरता के मद्देनजर यदि बड़े महानगर यदि देश की प्रासंगिकता प्राप्त कर लेते तो निश्चय है कि वे वैश्विक रूप से बड़े अर्थव्यवस्था के रूप में पंक्तिबद्ध होते, जो वर्तमान में विकासशील राष्ट्रों की तुलना में अधिक समृद्धि अवश्य प्रतीत होते। वर्तमान में दुनिया में यही शहर या कहें महानगर सबसे घनी आबादी वाले शहरों के नाम से जाने जाते है, इन शहरों में अपनी अराजकता और गरीबी के लिए अलग ही प्रतिमान हैं।
         कुछ ऐसे भी शहर,जो 20वीं शताब्दी में नष्ट हुए और फिर पून: उठ खड़े हुए। आज लगभग करोड़ लोगों के साथ दुनिया की शीर्ष आबादी इन्ही शहरों में शहर है।
              बड़े शहरों के बारे में इस तरह के अतिशयोक्ति से यह समझाने में मदद मिलती है कि शहरी सभ्यता के 10,000 साल के इतिहास में अब एक महत्वपूर्ण दहलीज क्यों पहुंच गई है। संयुक्त राष्ट्र भी यह घोषणा करता है कि ग्रह पर आधे से अधिक लोग शहरों में रहते हैं। केवल 70 साल पहले, एक तिहाई से भी कम ने किया था। और 2050 तक दो तिहाई लोग शहरों में रहने लगेंगे।
              शहरीकरण की तीव्र गति के कई कारण हैं, जैसे बेहतर परिवहन और विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि। उदाहरण के लिए, चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासन देखा है क्योंकि हाल के दशकों में 150 मिलियन से अधिक ग्रामीण लोग कारखाने की नौकरियों और बेहतर शिक्षा के लिए शहरों में चले गए हैं, जब देश ने बाजार अर्थव्यवस्था को अपनाया है।
            लेकिन एक गहरा कारण संभावित रूप से लोगों को एक-दूसरे के करीब रहने और शोर, यातायात, प्रदूषण और उच्च कीमतों के साथ रहने के लिए प्रेरित करता है।
               यह वैश्विक रुझान 21वीं सदी को शहरी युग या आशा के युग के रूप में चिन्हित कर सकता है। शहरों में वृद्धि वास्तव में बेहतर भविष्य के लिए मानवता की बढ़ती आकांक्षाओं का एक पैमाना है। अमीर और गरीब देशों में समान रूप से, कई शहर अपनी मलिन बस्तियों के लिए बेहतर जाने जाते हैं। रियो के झुग्गियों या कलकत्ता के भिखारियों और कूड़ा बीनने वालों की सेना के बारे में सोचिए। 8 में से एक व्यक्ति अब 29 मेगासिटी में से एक में रहता है, या 10 मिलियन से अधिक लोगों के साथ। फिर भी अक्सर शहरी गरीबी में रहने के इच्छुक लोग केवल एक पीढ़ी के लिए होते हैं, जो अंततः मध्यम वर्ग में शामिल होने के लिए पर्याप्त कमाई करते हैं। शहर अच्छे जीवन के एस्केलेटर हैं। वे सपनों के कारखाने हैं। शहरी प्रवासियों ने अपने परिवारों को ग्रामीण ठहराव की पीढ़ियों से बाहर निकालने के लिए गन्दगी के साथ काम किया। शहर न केवल किसी चीज़ से आज़ादी देते हैं बल्कि कुछ करने की आज़ादी भी देते हैं। भले ही सेलफोन और इंटरनेट ने एक अधिक जुड़ा हुआ लेकिन आभासी प्रकार का जीवन बनाया है, लोग अब शहरों में आ रहे हैं। वे पाते हैं कि प्रतिस्पर्धा और सहयोग का मिश्रण नवोन्मेष को बढ़ावा देता है। सहज सामाजिक संपर्क नए अवसरों की ओर ले जाते हैं। एक चौथाई वैज्ञानिक और इंजीनियर पाँच महानगरीय क्षेत्रों के कुछ मील के भीतर रहते हैं। नए विचारों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें अपने जैसे अन्य लोगों के करीब रहने की जरूरत है। लेकिन फिर भी कंकरीट के आकाश को छूती इमारतों में रहने वालों इंसानों के दिल भी लगभग सभ्यता के विपरित पाषाणकाल की ओर अवरोही क्रम में हैं। जहां मानवता की प्रतिकात्मक रूप में केवल एश्वर्य धनी लोगों के पोशाक की चमक है। और मलिन गरीबी की चादर ओढ़ने वालों के लिए मानवता के समीकरण शुष्क ही दिखाई पड़ते हैं ।


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़