Thursday, February 16, 2023

हम OYO ले जाने नहीं, घर बसाने वाले हैं


                    (कटाक्ष)

जैसे-जैसे मनुष्य अधिक से अधिक सुसंस्कृत और परिष्कृत होता जाता है। वह प्रकृति से दूर होता जाता है और कृत्रिमता की ओर बढ़ता जाता है। प्रकृति से दूरी उसे शुद्धता और वास्तविकता से भी दूर रखने लगती है। इस प्रक्रिया में वह सामान्य और स्वाभाविक व्यवहार की खिल्ली उड़ाने लगता है। उदाहरण के लिए, पुरुष और स्त्री के बीच प्रेम एक प्राकृतिक घटना है; यह विशेष रूप से मनुष्यों के लिए ऐसा है। लेकिन अधिकांश प्राचीन दर्शन और धर्म इस सत्य की उपेक्षा करते प्रतीत होते हैं। मानो उनके लिए प्यार पाप का दूसरा नाम है। आदम और हव्वा की कहानी इस प्रकार की मानसिकता का एक अच्छा उदाहरण है। भारतीय दर्शन में भी चीजें बहुत अलग नहीं हैं। वैदिक साहित्य को भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीनतम दर्शन का भंडार माना जाता है। इस साहित्य को हमेशा बिना किसी पार्थिव स्पर्श के अत्यधिक दार्शनिक रूप में देखा गया है। यह एक विडम्बना है कि संस्कृति, प्रेम के बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती - सभी प्रकार के प्रेम। वास्तव में प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य प्रेम करने की इसी क्षमता के कारण ही जीवित रह सका। बेशक, मानव प्रेम केवल सेक्स द्वारा उन्मुख नहीं होता है। सामाजिक समरसता, पारिवारिक बंधन और जीवन के प्रति लगाव और जीवनोन्मुखी चीजें भी प्रेम का ही हिस्सा हैं। स्त्री/पुरूष के लिए प्रेम एक प्रबल भावना है, जो उसे इतनी शक्ति प्रदान करती है कि उसके लिए हर कठिनाई को पार करना आसान हो जाता है। प्यार में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की भावनाएं शामिल होती हैं। यह सत्य है कि संवेगात्मक अनुभूति केवल मनुष्य की विशेषता है। मनुष्य के अतिरिक्त अधिकांश जीव-जंतु एक-दूसरे से शारीरिक रूप से ही आकर्षित होते हैं, वह भी एक यौन-संबंध है। शायद यही कारण है कि मानव समाज में काम-उन्मुख प्रेम को अच्छे अर्थों में नहीं लिया जाता। लेकिन यह जीवन का तथ्य और वास्तविकता है, और दुनिया के अस्तित्व के लिए भी ऐसा ही है। भौतिक प्रेम के बिना मानव जाति का अस्तित्व जारी नहीं रह सकता। इसे व्यवहार्य बनाने के लिए विशुद्ध मानवीय भौतिक प्रेम को भावनाओं के साथ जोड़ना होगा। इस मामले में प्यार का सबसे अच्छा रूप शारीरिक और भावनात्मक रिश्तों का अच्छा संयोजन है। लोक परंपरा के अधिकांश प्रेम गीतों में हम यही देखते हैं। 
         बात करें पाश्चात्य परंपरा की तो, प्रतिवर्ष  प्रेम को एक दिवस केे रूप में मनाने की परम्परा 14 फरवरी के प्रारंभ में कई छोटी  कहानियां  हैं। जैसे, कैथोलिक चर्च वेलेंटाइन या वैलेंटाइनस नाम के कम से कम तीन अलग-अलग संतों को पहचानता है, जिनमें से सभी शहीद हुए थे। एक किंवदंती का तर्क है कि वेलेंटाइन एक पुजारी था जिसने रोम में तीसरी शताब्दी के दौरान सेवा की थी। जब सम्राट क्लॉडियस द्वितीय ने फैसला किया कि एकल पुरुषों ने पत्नियों और परिवारों की तुलना में बेहतर सैनिक बनाए, तो उन्होंने युवा पुरुषों के लिए विवाह को रद्द कर दिया। वेलेंटाइन ने डिक्री के अन्याय को महसूस करते हुए, क्लॉडियस को ललकारा और गुप्त रूप से युवा प्रेमियों के लिए विवाह करना जारी रखा। जब वेलेंटाइन के कार्यों का पता चला, तो क्लॉडियस ने आदेश दिया कि उसे मौत के घाट उतार दिया जाए। अभी भी अन्य लोगों का कहना है कि यह टर्नी का संत वेलेंटाइन था, जो एक बिशप था, जो छुट्टी का सच्चा हमनाम था। वह भी, रोम के बाहर क्लॉडियस द्वितीय द्वारा सिर काट दिया गया था। साथ ही प्रेम को प्रदर्शित करती कई कहानियां हैं। रोमांटिक प्रेम की 'पश्चिमी' अवधारणा। उस विशेष व्यक्ति के साथ हम बनाना चाहते हैं, महसूस कर रहे हैं, या शायद चाहते हैं कि वह विशेष व्यक्ति आपके साथ हम बनाने के लिए सही हो, और दूसरे को भी आपके बारे में ऐसा ही महसूस कराना चाहते हैं।प्रेमी के व्यक्तिवादी स्वभाव को पहचानना और तुलना के प्रश्न के बिना उन व्यक्तिवादी गुणों को महत्व देना प्रेम है। इस प्रकार, प्रेम में कारण शामिल है क्योंकि यह किसी बाहरी चीज़, प्रिय के सार्वभौमिक गुणों के प्रति प्रतिक्रिया करता है।
          बहरहाल, प्रेम के पर्व की वास्तविक धरातल क्या है? क्या नहीं की अपेक्षा प्रेम के इस दिवस को आकर्षण का नंगा नाच अवश्य प्रदर्शित होता हैै। जहाँ मीटिंग,डेटिंग और क्वालिटी टाइम के नाम पर पार्क के झाड़ियों के पीछे, होटलों के कमरों,खंडहरों या सुनसान जगहों पर निर्लज्जता से कपड़ों के बंधन खोले जाते हैं। वास्तविकता के धरातल पर देखें तो ये हमारी संस्कृति नहीं है।और ना ही प्रेम को किसी दिन विशेष में बाँधा जा सकता है। क्योंकि हमारी संस्कृति  कपड़े उतारने की परम्परावाही नहीं बल्कि घर बसाने की है।


लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़