Thursday, February 16, 2023

हलमा परम्परा की अब विश्व पटल पर विमर्श


                    (अभिव्यक्ति) 



भारत पूरी दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है। 5000 वर्षों की इस लंबी यात्रा में, हम पर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से संबंधित कई शासकों का शासन था। इसके अलावा, बहुत सारे लोग दूसरे देशों से चले गए और भारत ने उन्हें खुले दिल से स्वीकार किया। इस आदान-प्रदान के कारण, हम अपने देश में धर्म, संस्कृति, जाति और धर्म के संदर्भ में बहुत विविधता देख सकते हैं। हालाँकि, इन सभी विविधताओं के बावजूद, भारत अंधेरे के घंटों में भी एकजुट रहा और एकजुट भावना से सभी संकटों का सामना किया। जो धागा सभी भारतीयों को एक साथ बांधता है उसे "विविधता में एकता" के रूप में जाना जाता है। इस लेख में हम भारत में विविधता में एकता का अर्थ, भारत में विविधता के प्रकार, विविधता क्या है, संविधान में एकता के प्रावधान, इसका महत्व और एकता प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं के बारे में जानेंगे।
           जम्मू और कश्मीर से कन्याकुमारी तक, भारतीय विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न धर्मों, विभिन्न भाषाओं और विभिन्न परंपराओं का पालन करते हैं। लेकिन इन मतभेदों के बावजूद प्यार और शांति के साथ रहना भारत की विविधता में एकता की अवधारणा का वर्णन करता है।
            इसी एकता का प्रमाण है टीम वर्क, जो एक सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करने या किसी कार्य को सबसे प्रभावी और कुशल तरीके से पूरा करने के लिए एक समूह का सहयोगात्मक प्रयास है। इस अवधारणा को एक टीम के बड़े ढांचे के भीतर देखा जाता है, जो अन्योन्याश्रित व्यक्तियों का एक समूह है जो एक समान लक्ष्य के लिए एक साथ काम करते हैं। भारत वर्ष में जातिगत् विचारधाराओं और फिलोसॉफिकल धारणाएं जल्दी ही असर करती है। इसकी एकता और विविधता इसकी सही विशेषता है। विभिन्न जातियों और समुदायों के लोगों की संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं के एक भव्य संश्लेषण ने कई विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी एकता और सामंजस्य को बनाए रखा है। ऐसे ही एक उन्नत उदाहरण प्रस्तुत करती जातीय एकता का विवरण रखने का प्रयास कर रहा हूँ। जिसे आदिवासी भाई हालमा परम्परा के नाम से जानते हैं। यह एक प्राचीन भील परंपरा है जिसका आह्वान तब किया जाता था जब एक परिवार में कोई समस्या थी लेकिन सभी साधनों को समाप्त करने के बाद भी वह अकेले उससे निपटने में सक्षम नहीं था। तब ज़रूरतमंद परिवार अन्य परिवारों को इसकी मदद के लिए आमंत्रित करेगा। फिर कई परिवार एक साथ बिना किसी वापसी के उस परिवार की मदद के लिए आ जाते।
            भील, वे भगवान शिव और दुर्गा की पूजा के साथ वन देवताओं और बुरी आत्माओं को प्रसन्न करते हैं। उनमें से कुछेक प्रतिशत ईसाई धर्म का पालन करते हैं। वे अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और विश्वास के अनुसार अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं। भीलों को बांसुरी और ढोल की पारंपरिक धुन के साथ नृत्य और संगीत का भी शौक होता है। भील लोगों के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को टटोलने का प्रयास करें तो हालात सबसे पहले तब बदले जब अंग्रेज़ भीलों के जंगलों में पहुँचे और लकड़ियाँ निकालने लगे। उनके पास आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित करने की नीति भी थी, जिससे उनके लिए निर्वाह की प्राकृतिक प्रथा का पालन करना मुश्किल हो गया। फिर भी जब 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, तो भीलों की स्थिति और खराब हो गई। एक-दूसरे का सहयोग कर मिलकर काम करने की श्रेष्ठ भीली परंपरा हलमा अब विश्व पटल पर अपनी पहचान बना रही है। जो लोगों को जोड़कर श्रमदान की अनुठी परम्परा जो सालों के उटके कामों पर चोट करती लोगों में एकत्व की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। हलमा परम्परा पर शोध से लेकर लोगों का ध्यानाकर्षण हुआ है। जो वैश्विक रूप में मानविकी शक्ति को एकता और जहाँ चाह वहाँ राह की पटरी ला खड़ा करता है।



लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़