(अभिव्यक्ति)
भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जहाँ कृषि परंपरागत और प्राचीन व्यवसाय है। वर्तमान परिदृश्य में कृषि उत्पादों के सीधी खरिदी के लिए एपीएमसी यानी एक विपणन समिति है जो भारत में राज्य सरकारों के अधीन कार्य करती है। वर्तमान में, भारत के कृषि बाजारों को कृषि उत्पाद विपणन समिति के तहत राज्यों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। एपीएमसी अधिनियम के तहत, राज्य कृषि बाजार स्थापित कर सकते हैं, जिन्हें मंडियों के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में भारत में, कृषि उत्पादों के बाजारों को राज्य सरकारों द्वारा अधिनियमित कृषि उत्पाद बाजार समिति अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है। भूगोल (एपीएमसी) पर आधारित लगभग 2477 प्रमुख विनियमित बाजार हैं और भारत में संबंधित एपीएमसी द्वारा नियंत्रित 4843 उप-बाजार यार्ड हैं। कुल मिलाकर छोटे, बड़े और वृहद समितियों की 7,600 एपीएमसी मंडियां हैं, जो यह काफी कम हैं। देश को एपीएमसी मंडियों की संख्या लगभग 42 हजार की आवश्यकता है। हम मंडियों की बात इस लिए कर रहे हैं क्योंकि इन्हीं मंडियों से गुजरकर सब्जियां, फल और अनाज आम लोगों तक छोटे-छोटे बाजार चैनलों तक पहुँचता है। यानी इंन मंडियों में यदि मोल-भाव में एक रूपये की बढ़ोतरी आपके घर के बजट को बिगाड़ने के लिए काफी है। खराब बाजार बुनियादी ढांचे के कारण, एपीएमसी मंडियों की तुलना में बाजारों के बाहर अधिक उपज बेची जाती है । शुद्ध परिणाम इंटरलॉक किए गए लेन-देन की एक प्रणाली थी जो किसानों को उनकी पसंद के किसानों को यह तय करने के लिए लूटती है कि उन्हें बिचौलियों द्वारा शोषण के अधीन किसे और कहां बेचना होता है। कारण की तलाश करेंगे तो सब्जियों की मांग के वक्त कमी और फसल ज्यादा होने से खराब होने की स्थिति के डर से किसान औने-पौने दाम में अपनी फसल बेचने पर मजबूर होते हैं। सालाना खाद्य पदार्थों की खराब होने के बारे में जानते हैं। कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीफैट) की रिपोर्ट कहती है कि, देश में करीब 67 लाख टन खाद्य पदार्थों की बर्बादी हर साल होती है। यानी बर्बाद हुए खाने की कीमत 92 हजार करोड़ रुपए लगभग आकलन किया जाता है।
बडा प्रश्न है कि ऐसे फसल की बर्बादी के रोकने के लिए कोई उपाय हो सकता है। मेरा जवाब है अब संभव है। इंडियन साइंस वायर में प्रकाशित खबर के हवाले से, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खाद्य सामग्री विकसित की है, जो सब्जियों और फलों पर लेपित है, जिससे उनकी शेल्फ लाइफ काफी हद तक बढ़ जाती है। यानी खाद्य सामाग्री का आलू, टमाटर, हरी मिर्च, स्ट्रॉबेरी, खासी मंदारिन, सेब, अनानास और कीवीफ्रूट पर परीक्षण किया गया और इन सब्जियों को लगभग दो महीने तक ताजा रखने के लिए पाया गया। खाद्य पदार्थों में लेपित फिल्म का निर्माण मे डुनालिएला टर्टियोलेक्टा और पॉलीसेकेराइड नामक एक समुद्री माइक्रोएल्गा के अर्क के मिश्रण का उपयोग किया। माइक्रोएल्गा अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है और इसमें कैरोटेनॉयड्स और प्रोटीन जैसे विभिन्न बायोएक्टिव यौगिक होते हैं। शोधकर्ताओं ने इस अवशेष के अर्क का उपयोग अपनी फिल्म बनाने में, चिटोसन के संयोजन में किया, जो एक कार्बोहाइड्रेट है। इसमें रोगाणुरोधी और एंटिफंगल गुण भी होते हैं और इसे एक खाद्य फिल्म में बनाया जा सकता है।
वर्तमान समय में यदि ये प्रयोग प्रासंगिक होते हैं तो हर वर्ष होने वाले खाद्यान्न सामाग्री के नुकसान से रहित रहेंगे। 4.6 से 15.9% फल और सब्जियां फसल के बाद बर्बाद हो जाती हैं, आंशिक रूप से खराब भंडारण की स्थिति के कारण होते हैं। . वास्तव में, आलू, प्याज और टमाटर जैसे कुछ उत्पादों में फसल के बाद का नुकसान 19% तक भी हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इस अत्यधिक खपत वाली वस्तु के लिए उच्च कीमतें होती हैं। जो महंगाई के नियंत्रण में सहायक सिद्ध होंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़