(अभिव्यक्ति)
बिखरते ख्वाबों की टिष बनकर, कभी खुशियों में आखों से मोती बनकर, बह जाती पानी है। कभी प्यासे के लिए जीवन, रेगिस्तान में बूँद की टपक पर सनसनाहट, पानी है। गलियों में पानी के प्यारे बर्तनों की भूख, कभी सरकारी आंकड़ों में गबन का रूप, कभी किसी के शर्म का प्रारूप, कभी लज्जा को प्रकट करती पानी है। पानी जिसे अंग्रेज़ों ने वाटर, विज्ञान ने एचटूओ, पुर्तगाली एग्वा और हिन्दी मानकों में जल कहते हैं। पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिशत जलराशियों की है। जिसमे बड़ी जलराशियों को महासागर कहा जाता है। 1912 में जर्मन विचारक वेगनर ने सन अपनी पुस्तक महाद्वीप और महासागर में उत्पत्ति के सिद्धांत का जर्मन भाषा में प्रतिपादन किया। उन्होंने साथ में पी. पलेसेट, एंटोनियो पेलेग्रिनी, स्नाइडर व टेलर के विचारों को भी शामिल किया। जिसमें वेेगनर कहते हैं, आज से 30 करोड़ वर्ष पूर्व कार्बोनिफेरस युग में संपूर्ण महाद्वीपीय भाग आपस में कंदुक की भांति इकट्ठे हो कर दक्षिणी ध्रुव के निकट स्थित था। जिसे पैंजिया नाम दिया गया। इसे सरल भाषा में कहें तो भूपर्पटी जिसके उत्तरी भाग को अंगारालैंड व दक्षिणी भाग को गोंडवाना लैंड ऐसे ही सभी हिस्सों के उन्होंने नाम रखे। पैंजिया/उस स्थलाकृति में तीव्र विस्फोट के फलस्वरुप महाद्वीपों का 2 दिशाओं में विस्थापन हुआ। इसी विस्थापन आधारित अवधारणा ने पाँच बड़ी जलराशि और सात उपमहाद्वीप वर्तमान में जो प्रदर्शित हैं, उनके नामांकन को प्रेरणा दी।
पृथ्वी में जीवन की प्रारंभिक स्थिति के लिए जल का होना आवश्यक शर्त है। पृथ्वी के उष्ण से ठंडे होने की प्रक्रिया के बाद लगभग करोड़ साल पहले के नीचे एक नई क्रांति हो रही थी। छ: मामूली तत्वों हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन, नाइट्रोजन आदि ने मिलकर जीवों की संरचना के आकार देने की प्रक्रिया प्रारंभ की। इस तरह पृथ्वी पर निर्बाधता के साथ जल के भीतर जीवन की शुरुआत होने लगी। सर्वप्रथम बैक्टीरिया के रूप में जीवन शुरू हुआ। हम भी तो बैक्टीरिया का एक जोड़ हैं। यह बात अलग है कि हमने विकास क्रम के लंबे काल के चलते अलग-अलग रूप धारण कर लिए हैं। ऐसे ही विशाल जलराशि ने जीवन को वर्तमान तक पहुचाया है। ऐसा भी नहीं है की वर्तमान सभ्यता के आधुनिकम दौर में मनुष्य सभी कुछ चीजों को जान चुका है। आज भी महासागर, समुद्र उसके लिए जिज्ञासा का विषय है।
वर्तमान संदर्भ में भविष्य की जरूरतों एवं अर्थव्यवस्था में समुद्री संसाधनों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भारतीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ब्लू इकोनॉमी नीति पर उद्देशित है। ब्लू इकोनॉमी की संकल्पना सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए महासागरीय संसाधनों की अनुसंधान एवं उनके वास्तविक उपयोग के लिए आवश्यक खोज एवं वर्धन से जुड़े प्रयासों पर आधारित है। समुद्री अनुंसधान में अत्याधुनिक तकनीक से लैस जहाजों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और इन जहाजों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए इनके विशिष्ट रखरखाव की आवश्यकता होती है। कहने का तात्पर्य है, महासागर के पारिस्थितिकी का अध्ययन प्रारंभ किया गया है। जिसमें इस विशाल जलराशि के गर्भ में पल रहे जीवन के विभिन्न पहलुओं से लेकर, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणिक, भौगोलिक एवं विविध फलकों पर अध्ययन प्रस्तावित है। जिसके द्वारा आर्थिक एवं जलराशि के भितर के जीवन और जीवन के उत्पत्ति के मर्म पर प्रकाश लक्षित होगा।
इंडियन साइंस वायर के अनुसार, इस विशाल पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग जलराशि से घिरा है। वहीं धरती पर पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के संसार में 90 प्रतिशत समुद्री जीव शामिल हैं। लेकिन, रहस्यों से लब्धित महासागरों के बारे में मनुष्य सिर्फ पाँच प्रतिशत अब तक जानता है।शेष 95 प्रतिशत समुद्र एक अबूझ पहेली बना हुआ है। महासागर अपने गर्भ में दुर्लभ जीव-जंतुओं, बैक्टीरिया, और वनस्पतियों का संसार समेटे हुए है। महासागर में छिपे इन रहस्यों को उजागर करने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की गोवा स्थित प्रयोगशाला राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने हिंद महासागर में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की जीनोम मैपिंग के लिए एक अभियान शुरू किया है, जो समुद्री रहस्यों की परतें खोलने में मददगार हो सकता है। संभव है इसके साथ-साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भी विभिन्न स्तरों पर लाभांश पूरे राष्ट्र को होगा।
पानी जहाँ से जीवन प्रारंभ हुआ। जहाँ आज भी कई पहेलियाँ अनसुलझे हैं। पानी के विशाल भंडार पर पहली बार लकड़ियों से बने नाव उतारने वाले के लिए लहरों का मौज रोमांस से कम ना रहा होगा। और वर्तमान विशालकाय पंडुब्बियों के भीतर बैठे मनुष्य महासागर के अंदर अनुसंधान और ब्लू इकोनॉमी की प्रेरित करते नव स्वरों को कंठस्थ कर बैठेंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़