Wednesday, June 29, 2022

चिंता का सबब है वैश्विक स्तर पर शरणार्थी संकट का खतरा/ The cause of concern is the threat of refugee crisis at the global level


                              (अभिव्यक्ति


आम आदमी यानी वह व्यक्ति जो अपने जीवन के मूलभूत आवश्यक्ताओं के पीछे लगा रहता है और इनके पूर्ति के लिए श्रमदान करता है। वह अपने और अपने परिवार की सुरक्षा और अपने आत्म सम्मान को बनाये रखने में अनुकूल वातावरण में समर्थता ज़ाहिर कर पाता है। तर्ज करे की सौहार्दपूर्ण वातावरण में यदि खलल हो, तो व्यक्ति क्या विचार करता है? सामान्य शब्दों में कहें तो वह अपने क्षेत्र विशेष को छोड़ देता है। लेकिन यदि विरोध पूरे उस शासित क्षेत्र के अंदर होने लगे कहने का तात्पर्य है की उसकी प्रताड़ित करने की दर में वहाँ के लोगों के द्वारा कोई कमी नहीं होती है। कुछ उत्पिड़न के मामले इतने भयावह होते हैं जो व्यक्ति के नाम जाति और धर्म के परिवर्तन पर आमादा हो जाते हैं। अपने अस्तित्व को बनाए रखने की स्थिति में व्यथितहृदय लेकर वह व्यक्ति उस शासित क्षेत्र से बाहर जाने की प्रयास करता है। अन्य शासित क्षेत्र/राष्ट्र की सीमा पर कर शरण लेने को मजबूर होते हैं। इन्हे शरणार्थी कहा जाता है। इसी ब्रिटानिका परिभाषा रूप में कहती है कि, ' शरणार्थी वह है। जिसे उसके निवास से उखाड़ा(प्रताड़ना से) गया, बेघर, अनैच्छिक प्रवासी जो एक सीमा पार कर चुका है और अब अपनी पूर्व सरकार की सुरक्षा नहीं रखता है। 19वीं सदी से पहले एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होती थी। शरण के अधिकार को आमतौर पर मान्यता दी गई और सम्मानित किया गया। यद्यपि पूरे इतिहास में शरणार्थियों की कई लहरें रही हैं। 19वीं शताब्दी के अंत में निश्चित और बंद राज्य की सीमाओं के उद्भव तक कोई शरणार्थी समस्या नहीं थी। 1920 और 1930 के दशक तक राजनीतिक शरण की परंपरा काफी खराब हो गई थी। आंशिक रूप से मानव पीड़ा/यातना के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता के कारण और आंशिक रूप से शरणार्थियों की अभूतपूर्व संख्या के कारण बनकर उभरने लगे हैं।'
               सारकरण में कहें तो, शरणार्थी से तात्पर्य है, शरण में उपस्थित असहाय, लाचार, निराश्रय तथा रक्षा चाहने वाले व्यक्ति या उनके समूह को कहते हैं। इसे अांग्लभाषा में रिफ्यूजी सम्बोधित किया जाता है। इस प्रकार वह व्यक्ति विशेष या उनका समूह जो किसी भी कारणवश अपना घरबार या देश छोड़कर अन्यत्र के शरणांगत हो जाता है,वह शरणार्थी है। 1981 से यूएनएचसीआर भारत में शरणार्थियों और शरण चाहने वालों की सुरक्षा के लिए काम कर रहा है। भारत सरकार के प्रयासों के समर्थन से यूएनएचसीआर भारत के 11 राज्यों में स्थित गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, नीति आयोग, एनजीओ भागीदारों के साथ काम करता है। हाल ही में पड़ोसी देशों में हिंसा और अस्थिरता के कारण पंजीकरण और सहायता के लिए यूएनएचसीआर भारत में शरण चाहने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यूएनएचसीआर के मुताबिक, 31 जनवरी 2022 तक, 46हजार  से अधिक शरणार्थी और शरण चाहने वाले यूएनएचसीआर भारत के साथ पंजीकृत हैं। यानी भारत में 46हजार शरणार्थी हैं।
                बहरहाल, शरणार्थियों के लिए दोनों रास्ते कुआ और खाई के समान हैं। एक ओर जिस देश से वह पलायन कर जाता है। उसके लिए सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर जिस राष्ट्र के शरण में जाता है वहाँ के आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर नज़र कई जांच प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। वहीं रहने के लिए कोई विशेष ठिकाना नहीं और ना ही खाने की कोई व्यवस्था, शरीरिक क्षमता के साथ-साथ स्वयं एवं परिवार की सुरक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव अंदर से तोड़कर रख देता है। लेकिन मन में एक लालसा की यह पूराने देश की तरह क्रूर और वैमनस्यता को आंच से रहित होकर कुछ समस्याओं को झेलकर शांति प्रिय जीवन पाने का लक्ष्य निर्धारित हो जाता है। निर्धारित मापदंडों के बीच वह अपने जीवन को संवारने में लग जाता है। लेकिन विडम्बना यह है कई शरणार्थी ऐसे भी होते हैं। जो राहत शिविरों से बाहर निकलने से पहले भूखमरी में दम तोड़ देते हैं।
              ऐसा नहीं है की शरणार्थियों के आड़ में किसी राष्ट्र के आंतरिक सुरक्षा के ढ़ाचें को तोड़ने का प्रयास नहीं होता है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है की शरणार्थी के भेष में कई बार राष्ट्र विरोधी तत्व भी राष्ट्र में प्रवेश कर जाते हैं। जो किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा क्षेत्र के लिए चिंता का सबब है। वहीं वहीं अवैध शरणार्थियों/घुसपैठिये के रूप में लड़कियों दूसरे राष्ट्र में प्रवेश के लिए जिस्मफरोशी जैसे धंधें आज भी सभ्य समाज में विद्यमान है। राष्ट्र सुरक्षा और दरवाजे़ पर खड़े मदद की गुहार से नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस दौर से गुजरने वालों के लिए यह किसी अदम्य वेदना से कम नहीं है। जो अपने माइग्रेट होने के समय से स्थापित होने की स्थिति में झेलना पड़ता है। वहीं शरणार्थी के बढ़ते संख्या के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधताओं में आपसी टकराव, संयोजन और परिवर्तन के दौर भी देखने को मिलते हैं। आज भी कई लोग एेसे हैं जो अपने राष्ट्र को छोड़कर कर दूसरे राष्ट्र मे शरण लेने के लिए आमादा हैं। भारत वर्ष जैसे विकासशील राष्ट्र में शरणार्थियों का रुझान इसलिए भी अधिक है। क्योंकि भारत वर्ष प्रारंभ से वसुधैवकुटुम्बकम् की भावना से ओतप्रोत संस्कृति का द्योतक है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़