Saturday, May 21, 2022

तुम कोई इंटरटेनमेंट का सामान नहीं हो...!!! : प्राज / You are not entertainment item...!!!


                         (फेमिनिज्म

बेहद रोचक तर्क से वर्तमान के परिदृश्य का एक छोटा पोट्रेट आपको सुपुर्द करने का प्रयास कर रहा हूँ। एक नारी जो समाज में कुछ नया कुछ बेहतर करने की उम्मीदों के तले यदि परिस्थितियों के विपरीत जाने का प्रयास तो करती है,तो अवरोधों की चढ़ाई तो जैसे कटीले काँच के टुकड़ों से बने पहाड़ पर चढ़ने के समान है। जहाँ समाज के कुत्सित मानसिकता से लबरेज़ कुछ लोगों को उस नारी की स्वतंत्रता उन्हों सॉफ्ट टार्गेट से प्रतीत होते हैं। वो कहते हैं ना, सफलता की कहानी संघर्ष और विरोध के बीच पिसकर से निकलती है। हकीकत के तह पर तो ये और भी गंभीर मसला है। कोई स्त्री यदि, किसी लक्ष्य के पीछे लालायित होकर घर से बाहर शिक्षा, रोजगार के लिए बाहर निकलती है। तो पुरुष प्रधानता वाले समाज के कुछ तथाकथित अमानवीय चेहरों को यह बेहद परेशानी खड़ा करने वाली स्थिति को जन्म देती है। निगाहें ऐसे तन जाती हैं जैसे किससे मिल रही है? क्यों मिल रही है? कहाँ जा रही है या कहाँ नहीं जा रहीं और क्यों नहीं जा रही है? सारे प्रश्नों के उत्तर में यदि अकेलापन की संज्ञा में हो। इसके पश्चात तो जैसे, उस स्त्री को मनोरंजन की दृष्टि से लोगों का ताकना, फिर कपोल कल्पना में अंतरंग ख्वाब सहित मानसिक प्रताड़ना का दौर प्रारंभ हो जाता है।
                   ऐसा नहीं है की स्त्री को लेकर लोगों की कल्पनाओं का सागर अभी उमड़ा हो। कुछ अतीत के झरोखों में भी देखने से ऐसी कल्पनाओं का मंथन मिलता है। आपका ध्यानाकर्षण सन् 1500ई. से 1510 ई.के बीच चाहूंगा। जब लियोनार्डो दा विंची द्वारा हेड ऑफ अ वोमेंन की पोट्रेट आइल पेंटिंग पर उकेरा गया। इस चित्र में कर्ली बालों वाली एक स्त्री जो नीचे की ओर देखती हुई। लगभग उदासीनता के भाव लिए जैसे समाज से अपने हक की लड़ाई क्षुब्ध भावी चिंताओं सहित विचार मग्न हो। प्राचीन काल के समय में भी नारी के चिंतन को उकेरने में कई कलाकारों का योगदान रहा। एक अनाम मुर्तिकार जिसनें मोहनजोदड़ो में कांस्य मूर्ति बनाई। इस मूर्ति में नारी के कलेवर से लेकर लोगों की मानसिकता को प्रदर्शित करने की प्रयास किया गया था। संभवतः बुद्धिजीवी वर्ग नारी के इंटरटेनमेंट या मनोरंजन वाली अवधारणा से अनभिज्ञ तो नहीं, उन्होंने इसे अपने कला, सृजन एवं संदेशों में पिरो दिया। वजह केवल इतना की पुरुष प्रधानता से भरे समाज में परिवर्तन शनैः-शनै: ही होगा। लेकिन होगा अवश्य ये सोचकर अतीत के धरोहरों में संदेश छोड़ गए। लेकिन लोगों ने इन्ही संदेशों के धारणा को विपरीत समझने का प्रयास करने लगे।
                  मशहूर पटकथा लेखक रजत अरोरा द्वारा सृजित द डर्टी पिक्चर के एक सीन ने बेहद तालियाँ बटोरी जिसमें नारी को इंटरटेनमेंट... इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट के लिए विशिष्ट विकल्प का अनुनाद किया गया। वर्तमान समय में जहाँ लोगों की मानसिकता के गिरते स्तर का ग्राफ जैसे ऋणात्मक हो गया हो। वहीं मार्केटिंग, ट्रेंडिंग और सोशल सेंसन में नारी के कम होते वस्त्रों की सीमा भी ऐसे एक विचित्र व्याभिचारी समाज की ओर बढ़ने लगा है। विरोध शरीर से बिलकुल नहीं है, और ना ही विरोध का पक्षधर बनना है। हां यह अवश्य ही शरीर का मनोरंजन ढ़ंग से प्रस्तुतीकरण से परहेज़ अवश्य होना चाहिए। यह भी विचार करतें है कि मार्केटिंग यानी बाजारूपन के लिए स्त्रियों को नग्नता ग्राहकों के आँख मूद कर विश्वास करने की भावना को बढ़ती है। तो उन्हे यह भी अवश्य जानना चाहिए की जिस समाज में वे रहते हैं। वहाँ उनका भी परिवार निवास करता है। ऐसे बाजारूपन के वैचारिकताओं की देन हैं कुछ लोगों में कुत्सित मानसिकता का विकास होना। जो अपनी फैन्टासी की पूर्ति के लिए स्वंत्रतता जीवन की ओर बढ़ती नारियों को सॉफ्ट टार्गेट समझने की भूल कर रहे हैं। ऐसे मनोरोगियों को निश्चय ही किसी चिकित्सा से परामर्श अवश्य लेना की आवश्यकता है क्योंकि नारी तो जननी है और सृजना कोई इंटरटेनमेंट नहीं है। 



लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़