(अभिव्यक्ति)
रोज़ाना के किसी शाम को जंगलों के बीच बसे दो गाँवों के बीच जंगल के मध्य एक बड़े से घर नुमा जगह है। जहाँ युवा पीढ़ी के नव जवान युवक-युवतियों का समूह है, बीच में आग जल रही हैं। एक गीत गुनगुना रहे हैं जिसमें श्रृंगार की उत्पत्ति को लालायित करते नगाड़े पर थाप और मांदर के मृदंगना में हृदय में नृत्य की प्रेरणा की ओर अग्रसर हो रही है। गीत के भँवर में एक संदेश भी है जो उस जनजाति के परम्परा और सांस्कृतिक धरोहर की पहचान बतला रही है। नाचते-थिरकतें युवा धड़कनों में माधुर्य की ताल पनपन रही है। गीत को स्वर देती जनजाति युवती के बोल को ध्वनि युक्त करते युवकों के द्वारा वाद्ययंत्रों के थाप पर पूरा वातावरण नृत्य, उत्सव और आनंदित हो उठा है। जहाँ एक दूसरे से परिचित होते युवाओं में कनिष्ठों के प्रति प्रेम और वरिष्ठों के प्रति सम्मान का भाव है। इस संगीतमय माहौल के बीच, कुछ दूर युवतियाँ खाना बना रही है। ये भोज्य रात्रि के भोजन के रूप में सभी को परोसा जायेगा। आपसी मित्रता और संबंधों में मितव्ययिता का प्रतिनिधित्व करती बेला में युवकों का अपने समूह युवकों के परिचयात्मक विवरण एवं दिनचर्या के संबंध में चर्चाओं का दौर भी संकलित है। गीतों के गान के बीच एक युवा संभवतः सभी में वरिष्ठ युवा अपनी नव पीढ़ी को अपनी परम्परा, मर्यादा और पूर्व युवा साथी से मिले ज्ञान को सभी के बीच विस्तारण का उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। सभी युवक-युवती उसकी ओर ध्यानाकर्षण दे रहे हैं। समसामयिक तर्कों जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के बातों के बीच, हसी मजाक और ठीठोली भी अनिवार्य है। बंदिशों के बगैर भी शिष्टता इतनी की एक दूसरे के सम्मान और समूह के सदस्यों में स्थान की महत्व पर विशेष ध्यान दिया गया है। जिसमें छोटे-बड़े सभी युवा अपनी बात बेझिझक और तर्कों पर विमर्श कर रहे हैं। प्रेम, कला, संस्कृति और वर्तमान के अनुकूल जीवन की रुपरेखा के संदर्भ में युवा अपने विचारों का आदान-प्रदान करते दिख रहे हैं। ऐसा भी नहीं है की यह स्थिति शिष्टाचार के अति पालन से बोझिल लगने लगे।इससे थोड़ी पृथक यह युवा-गृह प्रेम का प्रसारण भी कर रहा है। जहाँ युवतियों को अपने वर चयन की पूरी आजादी है। आज किसी युवक ने लकड़ी का कंघा बड़े प्यार से अपने कला का प्रदर्शन करते बनाया था। इसी युवा गृह के किसी युवती के पास वह कंघा है। ये सिर्फ कंघा नहीं अपितु विवाह के संबंध में प्रतिकात्मक स्वयंवर चयन का वस्तु भी है। अर्रे...! अर्रे....!!! दिखा- दिखा वो पारम्परिक वेशभूषा पहने नाचती युवतियों के झूंड में से एक लड़की है। वो बार-बार अपने चयन किये लड़के के तरफ देखे जा रही है। इसी बीच उस लड़की के बालों जुड़े में उस लड़के की नज़र पड़ी, देखा उस लड़की ने वहीं कंघा बालों में लगाया है जिसे उसने बड़े सिद्दत से बनाया था। इसे आपकी भाषा में प्रेम का इज़हार, चयन और विवाह के लिए स्वयंवर का चयन भी कह सकते हैं।
ये पूरा दृश्य किसी कहानी या पटकथा के सृजन का हिस्सा नहीं है। ये जनजातीय परम्परा में महत्वपूर्ण घोटुल परम्परा का है। घोटुल या युवा केन्द्र, आज भी बस्तर के जंगलों में जारी है। अपनी संस्कृति को बचाने के प्रयास में लगे आदिवासियों के इस अनुठी परम्परा से लोगों अनभिज्ञ है। वहीं कुछ तो घोटुल को अल्पज्ञान के अवधारणा में कलंकित करने के लिए आलोचनाओं के बाणों की वर्षा करने से कोई गुरेज़ नहीं करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो ऐसी प्रथाओं, परम्पराओं को बीना जाने ही विरोधी स्वर तान खड़े होते हैं। घोटुल जो एक बड़े कुटीर में स्थापित होता है। जिसमें पूरे गाँव के बच्चे या किशोर सामूहिक रूप से रहते हैं। यह छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश के पड़ोसी क्षेत्रों के गोंड के माड़िया उपजाति के ग्रामों में विशेष रूप से मिलते हैं। दूसरे शब्दों में, घोटुल जनजातीय गाँवों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र होता है। घोटुल की प्रथाओं के संदर्भ में विभिन्न क्षेत्रों और जातियों में पृथक्करण दिखलाई पड़ता है। जैसे कुछ में किशोर-किशोरियां का समूह रात को घोटुल में निवास करते हैं। कुछ में दिन भर रहकर रात्रि को अपने घर लौट जाते हैं। कुछ में वैवाहिक प्रस्ताव की प्राथम्यता यही होती है। बहरहाल, घोटुल में सार करण के रूप में देखें तो यह युवा पीढ़ी को आप ने जाति के निहित संविधान, विधान, परम्पराओं और प्रथाओं से अवगत कराने वाला शिक्षा केन्द्र है। जहाँ इन युवा मस्तिष्कों को भावी को अनुभवों के लिए बौद्धिक, सामाजिक और मैत्रीपूर्ण व्यवाहर शैली के लिए तैयार किया जाता है।
वेरियर एल्विन कहते हैं कि, 'घोटुल का संदेश- कि युवाओं की सेवा की जानी चाहिए, कि स्वतंत्रता और खुशी किसी भी भौतिक लाभ से अधिक मूल्यवान हैं, मित्रता और सहानुभूति, आतिथ्य और एकता सबसे पहले महत्व के हैं, और सबसे बढ़कर मानव प्रेम - और उसकी शारीरिक अभिव्यक्ति - सुंदर, स्वच्छ और कीमती है, आमतौर पर भारतीय है।' श्री एल्विन सहित कई ऐसे व्यक्ति विशेष भी हुए जिन्होंने घोटुल के प्रति विरोधाभासी विचार प्रकट किए हैं। वहीं कुछ युवाओं में इस प्रथा को लेकर विभिन्न तर्क रखे जा रहे हैं। बहरहाल, पीढ़ी-दर-पीढ़ी से सास्कृतिक संचरण के संसाधनों में घोटुल का अद्वितीय स्थान है। जिसका एक निश्चित नियम और विधान है। इनको पालन नहीं करने वालों के लिए भी उसमें दंड का समावेश है। जो किसी भी अनुचित कार्यों के लिए रक्षण का कार्य करती है। समय और नगरीकरण के दौड़ी पहर के बीच घोटुल का अस्तित्व सीमितता की ओर अग्रसर हो रहा है। लेकिन आज भी इस सांस्कृतिक विवि की आभा कुछ जनजातियों के द्वारा संरक्षण करने का प्रयास जारी है। शेष समय के फेर में इस प्रथा का अंत या वर्धन छिपा है। जहाँ वरिष्ठजनों के द्वारा इसे संजोने का प्रयास किया जा रहा है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़