(विचार)
पानी जीवन के आवश्यक तत्वों में से एक है। वर्तमान ही नहीं अतीत के समय से हमने पानी के महत्व को समझा है। पानी जो नदियों में कल-कल करती प्रवाहित होती है। पानी की महत्ता का अनुमान यहीं से लगा सकते हैं की जहाँ पानी वहीं नगरों की स्थापना हुई। इस कड़ी में नदियाँ बहुत बड़ी सहायिका के रूप में रहीं। जहाँ नदियाँ मिलती वह संगम, जहाँ नदियाँ समानांतर होती वहाँ बीच का हिस्सा दोआब और जहाँ नदी नहीं नहीं वहाँ जीवन की कल्पना नहीं। इसी अवधारणा पर आधारित सिन्धु घाटी की सभ्यता के नगरों को ही देख लीजिए। इण्डस नदी के किनारे बसने वाली सभ्यता सिंधु सभ्यता कहलायी। भौगौलिक उच्चारण की भिन्नताओं की वजहों से इस इण्डस को सिन्धु कहने लगे, आगे चल कर इसी से यहाँ के रहने वाले लोगो के लिये हिन्दू उच्चारण का जन्म हुआ। इस सभ्यता के जीतने भी नगर हुए, वे किसी ना किसी नदीं के तट के किनारे बसेते चले गए। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो के खुदाई से प्राप्त अवशेष और नगर व्यवस्था इसके उदाहरण हैं।
नदी शब्द के शब्द विन्यास को तोड़ने की प्रयास करें तो प्राप्त होता है ‘नद्’, जिसका अर्थ है- आवाज करना। नदियों में निरंतर प्रवाह के लिए प्रेरित ये प्राकृतिक जल स्त्रोत उद्गम से पतन तक कल-कल करती आगे बढ़ती हैं। कल-कल की ध्वनि होने के कारण इस रेतीली जल राशि क्षेत्र को नदी की संज्ञा दी गई है। वहीं नदियों के नाम अर्थयुक्त और सुंदर हैं, जिन पर देवभाषा संस्कृत की स्पष्ट छाप है। ये नाम प्राचीनकाल के मनीषियों या भूगोल शास्त्रियों ने रखा है। भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि का आधार है- नदियां। हमारी सभ्यता का उदय नदियों के किनारे ही फलित हुआ है। इन्हीं के कारण भारत भूमि शस्य श्यामला बन पाई है।
वर्तमान भारत में 8 बड़े नदियों के प्रवाह तंत्र के साथ 400 से अधिक नदियाँ हैं। एक ओर नदियों में जल स्तर के लगातार गिरने की स्थिति में नदियाँ वर्ष के दो-चार माह ही पानी से भरे दिखते है। शेष समय में शुष्कता और जलते रेत के अवाला कुछ भी नहीं। वहीं दूसरी ओर जो नदियाँ प्रवाहित हो रहीं है। उसमें गंदे पानी, कचरे और अपशिष्टों का डम्पिंग करना नदी के जल को बजबजाते गंदी पानी में परिवर्तन करने के समान है। पहले जहाँ लोग नदियों के पानी को पेयजल के रूप में उपयोग करते थे। आज तो ऐसी नदियों के पानी को मुंह में लेना भी संभव नहीं है। बढ़ती जनसंख्या के साथ प्यास भी बढ़ती है, और प्यास बुझाने का काम करती हैं नदियाँ। इसके लिए बड़े शहरों में पानी पहुचाने के लिए बड़े-बड़े बाँध जल संचयन केन्द्र नदियों के तट पर कई जगहों पर देखे जा सकते हैं। जिन नदियों को कल-कल के ध्वनियों में मौज के लिए जाना जाता था। उन्ही नदियाँ पर जगह-जगह बाँध उठ खड़े हुए हैं। कभी पानी के ऊपर होती राजनीति में दो राज्यों के प्रधान लड़ पड़ते हैं। कभी पानी बचाओं- नदियाँ बचाओं के नारे जोरों पर होते हैं। लेकिन इस दौर में भी नदियाँ का दोहन निरंतर जारी है। इस अतिक्रमण का अंदाजा इस तर्क से लगा सकते हैं की कई छोटी नदियाँ तो विलुप्त हो चुकी हैं। वहीं कई छोटी नदियाँ रेत माफिया के हत्थे चढ़कर बलिदान हो चुकी हैं।
नदियाँ जिनके नामकरण में हमने पवित्रता और शुद्धिकरण का प्रमाण खोज निकाला। हमने जिन जल राशियों को जीवन कहा है। आज उन्ही जल राशियों, उन्ही नदियों, उन्हे सभ्यता के मूलाधार जननी को विलोपन की ओर ढ़केल रहे है। नदियाँ में हो रहे लगातार डोपिंग शेष बची नदियाँ को पाट कर रख देंगीं। वहीं रेत के खनन से लेकर पानी के पूर्ति के लिए नदियों के हृदय विच्छेदन तक हम बाज नहीं आ रहे हैं। संभवतः इसके भावी परिणाम हमें ही भोगने होंगे। नदियों के संरक्षण के लिए हम सभी को मिलकर आगे आना होगा।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़