(व्यंग्य)
बचपन में कोई चीज़ अगर पिता जी से मांगने की हिम्मत दिखा देते थे। यदि पिता के नजरिये में यदि वह चीज वास्तविक, लाभकारी और उपयोगी सिद्ध ना होता था तो, पिता जी पूराने ब्लैक एंड वाईट टीवी के चैनल बदलने के पारम्परिक मुद्रा में कान की खीचाई करने में देर नहीं लेते थे। उस समय तो पिता गब्बर और मैं और मेरा भाई जय-वीरू जैसा महसूस करते थे।
लेकिन पढ़ाई-लिखाई के नाम पर चाहे जो मांगें पिता जी अवश्य ला देते थे। उस दिन पिता जी बिलकुल हिंदी माध्यम मूवी के पिता के तरह लगते थे। यार मैकेनिज्म ही समझ नहीं आता था, पिता जी में अमरिश पुरी से लेकर अनुपम खेर तक सारे किरदार इनबिल्ट थे। जब जवानी के दहलीज के थोड़ा आगे पिता जी के चप्पलें बराबर हुए तो समझ आया की पिता जी बड़े सोंच समझकर फैसले लिया करते थे।
बहरहाल ये तो रही फैसलों की बात मगर आज कल एक गज़ब ही जीद और उसकी पूर्ति के संदर्भ में बात करना चाहूँगा। जहाँ दो साल तक हमने कोविड-19 तो झेला और झेल भी रहे हैं। लेकिन विद्यार्थियों के लिए कोविड के दौर में ऑनलाइन परीक्षा का विकल्प तो जैसे धन की कामना करने वाले उस लालची की है जिसके हाथ में कुबेर के खजाने की चाबी दे दिया गया हो। ले लूटने जितना मन किया। 3इडियाट्स के रंणछोरदास जी बोलते रह गए, 'काबिलियत के पीछे भागो, कामयाबी तो झक मारकर पीछे आयेगी।' लेकिन नहीं हमें तो प्रतिशत ऐसे चाहिए जैसे की सौ फीसदी में एक दो प्रतिशत ही कम रह जाये। शिक्षा के पावन उत्सव परीक्षा का लगभग मजाक का मुशायरा चलता रहा, और खासकर उच्च शिक्षा के विद्यार्थी जो फस्ट ईयर भी पास होने के पहले दो बार अपना मूहँ धोते वो भी फाइनल की दहलीज पर खड़े होकर कर रहे हैं। 'जहाँपनाह तुस्सी ग्रेट हो, तौफा कुबुल कीजिये..!'
इस बार लगा की फाइनल में लटके जायेंगे। क्योंकि परीक्षा वर्चुअल नहीं धरातल में होना तो तय था। मगर फिर भतीजों को काका की याद आ ही गई। भतीजों ने पूकारा, 'कका, क्या गज़ब ढ़ा रहे हो। परीक्षा वर्चुअल नहीं धरातलीय करा रहे हैं।अपने विवि के वीसी तो हमको लटकाने पर तुले हैं,क्या ऐसे ही रिश्तेदारी निभा रहे हो? ' इस बात पर ज्यादा गौर ना करते हुए चाचा जी मुस्कुरा गए। पहले शिचुएशन देखा फिर बोले घबराना नहीं, 'कका अभी जिंदा है।'
इस बार तो जैसे अधपके आम बाजार में उतारे जायेंगे। ग्रेजुएशन के नाम पर 12वी फ्रेसर कल के प्रोफेशनल कहलाएंगे। रोजगार के लिए फिर अपने को क्या चिंता है, अभी तो 'कका जिंदा है।'
व्यंग्यकार
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़