किसी क्षेत्र विशेष को जिला बनाने से विकास के बहुत से समीकरण सापेक्ष सामने आते है। जैसे उस क्षेत्र में प्रशासनिक पकड़, नव रोजगार सृजन, योजनात्मक, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, संस्कृतिक संवर्धन के लिए भागिरथ प्रयास संयोजित होते है। आजकल छत्तीसगढ़ के पृष्ठभूमि में एक विवाद बेहद गहराया हुआ है। वह विवाद नव जिला के निर्माण के लिए सांरगढ़-बिलाईगढ़ के सागर मंथन का है। नामकरण से लेकर कार्यालयों के स्थापना के स्थलों तक और जातिगत समीकरण के तानेबाने के बीच राजनीति के स्वरों के टकराव हो रहे हैं। पूरा मामला तो वैसे अब माननीय उच्च न्यायालय के अदालती कटघरे में दलिलों और तारीख-पे-तारीख वाले पैरवी की ओर है। जो वर्ष 2022 में सारंगढ़ के जिला निर्माण को खट्टाई में डालकर चुनावी वर्ष 2023 तक की सीढ़ी तक खींचे जा सकते हैं।
राजनीति के थाप पर यदि अपने-अपने पक्ष की बात दूसरे पक्ष पर ना उड़ेला जाये तो, यह कैसे संभव राजनीति हो रही है? जैसे जंगल में व्याघ्र का होना भय का प्रमाण नहीं अपितु व्याघ्र की दहाड़ दहशत बनाए रखता है। ठीक वैसे ही राजनितिक गलियारे में जिले के निर्माण के संदर्भ में एक- दूसरे पर छींटाकाशी का दौर भी चल रहा है। वहीं आपत्ति करने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ, होना भी न्यायोचित नहीं क्योंकि स्वच्छ लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है। यदि मर्म है तो फास होना भी जरूरी है। हो सकता है उनका नजरिया कुछ नया तलाश निकाले।
जिला का गठन होने का तात्पर्य है पूर्व के जिला क्षेत्र से अलग होकर नव जिला का बनना है। सीधे शब्दों में कहें तो,स्थापित जिले से भिन्न होकर नव जिला का आकार-शाकार होता है। लेकिन नव जिले के सीमावर्ती इलाकों के लोगों के मन में पूर्व जिले में बने रहने की इच्छा सामाजिक,राजनितिक, क्षेत्रीय, या जातिगत समीकरण के मद्देनजर भी देखने को मिल ही जाता है। कई स्वरों में एक प्रधान स्वर यह भी कहता है की जिला निर्माण में केवल सारंगढ़ नाम से जिला बने, प्रशासनिक अमलों के दफ्तरों के बटवारे से स्वाभाविक है कार्य प्रभावित होंगें।
दलिलें और विवादों के बीच, एक आवाज जो जिले के गठन की घोषणा से झुम उठा, वह हुजुम जो किसी भी कार्य के लिए कोसो दूर जिला मुख्यालय की यात्रा करते थे। वे लोग जिन्हे जिले के गठन के साथ रोजगारोंमुखी अवसर दिखे, वे व्यवसायी, उद्यमी जो नव जिला के कलेवर में अपने भावी कल के सुखद फ्लेवर तलाश रहे हैं। उनके लिए यह दौर आकांक्षाओं को तोड़ने वाला साबित हो रहा है। वे लोग जिन्होंने नवीन जिले के नाम से अपने आप को पहचाने जाने से गर्व महसूस करते, उन्हें अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा। कुछ दिनों तक सायकिल के पहिए और ज्यादा उस युवा को घुमाने होंगे। क्योंकि जिले के गठन के लिए अभी रस्साकशी की पारंपरिक राजनीति जारी है। मौन मुस्कान लिए सारंगढ़ की जनता सब कुछ देख रही है। विकास को आमंत्रण देते, अभिनंदन करते वह क्षेत्र स्वागत् भाव से कह रहा है, 'आईये हमारे शहर में आपके स्वागत् का क्षण टटोल रहा हूँ। मैं सारंगढ़ बोल रहा हूँ।'
लेखक
पुखराज प्राज