Sunday, January 2, 2022

आकर्षण स्वामित्व चाहता है वहीं प्रेम निर्बाधता : प्राज / Attraction wants ownership while love seeks uninterruptedness: Praaj


                                    (अभिव्यक्ति

आकर्षण के संदर्भ में परिभाषित स्वरूप में कई उदाहरण हैं। जैसे वह गुण जिसके कारण लोग किसी वस्तु, व्यक्ति आदि की ओर आकृष्ट होते हैं या खिंचे चले जाते हैं। मगर हम बात कर रहे हैं प्रेम संबंध और आकर्षण संबंध के बीच स्थापित संकीर्ण अंतर, जो वास्तविक और अवास्तविक सत्य के धरातल की परख जागृत करता है। जहाँ प्रेम की एषणा यह है कि प्रिय सुखमय रहे, वहीं आकर्षण तो स्वहित के लिए प्रेरित करता है। कभी विचारों के मेंघों में दैहिक सुख संचयन के लिए अतितॄष्णा का होना भी आकर्षण के सोदाहरण के स्वरूप में समझा जा सकता है। जबकी प्रेम की औदार्य यह है कि वह प्रिय के हृदय में निश्चित स्थान का ग्राही होना चाहता है। ऐसा तो नहीं है की प्रेम में भौतिक सुख ही सबकुछ हो। मगर आकर्षण में यह तय है कि भौतिकवाद, रज सुख भोगी होना चाहता है। कहीं ना कहीं हाड़ मास का मोह झलकता ही है। इसे ऐसे भी समझने का प्रयत्न कर सकते हैं कि, किसी व्यक्ति विशेष से दो पल के लिए नज़रें टकराई फिर यदि शारीरिक संरचना का मोहपाश इतना तेज हुआ कि नग्नता को भी तार-तार कर दे और अश्लील अंतरंग की सीमा यदि उच्च कोटी की हो,तो निश्चय है यह आकर्षण हैं प्रेम नहीं। यदि इसके विपरीत यदि उस व्यक्ति विशेष की छवि मनोहारी लगे, जिससे हृदय में बसंत की शीतलता और बारिश के पहली बुँद से महके मिट्टी की सौंधी महक के समान अपनत्व का बोध हो, वास्तव में वह प्रेम है।
             आधुनिक कलयुग का ही प्रताप है कि आकर्षण को प्रेम की संज्ञा दिया जा रहा है। नरयान साधारण भाषा में कहें तो बाइक पर सवार दो प्रेमी युगल के बीच इतना भी गैप ना हो की हवा भी पार जा सकें। वहीं टाईट हग वाली फीलिंग के साथ, राह पर लोगों के नयन सुख बनना कोई प्रेम नहीं है। और नहीं ये कहना 'तु मेरी बंदी है, जो कुछ भी करती है दिन भर, कहाँ जाती है? किससे मिलती है अपडेट्स देते रहना?' यह कहना एक ओर तो भरोसे को चुनौती देता है। वहीं दूसरी ओर एक-दूसरे को खोने का डर, आज कल की भाषा में कहें तो ब्रेकअप वाला मसला बन ही जाता है। और ब्रेकअप तो प्रेम होता ही नहीं है यह तो सौदा ही होता है जो पसंद नहीं आये तो तोड़ ही दिया जाता है। जबकि प्रेम तो सीखाता है कि निजीकरण, स्वामित्व विचारों से भिन्न विश्वास की उच्च श्रृंग पर चमकते स्वर्ण प्रकाश के समान है। जहाँ सिर्फ प्रेम शांति और हृदय के अंतकरण में अनंत उत्सव की ओर सदैव पग बढ़ते रहते हैं। बदनाम करने वाला कॉन्सेप्ट तो जैसे प्रेम में होता ही नहीं है। क्योंकि बदनाम तो अक्सर हरकतों से लोग होतें और धुमिल प्रेम को कर दिया जाता है।

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़