Tuesday, January 5, 2021

जिन्दगी..... आज की तो, कट गई : प्राज

यार, बिखरें ख़्वाबों को समेट लो,
ये निशा गहराईयों को आमादा है। 

थककर चूर,काम के जद्दोजहत में, 
सपनों में खूब जियेंगे,नींद ज्यादा है।

मयकदे के रौनक ने इत्तला दिया है, 
गमज़दा यहाँ,शय से घिरा प्यादा है। 

कभी पढ़ लें किताब-ए-जिंदगी आप, 
तू तू-मैं मैं , के पन्नों से भरा आधा है।

माना की,ये मुमकिन नहीं जीतें जहाँ, 
यहाँ तो, लती  हर  एक शहजादा है। 

भाड़े की रौनक से, मुस्कुराना है अदा, 
किसी ने धीमें आवाज में कहाँ :-
"साहब ! यहाँ अदाकारों भीड़ ज्यादा है।" 

यार, बिखरें ख़्वाबों को समेट लो,
ये निशा गहराईयों को आमादा है। 
                  @प्राज