देखों , पहलुओं के चर्चों में,चर्चे हैं।
सुना है , चर्चों में शुमार हो रहे हो।
महफ़िल चाहे कोई हो, अलहदा...!
पढ़े इतने गए की अख़बार हो रहे हो।
इन्ही पंक्तियों के साथ शुरुआत करते है। प्रायः सुबह के चाय के साथ अख़बार पढ़ने का आनंद ही अलहदा है। कभी हॉकर पेपर डालने में देरी कर देता है, तो दिन की प्राथम्यता में मानों कुछ कमी सी रह जाती है। अख़बार जो संदेश देता है, सुचना देता है, सतर्क भी करता है और प्रेरणा देता है। समाज में घर रहे दैनिक घटनाओं का संकलन होता है। समाचार पत्रों की भाषा का प्लाट भी ऐसे तैयार किया जाता है कि समाज के किसी भी वर्ग के लोगों को आसानी से समझ आ सकें।तभी इस संदर्भ में पश्चिम के चिंतक री.सी. हापवुड लिखते हैं की, "उन महत्वपूर्ण घटनाओं की जिसमें जनता की दिलचस्पी हो, पहली रिपोर्ट को समाचार कह सकते हैं।" वहीं भारतीय विचारकों में डॉ. निशांत सिंह कहते है, "किसी नई घटना की सूचना ही समाचार है।" यानी कह सकते है कि, "जिसमें नयापन हो, जिसका उल्लेख समाज से हो, और जिसकी प्राथमिकी स्वरूप में रिपोर्ट, जनता को दिया जाये वह समाचार है।"
समचार के परिभाषा के चक्र से बाहर निकलते ही ख़्याल आया की एक दुनियाँ में पहली बार ख़बर कैसे और किसने दी होगी। आईये चलते हैं अतित के आईने में, पत्रकारिता के आरंभ के संदर्भ में साक्ष्य १३१ ई. पूर्व रोम प्रारंभ मिलते हैं। जहाँ पत्थर या धातु के पट्टी जिसे "ACTA DIURNA" यानी दिन की घटना का उल्लेख किया जाता था। जिसे नगर के मुख्य स्थानों में रख दिया जाता था। वहीं १५वीं शताब्दी में योहन गूटनबर्ग के छपाई के मशीन ने तो जैसे समाचार प्रकाशन के लिए दरवाजे ही खोल दिये। इसी संदर्भ में युरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में योहन कारोलूस नाम के व्यापारी ने सूचना पत्र निकलवाकर १६०० में प्रकाशित करता था। फिर १६०५ में समाचार-पत्र छापने की मशीन से पहला समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ, जिसका नाम था- रिलेशन', यह विश्व का प्रथम मुद्रित अख़बार है। भारत का पहला समाचार-पत्र जेम्स आगस्टस हिक्की ने १७८० में प्रकाशित किया, जिसका नाम था द बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर। तथा भारत के स्थानीय भाषा में प्रकाशित अख़बार की बात करें तो ३० मई सन् १८२६ में उदन्त मार्तंड समाचार(अख़बार) को पंडित कुमार शुक्ला ने शुरू किया। पहले संस्करण में ५००+ प्रतियाँ प्रकाशित हुई थी।
वहीं हमारे छत्तीसगढ़ में सन् १९०० में पेंड्रारोड से मावध राव सप्रे के सम्पादन में मासिक पत्रिका "छत्तीसगढ़ मित्र" का प्रकाशन हुआ। छत्तीसगढ़ के पहले अख़बार होने का गौरव इसी पत्रिका के नाम पर दर्ज है।
ओह्ह नहीं, बातों ही बातों में पत्रकारिता के सच्चे सेवकों का उल्लेख करना ही भूल गया। ये सच्चे सेवक यानी वे पत्रकार जो केवल सच लिखना जानते हैं। जो सच के लिए, दुनिया से लड़-भीड़ते हैं। एक समाचार के लिए एक संवाददाता ना जाने किन-किन गलियों, दफ्तरों और चौक-चौराहों में दिन भर गुजारने के पश्चात् शाम को खबरों को इस रूप में तैयार करते हैं की वह सर्वपाठनीय, सत्य और सर्वनिष्ठ हो। बहरहाल, वर्तमान समय में प्रेस एक्ट तथा आर. एन. आई. जैसी संस्थाएं समाचारों के उत्थान एवं उन्हे पंजीयन से लेकर, निर्भीक होकर पत्रकारिता के लिए संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। जो एक स्वच्छ और सत्यवान मीडिया के लिए आवश्यक है।
आपका
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़
संदर्भ:-
०१. द हिन्दू अख़बार
०२. विश्वकोश
०३.पत्रकारिता: इतिहास और प्रश्न/ कृष्ण बिहारी मिश्र
०४. आर. एन. आई.
०५. जागरण डॉट कॉम
०६. छत्तीसगढ़ ज्ञान डॉट इन
०७. गुगल बुक डॉट कॉम
०८. मीडियम जर्नल