Tuesday, March 31, 2020

दूसरा सुमित्र- कवि पुखराज यादव "प्राज" /written by pukhraj yadav praj

संबंधों की पराकाष्ठा,भूले बिसरे हम।
गढ़ प्रतीची मन, बने कैसे मिसरे हम।

आर्यवर्त की धरा पर, संबंध थे पर्वत,
बनना था सौमित्र पर,बने तिसरे हम।

अमरगाथा को नहीं कभी लिए माथा,
जाना था पथिक सा, हुए बहुतेरे हम।

एक गरिमा,एक उच्चता चंद शब्दों में,
हरि को हरै सुमित्र वचन,सुनौ रे सम।

देख आभरण वैदेही,हरि पूछे स्वउर से,
जाने जेवर किनके,बिछिया जाने हम।

माता-पुत्र की परिभाषा वैदेही-सुमित्र,
जाने कैसे वर्तमान में, लिए अंधेरे हम।

जाने कौन?लिखे है कलयुग की कथा,
द्वारे-द्वारे,सारे मतिभ्रमक के मारे हम।

                   पुखराज प्राज
                   9981344493