नक्शे किस्मतों वाले ढूंढ़ते हैं चलो,
क्या पता किस मोड़ पर ठहरा हो।
कागजी किस्ती भी चल निकलती,
पानी में जो उफान और अदम्य हो।
रसाल,इमली देख आमादा जीह्वा,
असर जोरदार ज्यों करारा लगा हो।
मीट्ठी भी सौंधी महक उठती है त्यों,
ज्यों बरखा में मिलन तप भरी.. हो।
और उछलकर इंतजार में और मजा है,
जो गाड़ी छूक-२ करती लेट आती हो।
मेरे घर ताला लगाना बड़ा महगां पड़ा,
जाने किस राह चोर नजराते खड़े हो।
चल खोज करें, साधक सा श्रम करते,
क्या पता लकिरों में मेहनत ही लिखी हो।
✍पुखराज प्राज