Saturday, June 8, 2019

1000रुपए में पैसौं का पेड़ -कवि पुखराज यादव

भौतिक आवश्यकताओं के पूर्ति के बोझ तले दबे, पिता की नींद उड़ी थी, पुत्र कहता है- "पिता जी कुछ सुनाओं ना!!!, कोई कविता कोई कहानी??"

पिता- "पैसे के पेड़ की कविता सुनोगे"
पुत्र- "सच्ची, पैसों का पेड़...!!"

पिता ने कहा- "हां बेटा सच्ची का पेड़"

हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।
जरूरतें जितनी,सारी की सारी पूरी होगी।
खनखनाते सिक्के और सोने की गिन्नी होगी।
हर लफ्ज को एक्चुअल में दर्शाता हूं।बस,
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।१

जैसे ट्रेफिक भीड़ में,जर्बन के कटोरे में,
कोई बेताज,बाल अभिनेता रोकर गाता है।
ठोकरों,गालियों,और हादसे का कोई डर नहीं,
बस एक रूपये दे दो, की रट्टा लगाता है। वैसे
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।२

गिनते नहीं थकते नुमाईशों की फरमाईशें,
बार बालाओं की दर्द को बतलाता हूं।
शाम के बाद,दिन गुजारने,रोज रात बिक जाता हूं।
किसे परवाह हां मगर तुम्हे सुनाता हूं..!
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।३

मुद्रा को भारत में रूपया,बांग्लादेश में टका,
अमेरीका में डालर,ब्रिटीश में पाऊंड,
नार्वे में क्रोन, स्वीडन में कोना, चीन में हुआन,
आर्जेंटिना में पेसो, इजराल में शेकेल कहते हैं।
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।४

पैसे से क्या नहीं खरिदा जा सकता है?
डिग्री,ओहदा और सौंक बेहूदा सबकुछ।
जनतंत्र में पैसा ही सेंध लगाता है।
पैसे के दम पर सरकार बदल जाता है,
पैसे से कार,उपकार,सम्मान,तिरस्कार,
सभी जगहों पर पैसे में भार पाता हूं।
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।५

हां ये वहीं पैसा है,जो खिनक का मेहनत है।
ये वहीं पैसा है जो,तन्ख्वाह की शक्ल में आता है।
हां वहीं पैसा जो मज़दूर,श्रम बेचकर कमता है।
ये वहीं पैसा है,जो घर-घर चुल्हें में आग पहुचाता है।
हां वहीं पैसा जिसे देख,अच्छे-अच्छों का,
ईमान डगमगाता है।
वहीं पैसा है जो,
सब बर्बाद करने उतारू हो जाता है।
पैसा ऐब और गुरुर सिखलाता है।
हजार रूपये दो,पैसों का पेड़ दिखाता हूं।६

पैसा ईश्तिहार,पैसा व्यवहार,
पैसे से टेबल से टेबल फाईल सरकती है।
महंगा ही सही मगर,पैसे से पैसा बिकता है।
आओं पैसों का अंम्बार दिखाता हूं,
कभी कभी ये पैसा, सरकारी योजनाओं का,
हाथ-पैर सिर सब बन जाताहै।
कागज पर खिची जाती है योजनाएं,
और योजना समेंत,पैसे के लिए लपेटा जाता है।
जनता चाहे मरती है तो मरे,पर पैसा बोला-
मगर परिशुद्ध रूप में घोटाला कहलाता हूं।
हजार रूपये दो, पैसों का पेड़ दिखाता हूं।७

                        -कवि-
                    पुखराज प्रॉज
                   9977330179