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Monday, May 20, 2019

शौर्य-मंथन


कठनाईयां और भी चुनौतियाँ नाप देंगी।
हे ! वीर अभी हौसला पस्त ना होने दो।
माना यह क्षण भी है शौर्यगान का मगर,
पताका रथ का अभी ना शिथिल होने दो।

चढ़ते रहें ज्वार बनकर रक्त में मनोबल,
अभी से लहरों में लोप....ना पिरोने दो।
और प्रहार होगा,नियति लिखी है भाग भरकर,
अभी बाजूओं को आलस्य नहीं भिगोने दो।

चढ़कर जोश और बोलेगा...दहाड़ेगा... अए वीर,
ताव दो मूंछों को,तान भरो भृकुटी भर-भर,
आंखों में सारा गगन हो...थल और जल..!
विजयी श्री गाथा लिखते चलो रक्त भर-भर।

और चींखेगा रण में मत खाकर शत्रु..!
हृदय में द्रवित ना तुम तनिक होने दो।
इस पर खड़े नदी के ज्वलंत धार पर,
पार जरा जल-जल कर खूद को होने दो।

ललाट पर चमक हो,और रक्त का तिलक,
रण भी भयांकर हो ऐसा प्रबंध होने दो।
यमदुतों के बाजूओ में जड़त्व होगा फिर,
बस तुम तीर प्रहार ना कम..... होने दो।

अभी तो तेज दोपहर बाहें फैलाए मिले है।
शाम की चिंता क्यों, शौर्य विस्फोट होने दो।
और लिखी जायेगी गाथा अमर स्वर्ण स्याह से,
कर्म का बीज है अंकुरित देख प्यारे अभी,
विशाल वट सा प्रसार तनिक.... होने दो।

        ✍पुखराज यादव