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Tuesday, April 23, 2019

धीरे-धीरे किताब हो रहे_ by कवि प्रॉज



पन्ने दर पन्ने चस्पा हो रहे,
जिन्दगी में ख़्वाब और,
ख़्वाबों में जिन्दगी के...
मीठे-कड़वे अहसास हो रहे।

इल्म और इत्तला के फासलें,
अब मायने से लो, जी पिरो रहे।
किसी ने कहा,किसी ने सुना,
मगर हम तो भोगी अभी हो रहे।

कभी ऊंचाईयां, कभी गर्ताभाष,
कभी मखमली सेज,कभी बेहाल।
बैरंग चिट्ठी,बैरंग पता और बैरंग से,
मेहमां मेरी जाँ आजकल हम हो रहे।

तन्हाई ने चुपके, पढ़ी डायरी मेरी,
मुस्कुराती,लजाती,शर्माती और....
फिर आँखे भर आती उसकी पढ़कर,
फिर बोली-
आप तो धीरे-धीरे किताब....हो रहे।
आप तो धीरे-धीरे किताब....हो रहे।
            ✍पुखराज यादव