किसी ने पत्थर बरपाये होंगे,
बेवज़ह लहर नहीं दिखते यों।१
कुछ तो मजबूरी रही होगी री,
तार हो निहाई नहीं बिकते यों।२
चौपट कर रहा है कुछ ना कुछ,
पुष्प असंगती ना खिलते यों।३
इधर-उधर हर तरफ चर्चा है,
मै और तू, गर ना झगड़ते यों।४
और कितने चढूँ,अरूणशिखा,
ज्ञानी होते तो न टकराते यों।५
बड़े इश्क करने निकले थे वो,
हवा होते तो,ना कतरे जाते यों।६
किसने इन वर्णों को भिन्न कहा?
फिर लहूँ एक से भरे जाते क्यों?७
आज मैनें पूछ कर गलती की,
सवाल अनमने सूनके मिचलाए यों।८
मेरे पैर पर बेवजह जंजीर पिरोया,
पस नया फिर खुजलाये क्यों?९
और पीठ शाबासी का थपथपाओं,
तुमनें एक को अनेक बनाये ज्यों।१०
आँखिर..,हर बात पर टोकते हो,
यार तुम इधर आये ही क्यों? क्यों?११
_✍पुखराज "प्राज"
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