खामोश रहकर जवाब दे गया।
जागते-जगाते वो ख़्वाब दे गया।
मैनें पूछा नहीं कब आओगे।
वो सफ़रनामें का हिसाब दे गया।
बड़े शरारत से पूछा क्या हो मेरी,
छूकर नाम मेरा हिजाब दे गया।
आती-जाती रही बैरन हवा तो,
पाजेब,आने का जवाब दे गया।
मैनें सिर्फ आशिकी ही लिखी,
पूरा का पूरा वो किताब दे गया।
फिर जाने किसके दिल पर प्राज हो,
कह वो आशिक का खिताब दे गया।
पुखराज "प्राज"
justonmood.blogspot.com
9977330179