Wednesday, December 19, 2018

फिर, वो लौटकर आया है... _ write by Pukhraj Yadav



महानदी, पैरी और अरपा तीन नदियों के संगम स्थल पर अवस्थित एक नगर महानंदा, यह एक छोटे से राज्य की राजधानी है। हाँ राज्य छोटा था, लेकिन वैभवशाली,समृद्ध, संसाधनों से प्रचुर और वास्तुकला के एक से बड़कर एक आदर्श किर्तिमान हैं,जो आँखो को सम्मोहित कर दे। मेरा सौभाग्य रहा की मै भी इस कहानी का हिस्सा हूँ, आईये कहानी की शुरूवात करते है, बात ५०००बीसी पहले की है...महानंदा नगर अपने बेजोड़ वास्तुकला, अरपा-पैरी दोनो नदियाँ राजधानी को सुरक्षित और आकर्षित बनाती हैं। वहीं महानदी जिसमें रेत के कणों के बजाय हीरे प्रवाहित होते थे। प्रात: से शाम तक नगर चमकता हुआ दिखलाई पड़ता था...जैसे-जैसे सूरज की किरणे तेज होती नगर के सौन्दर्यीकरण में चार चांद लग जाते। नगर की बसाहट एक लघु द्वीप पर थी, जिससे नदी के दूसरे तट से या दूर से देखने से लगता कोई आँतरिक्ष यान चल रहा हो।
        नगर को अंदर राजमहल की प्रत्येक दीवारों की बनावट पूरे विश्व भर के प्रसिद्ध कारिगरों ने किया था। इस राज्य के राजा वीरसिंह प्रथम हैं। इनके राजदबार में राजसिंघाषन के ऊपर एक पत्थर था जो पारस पत्थर था। राजा ने इसे राजकिय सम्मान चिन्ह और समृद्धि का प्रतिक मानते हुए इसके आशिश तले शासन चलाने का अमर प्रतिज्ञा की।
         नगर में द्रूतक्रिड़ा के मैदान, मनोरंजन के लिए रंग महल, अनुसंधान के लिए शोधशालाएं, व्यापार केन्द्र थे। सबसे खुबसूरत महल का नाम अमृतझरा महल था, यहां राजकुमारी मिथिला(सोनू) रहती था। कहते हैं सोनू के जन्म के समय से उसके पैरों में सोने रंग समान थे इसलिए, पूरे राज्य में मिथिला से कहीं ज्यादा लोग राजकुमारी सोनू कहते थे।

राजकुमारी सोनू लगभग 17वर्ष की है और महाराज वीर सिंह(तिहार) प्रथम् की एकलौती संतान है,राजा अपने पुत्री बेहद प्रेम करते है। इतना स्नेह की राजकुमारी सोनू के मन की बात पढ़ लेते, बीना कहे ही सोनू को उसकी मनवांक्षित वस्तू प्राप्त हो जाती।

      खैर चलिए आपको राज दरबार लिये राजा वीर सिंह (तिहार) प्रथम अपने सिंघाषन पर विराजमान हैं, राजपाठ की कार्रवाई जारी  है, मंत्रिगणों का सलाह और मशवरा का दौर चल रहा था कि, राज दरबार में शोधशाला के प्रमुख्य प्रबंधक शत्रुघात् आए। वो बेहद हड़बड़ी में और डरे हुए लग रहे थे।

शत्रुघात् बोले- "महाराज की जय हो।"

_"हाँ बोलिए ! शत्रुघात् जी क्या खबर लायें हैं।"(राजा)

_"महाराज ! खबर बेहद बुरी है महाराज।"

_"खूलकर कहो" (राजा ने तेज आवाज में कहा)

_"महाराज, पश्चिम से एक राजा ने काली शक्तियों का आह्वान करके चक्रवात को जीवित कर दिया है।"(शत्रुघात ने कहा)

_ "हाँ तों??"(राजा)

_"महराज वो तूफान तेजी से सीधी रेखा में आगे बढ़ रहा है। हजारो मील प्रति घंटे की रफ्तार से, जिसने आह्वान किया उस तुफान का, उसे और उसके राज्य के उसी तुफान तहस- नहस कर दिया है। पूरा शहर रेगिस्तान में बदल दिया है। बेहद ही खतरनाक तुफान है महराज....।(शत्रुघात के शब्दों डर साफ था)

_"ठीक है, शत्रुघात जी, लेकिन हमें इससे क्या खतरा है।"

_"महाराज, वो तुफान नदी, समंदर किसी भी जगह पर कम नहीं हो रहा है। जिस तेजी और सीधी रेखा में वो आगे बढ़ रहा है, संभवत: कल प्रात: हमारे राज्य को स्पर्श करेगा और आधे घंटे बाद हम सभी अगर बच गए तो रेतिले रेगिस्तान में होंगे।"(शत्रूघात)

_"हाँ, सभी सभासदों, मंत्रीगण... एक तुफान हमारी ओर बढ़ रहा है। राजकिय आपात की स्थिति हैं। जितने भी ज्ञानी खगोज्ञ, भूशास्त्री, भौतिकी के जानकार है उनकों शाम की बैठक में आमंत्रित किये जावे। इस तुफान से कैसे बचे और आवश्य पहलूओं पर चर्चा करेंगे।" (महराज ने आदेशात्मक रूप से कहा)

महाराज ने सभा समाप्त की और अपने विश्राम कक्ष की ओर निकल पड़े। मन में बार-बार शत्रूघात के शब्द ही चल रहे थे। मन में विचार आता अब क्या होगा, क्या करू, किसे बचाऊँ....मेरे राज्य का क्या होगा?? इसी बीच महारानी और राजकुमारी वहां पहूचे।

-" महाराज क्या हुआ, चिंतित है आप??"(महारानी)

-"हाँ, महारानी आपने सूना ही होगा।"(महाराज)

-"जी जानती हूँ, वैसे भी ऐसी बातें जंगल की आग की तरह फैलती हैं।"(महारानी)

-"हां...."

_"पिता श्री क्या तुफान यहां भी आएगा"( सोनू)

_"हाँ, बेटी, लेकिन तुम्हारे पिता लड़कर भगा देंगे उसे..."(महाराज ने आश्वस्त् करते कहा)

_"हाँ"

_"महारानी आप और राजकुमारी कुछ दिनों के लिए माईके चली जाईये।"(राजा)

_"नहीं महाराज, कभी नहीं! महानंदा ही मेरी सब कुछ है, विपत्ति के दौर में भाग कर कायर नही कहलाऊँगी। जन यहीं, जीवन यहीं और मरण भी यहीं।"

_"सोच लो"(महाराज)

_"नहीं पिता श्री हम यहां से रहीं नही जायेंगे।ये राज्य, ये माटी,ये धरती हमारी है। तूफान हो या कुछ भी हम नहीं भागेंगे।"

दोनो के हौसलों को देखकर महाराज के मन में साहस और गर्व का संचार हुआ। वो बोले -"अब जो हो जाये देख लेंगे सब।"

चर्चाएं चलती रही और राजा ने भोजन किया। राजमहम में चिंता की लकिरे सबके माथे पर थी पर कोई भी यह जताना नहीं चाहते थे। हर किसी कोई हर क्षण घड़ी की ओर देखते तो एक डर साफ दिखलाई पड़ा।

    शाम ५ बजे राजदरबार में ज्योतिषों, भौतिकविदों, भूशास्त्रियों और खगोलज्ञों की सभा बैठी। तर्क-वितर्क का दौर तेज रहा,कई ऐसे भी तर्क देने वाले थे जो राज्य छोड़ने की भी पैरवी कर रहे थे। लेकिन लाखों की संख्या वाले इस राज्य के जनमानस को इतने कम समय में दूसरे राज्य में ले जाना भी संभव नहीं है। तभी एक वृद्ध ज्योतिषी खड़े हुए।

_"महाराज की जय हो, मै कुछ कहना चाहता हूँ।"

_"कहिए महिषि"

_"महाराज, यह जो चक्रवात हमारी ओर बढ़ रहा है, यह काली तंत्र साधना से जाग्रित चक्रवात है। पश्चिम में आज से २००वर्ष पूर्व जब यही तुफान या चक्रवात आया था, उस समय इसका नामकरण हुआ था और रोका भी गया था।" (वृद्ध ज्योतिषी)

_"क्या नाम है इस तुफान का??" (महाराज ने पूछा)

_जैसे ही ज्योतिषी ने कहा उस तुफान का नाम "प्रॉज" है, वो बेसूध होकर गिर पड़े। महाराज चौंके, तभी ज्योतिषी का शिष्य बोला "प्रॉज" और वो भी मोर्छित हो चले।

पूरे सभा में भय और शंका का महौल बन गया। एक भौतिक के जानकार खड़े हुए और बोले- "महाराज क्या यहां कोई अंधविश्वास का खेल चल रहा है कि कोई प्रॉज....." इतना कहते ही वो भौतिक शास्त्री बेहोस हो गया। तभी एक ज्योतिष ने कहा ये नाम श्रापित है काली दुनियाँ के सबसे शक्तिशाली नाम मे से एक यह नाम है। इसका प्रभाव इतना है की सिर्फ जुबाँ पे नाम आते ही लोग बेहोश हो जाते है। "
एक शैनिक हसते हुए बोला- "महाराज, प्रॉज....आह्ह्ह" और वह सैनिक धड़ाम से नीचे गिर पड़ा।

पूरी सभा को जैसे शांति ने आगोश में ले लिया। सन्नाटा पसर गया...तभी एक खगोलज्ञ ने कहा-"महाराज ये शब्द जो है, वो इतना श्रापित है जिसके नाम लेने से भी आज मनुष्य मोर्छित हो जाता है।जिनको इसके बारे मेें यानी तूफान के बारे में जानकारी है वो भी मोर्छा में है।"

_"हाँ...." (महाराज बोले)

सभी मोर्छित हुए, लोगों को बैद्य के पास ले जाया गया। राजा मन में सोचने लगे की वो नाम ही इतना खतरनाक है वो तुफान कैसे होगा। वो परेशान हुए जा रहे थे। फिर राजा ने स्याही और स्वेत पत्र मांगा और उसमें चुपचाप वो प्रॉज लिखे। जैसे ही प्रॉज स्वत पत्र पर अंकित हुआ। तो जहां प्रॉज लिखा था वह जगह राख हो गया। राजा ने स्वेत पत्र हाथ में पकड़ कर कहा- "ये शब्द बेहद ही खतरनाक है, कोई इसे उच्चारित नहीं करेगा और बीना नाम के इस विषय पर चर्चा करेंगे।"

सारी सभा में बैठे विद्वानों में भी डर के भाव थे। राजा ने इस तुफान के संबंध में तथ्य संकलन का आदेश दिया और सुबह 7बजे सभा का पुनः गठन और बैठक की घोषणा के साथ आज की कार्रवाई खारिज किया गया।

     राजा दरबार से निकल कर अपने शयनकक्ष में जाकर एकांत में बैठ गए। राजा के अंगरक्षक बाहर पहरा दे रहे थे। रानी अंदर आई और उसने पुछा- "महाराज, सभा में क्या हुआ।"

_"बेहद परेशान हुँ, जी...हम ऐसी मुसिबत की समाना कर रहे है जिसका नाम तक नहीं ले सकते ।"(महाराज)

_"हमारे साथ, ईश्वर हैं आप चिंता ना करें...वो कहीं ना कहीं से कोई मद्द अवश्य ही भेंजेंगे। वैसे आप राज्य में एक अनुष्ठान का आदेश दे दीजिए आपकी प्रजा डरी हुई है। ऐसे में आप कमजोर नहीं पड़ सकते है।"(महारानी)

_"हां सही कह रही है आप"(राजा)
फिर महाराज अपने कक्ष से बाहर निकले और साथ ही साथ राजपुरोहित को आदेश भिजवाया की रात भर रक्षा यज्ञ करने के लिए यज्ञशाला में पहुचने और जनता तक यह खबर प्रसारित करने के लिए कहा गया।

रात्रि में यज्ञ की तैयारी हुई और महाराज ने इष्ट देवों के नाम से आहुति देते हुए यज्ञ को प्रारंभ किया। राजा फिर अपने प्रजा को संबोधन किया। उन्हे बताया की हम आने वाले खतरे से निपटने को तैयार हैं, यह यज्ञ तब तक चलती रहेगी जब तब हम जीतेंगे नहीं और तूफान रुकेगा नहीं। प्रजा अपने राजा की बात सूनकर शांत तृप्त हुई। जैसे कोई पिता  अपने पुत्र कहता है ना सब ठीक है तुम सो जाओ,और पुत्र चाहे कितना क्यों ना डरा हो पिता का संरक्षण पाकर भयमुक्त होकर निश्चिंत होकर सो जाता है। वैसी स्थिति राजा और प्रजा के बीच बन गई थी। यज्ञ अनुष्ठान जारी रही, महाराज कुछ देर के लिए अपने महल लौटे, अपने कक्ष में उन्होने देखा राजकुमारी सोनू बार-बार एक नाम ले रही थी-"प्रॉज...प्रॉज...इस नाम का क्या मतलब होता होगा। पिता श्री ये नाम क्यों लिखे है, प्रॉज...प्रॉज...!"

महाराज दौड़ते हुए राजकुमारी सोनू के पास पहुचे पूछे -"बेटी सोनू तुम क्या बोल रही हो??"

_"पिता जी ही कि प्रॉज क्यों लिखे हो अपने स्वेत पत्र में"

महाराज भय ये युक्त अपनी राजकुमारी को चुप कराते हुए सीने से लगा लिया। बेटी वो नाम श्रापित है जो भी उसका नाम लेते हैं वो बेहोस हो जाते है।

_"पिता श्री मैं तो ये नाम कई बार ले चुकी हूँ।"

महाराज के मन में विचार आया उन्होंने अपने अंगरक्षकों से आदेश भिजवाया की महाराज ज्योतिषाचार्य से मिलना चाहते हैं। आदेश का त्वरित पालन हुआ। रात के लगभग 12.00बज गए थे। ज्योतिषाचार्य दरबार पे पहुँचे महाराज पहले ही वहाँ पहुच चुके थे।

चर्चाएं होती रही, फिर ज्योतिषाचार्य ने राजकुमारी की जन्मपत्री देखी...वो बहुत कुछ समझ रहे थे लेकिन ज्यादा कुछ नहीं बोले सिर्फ इतना कहा- "राजकुमारी को नगर के प्रवेश द्वार पर प्रात: आगुवाई करने दीजिएगा।"

_"परंतू क्यों???"(महाराज ने पूछा)

_"राजन, एक प्रयोग कर रहा हूँ..!" (ज्योतिषाचार्य)

_"आपके प्रयोग के लिए मेरी बेटी की बली दे देंगे आप?? क्या यही कहता है आपका धर्म शास्त्र???" (महराज ने तेज आवाज में कहा)

_"राजन मुझ पर यकिन रखते है तो करके देखिएगा।"(ज्योतिषाचार्य)

राजा गहन चिंतन में लग गए। परेशान भी थे, और प्राज की रक्षा का भार भी कंधो पर था। रात कैसे कटी पता ही नहीं चला भोर के ८ बज गए।

एक गुप्तचर आया, "महराज की जय हो, महाराज वो तुफान कलिंग प्रवेश कर चुका है और लगभग आधे घंटे में हमारे राज्य की सीमा पर होगा और गती बढ़ी तो अगले एक घंटे में हमारे राजधानी के पार कर जायेगा"

राजा भयभित थे लेकिन मन में भय को दबाये। कहा कि हम और राजकुमारी नगर के प्रवेश मार्ग पर उस तूफान से पहले सामना करना चाहेंगे।

राजा, राजकुमारी और कुछ सैनिकों के साथ नगर के प्रवेश द्वार पर थे। ज्योतिषाचार्य भी वहां पहूच गए। तूफान की आहट होने लगी थी, लग रहा था जैसे आज पृथ्वी का अंतिम दिवस हो.... लगभग वहां ३०मीनट की के बाद तेज वलयाकार...आंधी और सब कुछ अपनें में समाहित कर देने वाला चक्रवात सामने खड़ा था। राजा और उसके अन्य सैनिकों के शौर्य सीमा चरम पर थी, सबको ज्ञात था कि पल भर में ही मौत आगोश में लेने वाली है लेकिन फिर भी वो दैत्याकार तूफान(प्रॉज) से टकराने को तैयार थे। राजा के द्रोहक दल के सदस्य जो युद्ध से पहले नंगाडे़ बजाते थे। वो भी पहुँच गए,नंगाड़ो पे थाप ऐसे दे रहे थे जैसे कोई उत्सव हो। वास्तव में किसी वीर सैनिक के लिये युद्ध से बड़ा और उत्सव क्या हो...!! सामने प्रॉज तूफान के विशाल से और वृहद और बड़ा और पर्वत के समान भीम हो चला, महानदी के तट पर पहूचते ही आस पास के सारे घर, पशू अन्य सभी को अपने वलय में ग्रहण कर रहा था। काल जैसे कपाल पर बैठ कर मृत्यू दृश्य दिखाने को आमादा हो चला था। जैसे ही महानदी के अंदर प्रॉज चक्रवात प्रवेश हुआ। नदी की प्रवाह टूट चली, और लग रहा कि जैसे प्रॉज चक्रवात पूरे जल प्रवाह को पी जायेगा मानों महानदी की प्रवाह प्रणाली चक्रवात के वलय की ओर उठने लगी। लगभग राजा और राजकुमारी से तुफान १०० मीटर ही दूर रहा, तभी ज्योतिषाचार्य ने राजकुमारी के हाथ पकड़ा और तेज धार वाली छूरी से हाथ पर काटा.... रक्त के बुँद जैसे जमीन पर गिरे फिर राजकुमारी सोनू डरी गई लेकिन ज्योतिषाचार्य ने कहा -"राजकुमारी जी माफ कीजिएगा, इसे रोकने के लिए कोई और रास्ता नहीं है। आप बस जोर से प्रॉज...प्रॉज... चिल्लाईये...।" इतना कह कर ज्योतिषाचार्य ने राजकुमारी के गले के पास तलवार रखी।

_"प्रॉज......प्रॉजज.....प्रॉज......,प्रॉज......."(राजकुमारी सोनू जोर से चिल्लाने लगी)

यह दृश्य ही अजीब और सबके लिए अकल्पनिय था, प्रॉज चक्रवात की गति रूक गई। विशाल चक्रवाती भवर रेत के समान टूटने लगी जो-जो  चक्रवात ने अपने काल के मुहाने पर ले रखे थे सब गिरने लगे। पानी का जोर से लहर नीचे गिर पड़ी।

शांत महानदी का प्रवाह फिर लौट पड़ी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो, नगर के प्रवेश मार्ग पर जहां राजा और उसके सैनिक थे, वो भी वहीं पर थे, सभी मोर्छित अवस्था में थे। अर्रे..... अर्रे.....

राजकुमारी सोनू नहीं थी वहाँ......!!

(दृश्य परिवर्तन)

एक लड़का, किसी लड़की  को बाहों में उठाए राज महल के किसी कमरे में दाखिल हुआ। हाँ....यह युवती कोई और नहीं वही राजकुमारी सोनू है, वह भी  मोर्छित अवस्था में थी, उसे उस लड़के ने बिस्तर पर सुलाया और लबों पे स्वांश देकर मोर्छा से बाहर किया। खासते हुऐ राजकुमारी सोनू उठी....!!

_"अर्रे...तुम कौन हो, मै यहां कैसे पहूचीं, पिता श्री कहां है....!!!"(सोनू)

_"शांत हो जाओ..... मै ही प्रॉज हूँ जिसे तुम पुकार लगा रही थी।"


       STORY is Continued....


प्रॉज कौन है??
प्रॉज, सोनू के पूकारने से क्यों रूका???
वो लड़का जो अपने को प्रॉज कह रहा है वो कौन है जानने के लिए *फिर, वो लौटकर आया है...भाग -दो* अवश्य पढ़ें....


                       पुखराज Y
         pukkhu007@gmail.com