मोला मया के दू-चार रंग लिखन तो दे।
थोकिन मया के माटी ला पिघलन तो दे।
घेरी बेरी आथे गोरी तोर सूरता गऊ,
गीत ल बही राग मं बने सजन तो दे।
चंदा तय, मय तोरे अँजोर असन हवँ।
मीठ बोली के तोर ज्वार उठन तो दे।
दाई तको पूछत रहिथे लेके तोर अगोरा,
लेहे आहूँ बही,मोटरा बने जोरन तो दे।
मन ह मयुरा बागीर बिधून नाचत रहिथे,
तोर सुरता के हिचकी ला रूकन तो दे।
काली के तोर लबारी ल कईसे भुलवँ,
थोरकिन मया के निसेनी चढ़न तो दें।
सूनना बही,तय मोर सोनू हिरदे के बंधना,
प्रॉज बनके महु ला,बिहतरा बनन तो दे।
मोला मया के दू-चार रंग लिखन तो दे।
थोकिन मया के माटी ला पिघलन तो दे।
कवि- पुखराज यादव
महासमुन्द
9977330179