Friday, November 23, 2018

The Hostel- (Story of Fear time)- by Pukhraj Yadavekar




ये साल 2118 है,मुझे लोग डॉ. प्रॉज कहते है। आप भी कह सकते है, प्रॉज या फिर पुक्खू जी ये नाम मुझे किसी खाश इंशान ने दिया है। जो मुझे अलिंदी से अज़ीज है, वैसे ये २२वीं सदी के दौर में हमने बहुत कुछ पाया और खोया है। मैने इतिहास में पढ़ा है,आज से सौ साल पहले की दुनिया के लोग बड़े उम्मीद से आसमान के ओर देखते थे। सितारों के टूटने पर मन की मूरादें मांगते थे। विज्ञान ने अब इतनी तरक्की कर ली है कि हमने सारी आकाशगंगाओं को छांन कर रख दिया है। पहले के लोग सोचते थे एलियन्स हमारे लिये खतरा है या बन सकते हैं करके। पर ऐसा बिलकुल नहीं, लगभग 2050 के आसपास हमने 5-6 अलग-अलग ग्रहों पर जीवन खोज निकाले,उनसे सम्पर्क हुआ और देखिये हम मानव-एलियन संबंधतता के कारण विज्ञान के नवीन आयामों को छू रहे हैं। मेरे पास टेलीपोटेशन वाली कार है, जमीन से मीटर भर ऊपर उड़ने वाली बाईक है। हमने हमारी नस्ल को बेहद आईड़ियल(आदर्श) बनाने के लिये 1वर्ष के बच्चे को मेमरेन स्कुल(हास्टल) भेजते हैं। वहां हममें हमारे स्वभाव के अनुरूप क्षेत्र चुनकर उसी को पाठ्यक्रम में लगा दिया जाता है। मै भी अभी 18 साल का हूँ और इसी प्रकार के हास्टल में हूँ, मेरा एक दोस्त है परम और मेरी अज़ीज,या दुसरे शब्द में कहें तो GF सोनू है। 
              हमें हास्टल में अच्छा मानव या वेल बिहेवियर ह्युमन बनने के लिए ट्रेंड किया जाता है। हमें विज्ञान और टेक्नोलॉजी से लैस किया जाता है। हमारे शरीर में आईटी प्रोग्राम और वेल बिहेविंग पिल्स दवाईयां दी जाती हैं। रात को हमें एक सफेद अंडाकार सीडिंग चेंम्बर में सोना पड़ता है। जहां सोते समय हमारे कानों में एक आवाज सुनाई देती है - "मै अच्छा हूँ, मैने आज अच्छे काम किये, कल और अच्छा बनुंगा और भविष्य में आदर्श बनकर दिखलाऊंगा।" मै रोज- रोज ये सूनकर पक चुका था। पता नहीं पर हमें हास्टल के बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी, हमें टेलीपोटेशन कार तो दी गई  थी लेकिन उसका रेंज सिर्फ हास्टल के अंदर तक सीमित था। सभी अपने काम में व्यस्त रहते थे सिवाय मेरे और परम के, हम दोनो अक्सर हास्टल के लाईब्रेरी के अंदर से हमारे मेमरेन स्कूल के बाहर का मैप खोजते, मै अक्सर सोचता था की सब अच्छा कैसे हो सकता था। जैसे हमे चोट लगती है तो दर्द होता था लेकिन हमें उसे भूल जाने की ट्रेनिंग दी गई। परम कहता रहता है कि - "लाईब्रेरी में कुछ तो गड़बड़ है। सारी किताबों सिर्फ मोटीवेशनल है। वेदना, विरह, झगड़ा जैसे विषयों पर कोई पुस्तक नहीं है।" ऐसे सवाल हमारे मन में आते रहते हैं। हमारा हास्टल या स्कुल ही कह दीजिए बहुत बड़ा है जैसे कोई बड़ा सा साईंटिफीक विलेज हो। जो बच्चे 21वर्ष के हो जाते उन्हे उनके घर भेज दिये जाते हैं। पर हमें तो बचपन से यहां रखा जाता है, तो हमें कैसे पता चलेगा की कौन हमारे माता-पिता है? ये परम मै और सोनू अक्सर सोचते हैं। वैसे सोनू का नाम *(S@R139-129)* है, पर मै सोनू कहता हूँ। वो हास्टल के नियमों को ज्यादा फॉलो करती है। नवम्बर २४ को हमने प्लान बनाया की परम और मै हास्टल के बाहर जाकर बाहर की दूनियाँ देखेंगे। वैसे हमने कई बार ये प्रयास किया था। कई बार सिक्योरिटी ने हमे पकड़ा फिर रीहैबिटेशन में डालकर रखा गया था इस बार हमने प्लान बनाया था की हास्टल के पीछे जो  जंगल है  वहां से भागेंगे। रात 12बजे हमने स्लीपिंग पिल्स नहीं ली, और रात कुछ देर बाद मेरे खिड़की से धीमी आवाज आ रही थी- "प्रॉज....प्रॉज....पुक्खू __उठ भी जा मेरे भाई??!!"
         मैने देखा ये परम है, मै झट से बाहर निकला, और बाईक को दोनो कंधे पर उठाकर चलने लगे। कुछ दूर चलने के बाद हमने बाईक चालू की, बाईक जैसे ही हवा में १मीटर ऊपर आई एक सायरन बजी। और सारे स्पीकर बजने लगे, सिक्योरिटी अलर्ट और हमें रोकने के लिए एक सिक्योरिटी दस्ता हमारे ओर आई। हम भी तो खुरापती है बाईक को जमकर तेज और तेज भगाने लगे, परम पीछे पलट पलट कर सिक्योरिटी वालों कों आ जाओं-आ जाओं का इसारे देकर चिढ़ाना रहा है। मेरा ध्यान जंगल की ओर रहा।  जैसे ही हमने हास्टल के रेड लाईन पार किये हमारे बाईक की स्पीड़ और बढ़ गई वाह ये सोने पे सुहागा टाईप घटना थी। हम दोनो खूब शोर शराबा करते आगे बढ़ रहे है। वाह!!! मजा आ गया। परम ने मुझे कहा- "पुक्खू सिक्योरिटी वाले हमारे पीछे नहीं आ रहे हैं क्यों??"

मैने कहा- "डर गए वो तेरे भाई के स्पीड देख कर"

इतना कह मै चुप तो हो गया, पर मेरे मन में सवाल दौड़ने लगे आखिर वो हमारे पीछे क्यों नहीं है। खैर हम दोनो ने बाहर की दुनिया पहली बार खूले आंखो से देखा, पुस्तक से बेहद खूबसूरत और जहीन, मै देख कर दुनिया के लिए मुत्तासिर हुआ बैठा जा रहा । 
           तभी अचानक मेरे बाईक पर एक लास ऊपर से गोते खाते हुए गिरा। ओह्ह...!!! माई गॉड़ ,ये क्या था। समझ नहीं आया.... उसके लगे पर चोट थी खून से लथपथ सर्ट, वो कियी कंबल की तरह मेरे बाईक में गिरा था मैने ब्रेक मारना चाहा तो वो बोला- "बचा लो मुझे_हास्पिटल ले चलो" मैंने सिर हिलाकर सिर्फ हाँ में जवाब दिया।
           परम और मै शुन्य हो गए, फिर मेरे बाईक रफ्तार के कारण वो फिसल गया और जमीन पर गया। जब वो गिर रहा था उससे पहले हम दोनो को अंदाजा हो गया कि उसकी सांसे थम चुकी हैं। हम डर गए, और आगे बढ़ने लगे जंगल को पार करके जैसे मैदानी जगह पर पहुचे परम ने जोर से आवाज लगा कर कहा- "भाई....ऊपर देख लोग गिर रहे हैं आसमान से हजारों की संख्या में"

ऊपर की ओर देखते हुए बोला- "ये क्या है लोग आसमान से कैसे गिर रहे हैं?"

हम दोनो को लगा हम हास्टल से निकल कर गलती कर बैठे ....हैं।।

जस्ट हमारे सामने एक ही एक और आदमी गिरा वो दर्द से कराहना कर रहा, मैने बाईक रोकी...उसे दर्द को भूलाने वाले पिल्स दिये। वो हसते हुए बोला -" तुम लोग मेमरेन स्कुल के होना??"

मैने कहाँ - "हाँ...!"

उसने फिर कहा- "तुम लोगों की उम्र क्या है?" (दर्द के कारण कराहने की अावाज आई आह्ह्ह)

मैने कहा- "18 वर्ष"

उस आदमी ने कहा- "वहां से बाहर कैसे निकले?"

मैने कहा- "भाग कर आये है लेकिन ये दुनिया, हमारे हास्टल जैसी नहीं है।"

उस आदमी ने जख्म ठीक करने की दवाई मांगी मैनें फास्ट रिलिफ और तंतू परिवर्तक दिया। वो लेकर वह कुछ तो ठीक हुआ। और उठा, पता नही क्या हुआ उसे वो चिखने लगा,- "तुम लोग मनुष्य नहीं हो क्लोन सालो... तुम्हारी बली चढ़ाऊंगा मै मेरे पृथ्वी को" (बहुत तेज आवाज में बोला)

"क्या ?? हम भी तो मनुष्य है दिमाग तो ठीक है आपका"_ परम बोला

- "जो लोग दिख रहे है ना आसमान से गिरते हुए वो फाईटर्स है, जो तुम जैसे क्लोन्स से हमारो धरती की रक्षा के लिये लड़ रहे है समझे"

इतना कह कहकर वो तेजी से चाकू मेरी तरफ चलाया। मैं झूका वो और तेजी से परम की ओर बढ़ा, परम शावक की तरह उछाल मारते हुए उस आदमी को हमले से बचा। तभी अहसास हुआ की किसी ने मेरे ऊपर बारूदी हमला किया हो, बहुत जोर से दर्द और जला देने वाली गर्मी मेरे कंधे को झूलसा रही थी कि.
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एक आवाज आई,

_"अजी प्रिंसी के पापा उठो चलो।"

_मैनें आख खोला, सामने मेरी सोनू थी, फिर बैड़ के सामने वाली दीवाल पे लगे कैलेंडर को देखा आज की तारिख 25 नवम्बर 2018 देखा तो शुकुन मिला। मैने सोनू को बाहों मे भर लिया और कहा- "S@R139-129, love u"

प्रश्नवाचक मुद्रा में वह बोली  "क्या हुआ? सुबह उठते ही बड़े रोमैंटिक हो रहे हो?"

मैने कहाँ- "बेबी सुबह सुबह K से कमाल मत करों"

पर जो सपना मैने देखा वो सच में बेहद डरावना है। क्या पता सच में वो मेमरेन स्कुल कहीं खूल ना जाये।
            (Thanks for Reading)

                            लेखक
                 पुखराज यादव "पुक्खू"
                     9977330179
            pukkhu007@gmail.com