Wednesday, October 31, 2018

किससे पूछे, किसने ऐसे बना दिया मुझें? (कहानी) by Pukhraj yadav "Raj"



मै एक चरवाहा हूँ, मुझे हमेशा ये बताया गया की हम फलां राज्य के है,और हम इस राष्ट्र के रहवासी है। मेरे पिता जी अक्सर कहते थे- "बेटे!!! अगर देश के लिए कुछ कर गुजरने का मौका मिले तो जरूर कदम बढ़ाना,इससे बड़ा सौभाग्य नहीं होता है।" मुझे भी मेरे नेशनल एंथम पर गर्व है और रहेगा। एक दिन चाय की टपरी पर बिल्लू काका जो हमारे गांव में थोडे पढ़े लिखे है, बतला रहे थे कि सेंट्रल गवर्मेंट कोई नई पॉलिसी लाने वाली है, जिससे हमारा गांव जो राष्ट्र के छोर पर है उसे पड़ोसी मुल्क को अधिग्रहण देने को राजी हो गई है।

मेरे तो पल्ले ही नहीं पड़ी वो बात,क्या है मै चरवाहा जो ठहरा। अब मुझसे पूछे कोई कि मेरी बकरियां एक दिन में कितना दूध देती है,कितना घास खाती है,तो मै फिर किसी पलटन के नवोधा जवान की तरह पटर-पटर सारे हिसाब लपेट दूँ। और वैसे भी गवर्मेंट के योजनाएं हम तक पहूचने तक बूढ़ी ताई की तरह हो जाती है, तो फिर ये नई कोई चीज पार्टिशन जाने कौन बला है जब आएगा तब देंखेंगे। मुझे तो सिर्फ बकरियों की देख-भाल और उनके पोषण की चिंता लगी रहती है। क्या करें हमने भी मैट्रिक में हैट्रिक लगाके जैसे तैसे पास कर ही ली। वैसे भी मास्टर जी बहुत अकडू टाईप के है एक दिन बोले बेटे २+२=४ होते है फिर दुसरे दिन बोले ३+१=४ फिर बोलते है ८÷२=४ हमारे तो गणित में डिब्बा गुल के जैसे आसार शुरू से थे। मास्टर जी पुछे बताओ २+२=?? मैने् जवाब दिया मास्टर जी ४ , फिर पूछे १+१=?? मैने कहां ३, फिर तो मास्टर जी जो भड़के हमपे लगा की जैसे महाभारत के कुरूक्षेत्र में कौरवों के सेनापति पितामह: भीष्म अर्जून पर बरस रहे हो। खैर हम तो कुछ दिनो के मेहमान है सोचकर सब झेल लिये, लेकिन क्या पता था कि ये कुछ-पल,कुछ पल को निकलनें में ३बरस लग जाएंगे। और फिर बापू ने हमारे रिपोर्ट के मद्देनज़र हमें पैत्रृक कौशल विकास के गूर सिखाते हूए हमें जरवाहे का पोस्ट दे दिया। इसमें भी फायदा है जितनी सर्विस बेहतर उतनी है पैसे ठनाठन गिरते है जेब में...! ऐसे ही दिन गुजरते रहे मेरे फिर.....एक दिन वो पल भी आया जब मेरा गाव दुसरे मुल्क की अधिग्रहित क्षेत्र घोषित हो गया।

                       *😕पार्टिशन के बाद*

मै रोज की तरह अपनी बकरियां चराने निकल पड़ा, वैसे आपको बता दूं अब हमारे गाव में दोनो तरफ पुलिस की चौकसी रहती है। कटिली तारों का पता नहीं क्यों कई जगहोे पर जाल बिछाया जा रहा है। खैर ये बात तो अच्छी है जिस गांव में चोरी की घटनाओं पर पुलिस जांच करने नहीं आती थी वहां अब पुलिसिया पहरा २४घंटे रहता है। तकरीबन दो बजे के आस पास मेरी बकरियों की झुण्ड मे-से दो बकरियां हमारे पुराने मुल्क की सीमा को पार कर गई...मै पीछे भागा....!!!एक तो पकड़ में आ गई लेकिन दूसरी तेज थी मै भी भागा एक खेत की मेंड़ पर फिसला तभी कुछ लोग दिखाई दिये। वो दौड़ते हुए आ रहे थे, ओह पुलिस के साहब लोगो थे। मैने सोचा कितने भले लोग है, मेरी मद्द को दौड़ पड़े है सभी...मै बोला- "अब तो पकड़ी जाएगी....री बकरी कितनी भाग सकती है। भाग"...

तभी एक पुलिस वाले साहब ने मुझ पर बंदुक तान दी और बोले- " अबे....हाथ ऊपर कर...हाथ ऊपर कर!!!"

मैं हाथ ऊपर किया...लगभग २५पुलिस वाले मुझे घेरे खड़े थे सभी के हाथों में बंदूक... इसी बीच इनके झूंड को चीरते हूए कोई और साहब मेरे सामने आए। मै समझ गया ये इन सब के बड़े साहब है।

-"कौन है तू???"(साहब बोले)

-"मै धनवा सिंग!!" (मै)

-"कहां रहता है??"

-"जी सामने वाले गांव में"

-"कब से तेरा बार्डर के इस पार से उस पार आना जाना होता है?"

-*जी साहब!! समझा नहीं!!"

-"अबे जो पूछ रहा हू साले वो सीधे-सीधे बोल!! नही तो ऐसी जगह लात मारूंगा... ना तो उठ पाएगा और ना बैठ। समझा"

-"साहब!!! मेरी बकरी चरते-चरते इस पार आ गई तो लेने आ गया।"

-"तेरे पास पासपोर्ट है??"

- "ये क्या होता है??"(मैने पूछा)

साहब अपने जवानों से बोले- " देख रहो हो...जवानो बार्डर पार वालों ने कैसे इसको ट्रेन्ड करके भेजा है!! साला बड़ा भोला बनता है, लगाओं हथकड़ी और ले चलों कैम्प के अंदर वहीं पूछताछ करेंगें!!!"

(दो जवानों ने जोर से लात मारा मैं जमीन पर गिर पड़ा,फिर पता नही उनको क्या लगा नही जानता लेकिन मेरे हाथ को पीछे ये लोहे की जंजीर से बाँधा और मारते हुए लिये जा रहे थे। समझ ही नहीं आ रहा था क्या करू और फिर डर के कारण कुछ बोल भी न सका। कैम्प के अंदर मुझे एक लोहे की राड़ में खड़ा करके बांध दिया गया और सब चले गए।)

तकरीबन दो घंटों बाद बड़े साहब फिर आए मै प्यास से तड़प रहा था, वो बोले-

- "कुछ खाएगा बे??"

-"साहब प्यास लगी है!!"

-"तू मेरा साला लगता है क्या बे!! जो तेरी खिदमत करता रहूँ, जो पूछ रहा हूँ साफ साफ बता दे!! तूझे गोस्त खिलाऊंगा और पानी भी पिलाऊंगा...!!!"

-"साहब मै कुछ नहीं जानता, मै तो चरवाहा हूँ साहब, पहले इसी मुल्क का रहवासी था!! मै...मुझे छोड़ दीजिए मां रहा देख रही होगी...बकरियों को घर ले जाना है।"

-" साला नौटंकी बाज!! बता तेरा बाप कौन है?? किसके लिए काम करता है?? हथियार सप्लाई करता है या ड्रग्स?? बोल बे!!!"

-"साहब मैं कुछ नही जानता!!!"

-"तेरी मां.......की"

-"साहब मां को गाली मत दो नही तो ठीक नहीं होगा???"

-"साला मुझको धमकी देता है!!रूक तू रूक सूवर कहीं की तू क्या तेरा बाप भी बोलेगा....अब!!!"

(साहब ने बेल्ट उतारी और अंधाधूंध पीटाई करते रहे मै चीखता रहा...पूरे बदन पर चोट के निशान जैसे डीजाईन किये हो लग रहे थे कानपट्टी और होटो से खून निकल रहा था, गाल बेल्ट की मार से फट पड़े, और शरीर के कपड़े मानो चिखड़ों में  बदल गए।)

-"साला कुछ बोलेगा की ....सूवर की खाल है तेरी बे।।"

-"साहब मै चरवहा.....हूं छोड़ दो साहब...."

जोर से आवाज लगाते हूए साहब ने कहा-

-" अर्रे...जवान सूनो!!!"
(कोई पोलिस वाला अंदर आया)

-"जी कमांडेंट"

- "जाओं मेस से एक पैकेट नमक लाना...."

(दौड़ता हुआ वो नमक लाने गया, और बिजली की तेजी से वापस आया)

साहब ने नमक का पैकेट खोला और मुझ पर छिड़कने लगा....मै चीख उठा ताजे जख्म पर नमक की जलन बहूत तेज हो रही थी.....मै चिल्लाने लगा...आहहहह......साहबबब...माफ कर दीजिए .....आहहहहहहह छोड़ दीजिए.....मै चरवाहा हूँ.....आपके पैर पड़ता हूँ......माफी दे दो साहब.....आअअअअआआ....

पर साहब के जुल्म कम ना हुए, सिपाही को बोले इसके हाथ खोल दो और उल्टा मोड़कर घूटने के बल बिठा दो। उस सिपाही ने वैसे ही किया, फिर साहब सिपाही से बोले -"तुम बाहर जाओं!!", वह निकल गया...मै लगातार चीखे जा रहा था,कि तभी उस साहब ने अपने पैंठ की जीप खोली और मेरे उपर मूत्र विसर्जित कर दिया...और बोले-

- "क्या रे क्या बोल रहा था तू, ठीक नहीं होगा...तेरी &%&%& का,तेरी जात का...$$$$$, तेरी...बह$$$ की....साला अतंकी कहीं का"

और पीटाई होते होते रात के लगभग ११बज गए, फिर साहब ने अपने सिपाही को आवाज दिया- "अर्रे.....गुलाब चंद कहां हैं अंदर आओ इस सुवर के पिल्ले के हाथ खोलो और बाहर ले आओ.....

वो सिपाही मुझे किसी किड़े मकौड़े की तरह खिचते हूए बाहर ले आया। उधर साहब बोल रहे थे -"आज जमकर फायरिंग प्रेक्टिस करने को मिलेगा जवानों सब अपनी अपनी राईफल तैयार कर लो...टार्गेट को मैं भगा रहा हूँ जिसकी गोली से ये मरेगा उसके नाम से आज जाम छलकेगा"

सारे जवान खुश नज़र आ रहे थे, तभी एक के चहरे पर मायुशी देखा???समझ तो मै भी नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा था सब!!!

फिर साहब मुझसे बोले- "अबे धनवा....यही नाम बताया है  ना रे तू....चल तुझे एक मौका देता हूँ....भाग जा....5मिनट का टाईम है तेरे पास जहां चाहे वहां भाग जा...जा तेरे गांव चले जा।।"

मै भी तो गांव और पड़ोस के गांवों के सारे रास्ते,गुप्त रास्तों से वाकिफ था। मेरे अंदर जैसे भाग जा सुनकर नई ऊर्जा दौड़ने लगी... फिर मै उठा हाथ तो पहले ही खुले थे , मैं दौड़ पड़ा जरा भी ना रुका....थोड़े दूर ही गया था की गोलियों की जैसे बारिस होने लगी...। मैं बचते बचाते एक पेड़ के पास गया फिर भागते हूँ कटिली तार के पास पहूचा मैनें कुछ नहीं देखा ना सोचा बस कूद गया...इधर मेरे गांव के रक्षासिपाही भी फायरिंग करने लगे...पता नहीं किस ओर की गोली अचानक पैर में आ लगी। और मै कटिली तार के किनारे पर गिरा...पर रूका नहीं....झटके देकर उठा कंधे का मांस छिल निकला...पर खुश था मै मेरे गांव के अंदर हूँ।.....

...                       *एक हफ्ते बाद*

पोलिस की सायरन बजाती हूई गाड़ी मेरे घर दाखिल हूई...। किसी सिपाही ने बताया की चलो तुम्हे थाना चलना है...सरहद पार से इंफार्मेंशन की तुम मॉल सप्लाई का काम करते हो... चलो...मुझे थाना लाया गया...फिर से वहीं सब कुछ हुआ वही सवालात-वही हाल और वहीं गाली गौच का महौल....एक महिने तक जेल के अंदर रहा.... समझ ना पाया गलती मेरी थी की बकरी की थी...घर लौटा तो पता चला बाबू जी जिल्लत झेल ना सके,मां और वो दोनों ने आत्मदाह कर लिया...! बकरियों का भी कोई पता नहीं चला....जेल में ही मेरी दोस्ती आगां रसुल से हुई...अब उसी के साथ बिजनेश संभालता हूँ.....बिना पासपोर्ट के लोगों को ट्रेवल्स कराता हूँ बार्डर के इस पार से उस पार....!!! पहले पता नहीं था हम जैसे को दोनो तरफ की सेना रेफ्युजी कहती है।....क्या करू अब मेरा सिर्फ एक ही धर्म है वो है "पैसा"। दोनो पार मेरी दोस्ती है और दोनो सरहद की सेना मुझे ढ़ूंढ़ती फिर रही है...बड़े-बड़े पोस्टर्स लग गए है। मुझे पहले-पहले लगा की मै अकेला हूँ लेकिन मुझसे तो कई रेफ्युजी इस सरहद ने बना दिये।।

-      _रचनाकार-
                 ©पुखराज यादव
            pukkhu007@gmail.com