_____/// कौन सोचता है??///_____
दर्पण,मेरे मन से कहता हर क्षण..,
कहां.....चले सुजल्प बाणी वाले।
किसके ठेके पर है निर्भर जन लीला,
रोज जलती स्त्री चलती सुजड़ी तेज,
कहां गए सर्व सुरक्षा वादे वाले सारे।
किसने निकुञ्ज पर मरूथल परोसा,
किसने है दोला में शोक रख... झोला।
नारी को डरी-डरी.... और भयभंगूर,
परिध्वंश थल समझ किसने बोला।
किसके मन के लुआठा सुलगा.. पड़ा।
क्या सम्मान भरी नज़रें शुष्क बड़ी है।
क्या मन में शुचि प्रति प्रेम नहीं तनिक,
क्या पाप लिहित करना पाठ सही है।
अर्रे मोध,अर्रे पापी सुनो तुम,कर्ण खोल,
नारी का सम्मान करना ही सबसे बड़ा।
कु-सोंच की बुकचा जला दो तुम सारे,
देवी से ही भूत-वर्त-भावी जीवंत खड़ा।
*©पुखराज यादव "पुक्खू"*
pukkhu007@gmail.com
9977330179
दर्पण,मेरे मन से कहता हर क्षण..,
कहां.....चले सुजल्प बाणी वाले।
किसके ठेके पर है निर्भर जन लीला,
रोज जलती स्त्री चलती सुजड़ी तेज,
कहां गए सर्व सुरक्षा वादे वाले सारे।
किसने निकुञ्ज पर मरूथल परोसा,
किसने है दोला में शोक रख... झोला।
नारी को डरी-डरी.... और भयभंगूर,
परिध्वंश थल समझ किसने बोला।
किसके मन के लुआठा सुलगा.. पड़ा।
क्या सम्मान भरी नज़रें शुष्क बड़ी है।
क्या मन में शुचि प्रति प्रेम नहीं तनिक,
क्या पाप लिहित करना पाठ सही है।
अर्रे मोध,अर्रे पापी सुनो तुम,कर्ण खोल,
नारी का सम्मान करना ही सबसे बड़ा।
कु-सोंच की बुकचा जला दो तुम सारे,
देवी से ही भूत-वर्त-भावी जीवंत खड़ा।
*©पुखराज यादव "पुक्खू"*
pukkhu007@gmail.com
9977330179