हे! मनुज...मै तुम्हे पुकारता हूँ
गांडीव उठा,और लक्ष्य साध दे,
जीवन मौके देती कई बार नहीं।
अभी नहीं तो अगली बार नहीं।
जीवन जैसे पथ ज्वलंत निरंतर,
दौड़ चल,साथी बैठ बेकार नहीं।
मीन मेख साधना है एक तीर से,
डगमगाना पथ से इस बार नहीं।
शौर्य देखती है ये दुनिया सदैव,
पुछल्ले फतह करते मैदान नहीं।
फिसलना,गिरना और उठना तू,
प्रयास रख सदा ,सोच हार नहीं।
तालियां बजाने मजबूर करदे...,
दुश्मन भी कहे तुझसा यार नहीं।
करत-अभ्यास , होत अभ्यस्त...,
इससे बड़ा मंत्र कोई सार...नहीं।
पहुँच जाएगा जो विजयी होकर,
ठहरना ना वहां,पड़ाव वह मात्र।
रखना ना शस्त्र-शास्त्र शिथिल,
जीवन है कोई मीनाबाजार नही।
*©पुखराज यादव"पुक्कू"*
महासमुन्द
गांडीव उठा,और लक्ष्य साध दे,
जीवन मौके देती कई बार नहीं।
अभी नहीं तो अगली बार नहीं।
जीवन जैसे पथ ज्वलंत निरंतर,
दौड़ चल,साथी बैठ बेकार नहीं।
मीन मेख साधना है एक तीर से,
डगमगाना पथ से इस बार नहीं।
शौर्य देखती है ये दुनिया सदैव,
पुछल्ले फतह करते मैदान नहीं।
फिसलना,गिरना और उठना तू,
प्रयास रख सदा ,सोच हार नहीं।
तालियां बजाने मजबूर करदे...,
दुश्मन भी कहे तुझसा यार नहीं।
करत-अभ्यास , होत अभ्यस्त...,
इससे बड़ा मंत्र कोई सार...नहीं।
पहुँच जाएगा जो विजयी होकर,
ठहरना ना वहां,पड़ाव वह मात्र।
रखना ना शस्त्र-शास्त्र शिथिल,
जीवन है कोई मीनाबाजार नही।
*©पुखराज यादव"पुक्कू"*
महासमुन्द