पडोसी के लिये चंद लफ्जों की कविता
पडोसी के लिये चंद लफ्जों की कविता
पाकिस्तान पर कविता का प्रयास कर रहा हूॅ। अच्छे पडोसी होने के नाते हमारा यह फर्ज बनता है की पाकिस्तान को सही और गलत का फर्क बताया जायंे।।
कविता के बोल है -
‘‘बोल पडोसी तू....
बैरी कैसे बन बैठा....’’
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
अपनों संग-संग चला
47 से अब तक,
पराया क्युं बन बैठा।
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
राश्ट्रनिति पर राजनिति
करता कैसे है रे प्यारे,
देष हित छोड़ अहित
का पुजारी कैसे बन बैठा।।
आतंकी और अधर्मवाद का
पक्षधर कैसे बन बैठा।।
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
पाकभूमि पर नापाक खेती,
आतंकवाद का कैसे कर बैठा।
बोल पडोसी पाकिस्तान से,
आतंकिस्तान नाम कैसे कर बैठा।।
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
कष्मीर का राग अलापे
पर अपनों का ही द्रोही
कैसे बन बैठा।
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
क...क....कष्मीर करते
गिलगित,सिन्ध,बलोचिस्तान
न कट जाये।
विष्व पटल पर,
संभलकर चल,
कही तेरा नामोनिषान,
न मिट जाये।
अरे!बोल पडोसी तू
बैरी कैसे बन बैठा।।
चार आने की आमदनी
और खर्चा तेरा रूपाइया,
परमाणू बम के धौस में
कहां से भटका है
और कहां पर है तू अटका।
बोल पडोसी तू
बैरी कैसे अपनों का बन बैठा।।
बंदकर आतंक की,
दूकान रे..!प्यारे,
अब तो संभल जा भइया
पीओके में कैम्प लगाता,
भारत पर घात लगाता।
चार बार तो पटक दिया हमने,
अब क्यों है फिर,
मूह की खाना चाहता।
बोल पडोसी तू,
बैरी क्यों बन बैठा।।
लडना है तो आ लड़
लड़ विकासवाद पर,
और लड़ गरीबी के खिलाफ
रे........! प्यारे
देख जहां है चाहता
अमन की बात ओ प्यारे।।
बोल पडोसी तू,
बैरी कैसे बन बैठा।।
बोल पडोसी तू,
बैरी अपनों का कैसे बन बैठा।।