Tuesday, February 28, 2023

अंतरिक्ष के नव क्षितिज की ओर बढ़ते इसरो के कदम


            (अभिव्यक्ति) 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो भारत सरकार की अग्रणी अंतरिक्ष अन्वेषण एजेंसी है, जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में है। इसरो का गठन 1969 में ग्रहों की खोज और अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास और दोहन की दृष्टि से किया गया था। इसरो ने अपने पूर्ववर्ती, इनकोस्पर यानी अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति का स्थान लिया। जिसकी स्थापना 1962 में भारत के पहले प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक पिता माने जाते हैं।
             इसरो ने अपनी अनूठी और लागत प्रभावी तकनीकों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके, पिछले वर्षों में दुनिया की विशिष्ट अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच स्थान प्राप्त किया है। पहला भारतीय उपग्रह, आर्यभट्ट, इसरो द्वारा बनाया गया था और 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च किया गया था। वर्ष 1980 में रोहिणी का प्रक्षेपण हुआ, जो एसएलवी द्वारा कक्षा में सफलतापूर्वक रखा गया पहला उपग्रह था।  बाद में अधिक प्रयासों के साथ, इसरो द्वारा दो अन्य रॉकेट विकसित किए गए: उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षाओं में स्थापित करने के लिए पीएसएलवी यानी ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान और उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षाओं में स्थापित करने के लिए जीएसएलवी, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, दोनों रॉकेटों ने भारत के साथ-साथ अन्य देशों के लिए कई पृथ्वी अवलोकन और संचार उपग्रहों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।
         इसी तारतम्य में इसरो इस वर्ष के अंत में गगनयान कार्यक्रम के तहत दो आरंभिक मिशन लॉन्च करेगा, जिसके बाद 2024 में देश का पहला मानव अंतरिक्ष-उड़ान मिशन लॉन्च होगा। 
    आरंभिक मिशन के दूसरे भाग में एक महिला रोबोट व्योममित्र को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इन अंतरिक्ष मिशनों को भारतीय स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में लॉन्च करने की परिकल्पना की गई थी। लेकिन, कोविड-19 के प्रकोप के कारण इन कार्यक्रमों में दो से तीन साल की देरी हो गई। महामारी के कारण रूस में चल रहे हमारे अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण को बीच में ही रोकना पड़ा था, और जब परिस्थितियां सामान्य होने के बाद उन्हें अपना प्रशिक्षण पूरा करने के लिए वापस भेज दिया गया है।
          इस साल की दूसरी छमाही में, गगनयान कार्यक्रम के तहत दो शुरुआती मिशन भेजे जाएंगे। एक मिशन पूरी तरह से मानव रहित होगा, और दूसरे में व्योममित्र नाम की एक महिला रोबोट भेजी जाएगी। ये मिशन संपूर्ण प्रक्रिया को पूरा करेंगे। दोनों आरंभिक मिशनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गगनयान रॉकेट उसी रास्ते से सुरक्षित लौट आए, जिस रास्ते से उसने उड़ान भरी थी। इसके बाद, अगले साल भारतीय मूल के यात्री को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। भारतीय नागरिक राकेश शर्मा पहले ही अंतरिक्ष में जा चुके हैं, लेकिन वह मिशन सोवियत रूस ने लॉन्च किया था, जबकि गगनयान एक भारतीय मिशन है। गगनयान मिशन आत्मनिर्भर भारत का सर्वोत्तम उदाहरण होगा। यह भारत की अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। इसरो ने अगले साल जून में चंद्रयान-3 मिशन को चंद्रमा पर लॉन्च करने की योजना भी बनायी है।
          सूर्य का अध्ययन करने के मिशन आदित्य एल-1 की तैयारी सुचारू रूप से चल रही है। यह अपनी तरह का पहला मिशन होगा, जिसमें सूर्य के वातावरण पर केंद्रित शोध और अध्ययन किया जाएगा। भारत की अंतरिक्ष यात्रा देर से शुरू हुई, क्योंकि जब तक देश ने इस सपने को देखना शुरू किया, संयुक्त राज्य अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ अपने नागरिकों को चंद्रमा पर उतारने की तैयारी कर रहे थे। वहीं स्पेस पर कार्य करने वाली आज इस क्षेत्र में 130 से अधिक स्टार्टअप हैं, और निजी क्षेत्र रॉकेट लॉन्च कर रहा है, जिससे अंतरिक्ष क्षेत्र को गति मिल रही है, और वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन और प्रतिष्ठा मिल रही है। बढ़ते वैज्ञानिक अनुसंधान और भारतीय वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम का परिचायक है कि इसरो सतत् अंतरिक्ष में नवीन कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

लेखक
पुखराज प्राज 
छत्तीसगढ़