(अभिव्यक्ति)
किसी भी नारी के जीवन का सबसे जादुई दिन वह दिन था जब वह माँ मनती है। जिस क्षण से वह मातृत्व काल में प्रवेश करती है,उस स्त्री का उद्देश्य अपने बच्चों को उसके पास मौजूद हर चीज से प्यार करना और उनकी रक्षा करना सिखाती है। लेकिन कुछ ऐसी भी स्त्रियां होती है जो किसी शारीरिक हार्मोंस या फिर किसी प्रकार के अक्षमता के कारण मां नहीं बन सकती है। उनके लिए सरोगेसी वरदान से कम नहीं है।
सरोगेसी में एक व्यक्ति किसी और के लिए बच्चे को जन्म देने और उसे जन्म देने के लिए सहमत होता है। बच्चे के जन्म के बाद, जन्म देने वाले माता-पिता इच्छित माता-पिता या माता-पिता को हिरासत और संरक्षकता देते हैं। सरोगेसी के जटिल कानूनी और चिकित्सीय कदम हैं जिन्हें पूरा किया जाना चाहिए। प्रक्रिया के बारे में जागरूक होना, पेशेवर सलाह लेना और सहायक नेटवर्क बनाना महत्वपूर्ण है।
सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला एक दंपति या दूसरी महिला के लिए या तो परोपकारी रूप से या वित्तीय लाभ के लिए गर्भावस्था को स्वीकार करती है। वह जन्म के समय बच्चे को त्यागने की प्रतिज्ञा करती है, जिसे कानूनी मां बनने वाली महिला द्वारा अपनाया जाना है। महिला वाहक, सरोगेट मदर, मैटरनिटी सब्स्टीट्यूट, प्रेग्नेंसी एग्रीमेंट, दूसरे के लिए प्रेग्नेंसी, यूटरस लोकेशन, डेलिगेशन प्रेग्नेंसी, सरोगेट मदरहुड, और दूसरे के लिए गेस्टेशन सभी इस प्रथा को दर्शाने वाली अभिव्यक्तियाँ हैं।
वैधानिक रूप से सरोगेसी को 1976 में वकील नोएल कीन ने पहली कानूनी सरोगेसी व्यवस्था बनाई। 1978 को पहले टेस्ट-ट्यूब बेबी, लुईस जॉय ब्राउन का जन्म हुआ। वहीं सन् 1980 पहली सशुल्क सरोगेसी व्यवस्था हुई। 1985 में पहली सफल जेस्टेशनल सरोगेसी हुई। इसी दौर में सन् 1985-1986 में एक महिला ने पहली सफल गर्भकालीन सरोगेट गर्भावस्था की। 1986 - मेलिसा स्टर्न, जिसे बेबी एम के रूप में जाना जाता है, का जन्म अमेरिका में हुआ था। सरोगेट और जैविक मां, मैरी बेथ व्हाइटहेड, ने उस जोड़े को मेलिसा की परवरिश में देने से इनकार कर दिया। जिसके साथ उसने सरोगेसी समझौता किया था।
बात करें भारतवर्ष में 2016 के बाद सरोगेसी पर एक्ट लागु हुए। लेकिन जबरन और व्यापारिक दृष्टिकोण से सरोगेसी के लिए युवतियों को बहला-फुसला कर या ह्यूमन ट्रैफिंग के माध्यम से कॉमर्शियल सरोगेसी बढ़ने लगी थी। जहां सरोगेट बच्चे को जन्म देने के लिए, चिकित्सा पेशेवर अनुशंसा करते हैं कि आपके पास पिछले 5 से अधिक गर्भधारण न हों। इसी तरह, गर्भावस्था के बाद जो सरोगेट का छठा जन्म होगा, कई महिलाओं को फिर से सरोगेट बनने के लिए मंजूरी नहीं दी जाएगी। लेकिन इन नियमों को ताक में रखकर सेरोगेट बनाने की प्रक्रिया में अपराधिक बोध के देखते हुए। इसे प्रतिबंधित कर दिया गया।
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के साथ, भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह केवल 'परोपकारी सरोगेसी'(निस्वार्थ किया गया सेरोगेसी ) की अनुमति देता है, जहां चिकित्सा व्यय और बीमा के अलावा सरोगेट मां को कोई मौद्रिक मुआवजा नहीं मिलता है।
भारत अंतरराष्ट्रीय सरोगेसी के लिए सबसे लोकप्रिय स्थलों में से एक बन गया है, जहां यह उद्योग हर साल डॉलर 1 बिलियन से अधिक की कमाई करता है। 2018 के सरकारी आंकड़ों का अनुमान है कि, उस वर्ष पैदा हुए सरोगेट शिशुओं में से 80 प्रतिशत शिशु विदेशी जोड़ों के ही थे। लाभ के लिए किया गया सरोगेसी भारत सहित कनाडा, ब्रिटेन, डेनमार्क, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया आदि में प्रतिबंधित है। लेकिन बड़ा प्रश्न यह भी है की जो परोपकार की दृष्टि से सरोगेसी के लिए तैयार होते है, क्या उनके लिए जरूरी मापदंड पालन किये जाते हैं अथवा नहीं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़