Friday, March 1, 2019

क्या बनना था और क्या बनते जा रहे हो- by ✍प्राज


ओह्ह...हो..हो... गज़ब चीज याद आया...! कल की बात है,मै और तन्हाईं दोनो बैठे थे,तभी मन में खलल का आगमन विचारों के अतिथि स्वागत् के साथ हुआ। एक विचार आया कि- "आखिर, सोशल मीडिया और लाईव चैट्स, विडियोज साईट्स की जरूरत क्या है?" और इस विचार का खंडन भी मन में स्वतः ही ज्वार के बाद जैसे भांटा समुद्रिक लहर को पीछे खींच लेती है वैसे ही विचार आया, २१वी सदी है सरकार...और डीजिटल युग के ये नव अनुप्रयोग है। जिसके कारण ही तो विश्व एक छोटे डीजिटल ग्राम के रूप में संकुचित हो रहा है। सूचनाओं का दौर भी तेजी से हो रहा है। लोगों के बीच डीजिटलीय संबंधता के कारण विचारों,अनुसंधानों,भावनाओं,व्यवहारों और अन्य मानस जीविय प्रकल्पों का वितरण कर पा रहे हैं। सच में डीजिटल सेवाओं के बढ़ते अनुप्रयोगों ने विश्व को सूचना के प्रकाशन, प्रचार और प्रसार के लिए क्षणिक समय से भी कम वक्त पर रख ला खड़ा किया है। सच में मेरा मन भी कभी-कभी गलत सोच लेता है, ये सोचकर मैने विचारों के मेंघों को बौधिक दबाव में परिवर्तित कर दिया।
          लेकिन कहते हैं ना मनुष्य का नेचुरल स्वभाव है कि जब तक किसी विषय का उधेड़ बून ना करे तब तक मन नहीं भरता। सौभाग्य से मैं भी मानव हूँ,तो फिर से एक विचार दूसरें ऐंगल से मेरे मन:पटल पर दस्तक दी। कहा - "ठक...ठक...ठक... पगले पॉजिटिवीटी बड़ी सोच लिये मेरे मित अब थोड़ा नेगेटीव होके देखें?"
                यकायक एक विडियो शेयरिंग साईट पर एक होमोसेपियंस बड़े गज़ब तरिके से विडियो क्लिपिंग के प्रस्तुतीकरण का जिक्र जरूर करूगाँ। भगवान जाने उस प्राणी के अंदर कौन सी आतताईशक्ति प्रवेश कर गई जो उल-जुलूल तरिके से नृत्य-गान कर रही थी। ऐसे ही दूसरे विडियों में अश्लिल शब्दों(गालियाँ) को संगीत बद्ध कर वहां कई प्राणी लिप्सिंग करके पोस्ट कर रहे थे। ऐसे कई नमुने हैं जिनका ऐनालिसिस कर सोशल मिडिया के हृदय पर जमें समाज विरोधी तथ्यों को निकाल कर जाँच किया जाये तो पता चलेगा कि.. ये समाज को बीमार करने के लिए काफी हैं। पॉपुलारिटी के लिए नग्नता की ओर अग्रसर युवाओं को कौन संभालेगा क्या पता?? क्या पॉपुलारिटी के लिए नैतिक मुल्यों की होलीकरण क्या सहीं है,जाने कौन सोचेगा???
और तो और ऐसे महान वैज्ञानिक भी हो रहे हैं जो फेंक न्यूज और फेंक मोवमेंट के जनक बनने में कोई कोताही नही बरतते, ये तो जैसे भ्रमक प्रचारकों के लिए सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है। मेरा उद्देश्य ये नहीं है कि मै किसी वर्ण,वर्ग,समुह या विशेष लक्षित तर्क पर कोई विवाद खड़ा करना है। हां पर जिस तेजी से युवावर्ग इंटरनेट,अश्लिलता,अनैतिक व्यवहार और क्षणिक सुख लोलुप्ता जल्द ही युवा पीढ़ी को मनोरोगी और मानव सभ्यता को दुषित करके रख देगा।
      सोशल मीडिया के कई अच्छे उपयोग हैं। कई उदाहरण जो समाज के कल्याण और उत्थान में सहायक है। पर अनुचित उपयोग केवल और केवल सभ्यता ह्रासक बन कर परीणाम प्रदर्शित करेगा। युवा पीढ़ी को इस विषय में आत्ममंथन करना अति आवश्यक है। सोचिएगा जरूर
                                  _✍लेखक
                           पुखराज यादव "प्राज"
                                    महासमुन्द
                               9977330179