मुझे भी वो खोजता होगा,
कोई तो.. ऐसा वेत्ता होगा।
मैं..,शायद अकेला ही पर,
वो पग चिन्हों के पीछे-२,
पांव रखता...बढ़ता होगा।
कितने हैं सामाजिक पतंग,
कितने हैं मांझों के फैले तरंग।
कितनें है हाथों ढील डोर संग,
वो भी इन्हीं में उलझा होगा।
जाने वो, मुझे ढूढ़ता भी होगा?
वर्ण-वर्ण और वर्णों में गण,
जलीय जाल सा फांस घनन।
बेमतलबी विधान भरे संघन।
कहीं वो भी इन्हीं में हनन सा,
होकर टूट फूट में कटता होगा।
राह वहीं है मगर बाट का ठेका,
सोचें मन मेरा,तू काहे लिया होगा?
वर्णों के संरक्षण की पिचकारी,
आखिर किसने मार दिया होगा???
"मै" क्या कोई शब्द नहीं जो तूने,
सामाजिक विविधता गढ़ा होगा??
जाने कौन, मैं को खोजता होगा??
✍......प्राज.......
संस्थापक- काव्यांजलि.कॉम Justonmood.blogspot.com