Thursday, November 29, 2018

इतनी रात को कहां चली (कहानी) by Pukhraj Yadav "Pukkhu"




रात को यही कोई 11 से 12 बजे का वक्त था,अमावश की रात थी... मै और कोई और बंदा था साथ में.....हम दोनो तालाब के पास थे...! उस लड़के ने अपने महिला मित्र (गर्लफ्रेंड) को रात में मिलने बुलवाया था..! उसी के इंतजार में हम बैठे थे। अमावश की रात,ऊपर से कुत्तों की रोने वाली आवाज...जस्ट कुछ दूर में सियारों की भी आवाज गांव की ओर दौड़ती हुई प्रतित हो रही थी। तलाब के उस पार कोई हलचल सी प्रतित हुई, मुझे लगा...उस बंदे की फ्रेंड़ आ रही हैं। मैने कहा- "देख भाई तेरी वाली आ रही है।"

_ "कहाँ देख लिया??"

_ "घोंचूँ, सामने देख तालाब के उस पार..."

_ "पागल है क्या उसका घर ना बेटा,इधर है उधर से काहे आएगी वो बोल.."

सच में लेकिन कोई ना कोई तो था, मैने ऊंगली का पॉईंट करके उसे दिखाया कि तालाब के उस पार कोई है..! हमने सोचा, इतनी रात को कौन हो सकता है? हम दोनो ने देखा कोई लेडिस थी...लेकिन वो रूक ही नहीं रही थी हाथ में शायद कोई समान था। मैने उस लड़के से कहा- "भाई वो,लेडिस इतनी रात में क्या करने तालाब आई है?"

वो बोला- "बेटा वो तालाब आई नहीं है, कहीं और जा रहीं है...!"

हम दोनो के दिमाग में जेम्स बॉण्ड के मूवी की धून टंग-ट्रंग-ट्रेंगरंग चलने लगा। मेरे मष्तिष्क में नैतिक मुल्य ने दस्तक दिया कि किसी अबला(नारी) का पीछा करना या सोचना गलत है। मेरे कदम जैसे शुन्य हो गए थे वहीं रूक गया, तभी मेरो साथ वाले बंदे ने कहा- "लगता है इसकी भी किसी से सैटिंग है भाई,अपनी वाली तो आ नहीं रही है....चल देखते है ये किसी रात को रंगीन कर रही है।"

जैसे ही ये शब्द मैने उसके मूह से सूने की किसी से मिलने जा रही है, मेरे नैतिक मुल्य का जैसे गला ही घूट गया। हम दोनो तालाब के पार से नीचे खेतों की तरफ से पीछा करने लगे। वो लगातार तेज चल रही थी हम दोनो भी तो बिलकुल छड़े थे, कभी दौड़ते तो पैर की आवाज दबाने के लिए फिर स्पीड कम करते...अर्रे...अर्रे...अर्रे वो लेडिस तो रूक ही नहीं रहीं, आधा मील चला दी हमें वो कहाँ जा रही है ये मन में चल रहा था। 

_" ओए सून ये रास्ता तो नदी के तरफ जाता है ना"

_ "बेटा वो नदीं के तरफ नहीं नदी के पास जो मसान गड्ढ़ा है उधर जाता है।"

_ " अबे तो ये ऊधर क्यों?? जा रही है बे??"

_ "ज्यादा टैं- टैं मत कर बस फॉलो करते हैं...."

नदी के पास मशान गड्ढा यानी श्मशान था, हम कुछ ही दूर थे... आवारा कुत्तों की रोने की आवाज सूनाई दे रहा था। मैने कहा- "जलना बे वापस चलते है।"

_ "साले डरपोकिये कहीं का, चुपचाप चल देखतें हैं क्या माजरा हैं।"

वो लेडिस जैसे ही श्मशान के पास पहूची वो तेज दौड़ने लगी...हमने सामने देखा श्मशान पे जैसे कोई लाईट सो चल रहा हो। ध्यान से देखे तो हम दोनो सन्न हो गए, ये अमावश की रात को काली शक्तियों का रात क्यों कहते हैं अब समझ आ गया...12-13 की संख्या में महिलाएं थी, जिनके खूले बाल और साड़ी का पल्लू कमर कंधे पर न जाकर कमर पर ही लपेटी हुई, अजीब सी बोली में मंत्रोत्चारण कर रही थी। वो जमीन से एक मीटर हवा में थी, कोई काले रंग का चीज था जिस पर खड़ी थी, जैसे मंत्र बोलती और लार टपकता वो भंग करके ज्वाला देती...। बंगाबंग, लगातार वो महिलाएं झूप रही थी। श्मशान के एक-एक मठ पर हवा में गोल-गोल झूपते हुए, खूले बाल और हींहींही.....हहरररहीं की आवाज करती चक्कर लगाएं जा रहीं थीं।

      हम दोनो के हलक से थुंक भी नीचे ना उतर रही थी। जिस लेडिस के पीछे हम आए थे वो भी धूनकी लगाने लगी। हाथ फैलाए, बाल खोलने लगी, वो एक मठ के ऊपर खड़ी हो गई। एक काली परछाईं दिखाई. दी जो उस लेडिस के गोल-गोल चक्कर लगा रही थी...!तभी लगा जैसे किसी ने उस महिला को जोर से मारा हो एक आवाज आई चमाट की वो चींखी और जोर से चिल्लाई.... वो काली परछाई मशान था जो इस जादूहरनी(टोन्ही) महिलाओं पे प्रवेश करता है। सूना था कहीं, आज देख रहे हैं। वो धूपने लगी, शायद मशान उसे देरी से आने की सजा दे रहा था। तभी उन सभी महिलाओं में - से सबसे सिनियर थी वो बोली - "हे लकालका लका..... कहां थी तू री, जानती है ना, शैतान को देरी पसंद नहीं।"

_ "हे...शैतान....हे मरी मशान ! मै आपका ही काम कर रही थी।"( वो लेडिस जिसके पीछे हम गए थे वो झूपते हुए बोली)

_ "क्या काम.....?"

_ "शैतान की जय हो, दो जवान लड़कों को लाई हूँ शैतान राजा। बली स्वीकार करों दोनो छूकर हमें देख हैं, उस पेड़ के पीछे..."(ऐसा कहते हुए उस महिला ने हमारी तरफ इशारा किया)

__हम दोनो सन्न थे। मुझे लगा था मेरे साथ जो बंदा है वो हिम्मत वाला है, लेकिन जैसे हमारी बली देने की बात सूनाई दी वो बंदा डर के मारे वहीं बेहोश हो गया। वहीं सारी चुडैल अब हमारी तरफ आने लगी, मैने देखा जिससे वो हवा में उड़ती हैं वो मशान है, मशान के पीठ पर खड़ी  होकर उसके हांथ को उल्टा पकड़े रहती हैं। मैने उन चुडैलों को अपनी तरफ आते देख आँव देखा ना ताँव.....नदी तो वैसी भी सूखी थी उधर ही छलांग लगा दी। भागते-भागते पीछे पलटकर देखा मेरे साथ जो बंदा वहां बेहोश था उसकी आत्मा को शैतान पी रहा था और सारी महिलाएं उस लड़के का खून पी रही थी। मै भाग ही रहा था की लगभग 50% ही नदी पर किया था कि वो सारी महिलाएं मेरे तरफ आने लगी.... मुह से कुछ मंतर पढ़ी फिर हवा में कुछ फेंकी, मेरे पैर के सामने एक आग का गोला गिरा, मेरे पैर में आग लगी...जींस जल रहा था उसकी जलन मेरे पैर पर महसुस हो रही थी। मै रूका ही नहीं नदी के दूसरे छोर पर पहूच गया। सामने एक बोरवेल के लिए कमरा था.... मै तेज दौड़ा.... वो टोन्हियों का ग्रूप मेरे करीब ही पहूच गया। मै बोरवेल के रूम का गेट को खोला अंदर दाखिल हुआ। गेट बंद किया तेज सांसों के बीच आँखे भी खोला। तभी.......
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नज़र सीधे सिलिंग पर गई, पँखा चल रहा था। सामने दीवार की ओर देखा एलईडी टीवी चालू है, बाजू में टेबल पर सोनू और मेरी तस्वीर वाली फ्रेंम है। मेरे बाजू में सोनू सोई थी।उसने पूछा - "क्या हुआ जान, फिर से कोई बुरा सपना देखे क्या??"

मैनें उसे बाहों में भर लिया। माथे पर किस्सी करते हुए बोला- "कुछ नही जाना...बस ख़्वाब था।"

फिर अपनी सोनू को आगोश में लिये फिर सो गया। हां पर नींद नहीं आई विचार आया- "कल शाम को इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे और ये ख्वाब आया । हो सकता है ऐसे ही जो लोग अफवाह उड़ाते है कि टोन्ही है भूत प्रेत ये है, वो है, वो भी ऐसा ही कुछ सपने में देखते हों जो समाज के बीच शब्दों के चाशनी में लपेट कर परोस दिये गएे हो। जो अनुश्रुतियां बन गई हो और धीरे-धीरे यह अंधविश्वास का रूप धर लिया हो। सोचिएगा जरूर....

            लेखक
    पुखराज यादव "पुक्खू"
        9977330179
     pukkhu007@gmail.com


*(यह कहानी काल्पनिक है। किसी भी समुदाय या वर्ग की भावना को ठेश पहुचाने इसका उद्देश्य नहीं है। इसका किसी भी तथ्य, स्थान या नाम या घटना से कोई संबंध नहीं है। ऐसा होता है तो यह संयोग मात्र है।)*

          पुखराज यादव(लेखक)