Wednesday, October 31, 2018

कभी भूलना नहीं____by Pukhraj Yadav "Raj"



      *(सायली विधा)*

ख़्वाब,
बनकर सही,
मगर बात तो,
होने लगी,
खुलकर।

हमने,
ना सोचा,
मिल जाएंगे युँ,
जैसे शरबत,
घुलकर।

और,
कई परवान,
चढ़ चलेंगे साथी,
प्राथम्य हो,
बढ़कर।

आशिक,
आवारा और,
जाने क्या-क्या?
नवाजे नाम,
तूलकर।

तेरे,
शहर में,
आया,मिल लें,
गिले-सिकवे,
भूलकर।

बड़े,
शब्दों से,
आसाँ होने लगा,
शाम सा,
ढ़लकर।

फिर,
याद तेरी,
कहने लगी आकर,
भूलना नहीं,
भूलकर।

©पुखराज यादव"राज"
pukkhu007@gmail.com