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कुछ तो रहस्य है तुममें,
कुछ तो हास्य है तुममें?
खामोश रहती मगर हसी,
बहूत राज छूपें है तुममें।
कभी मुस्कुराती कभी लजाती,
कभी शैतानियां,या नादानियाँ
लाजवाब बातों से भरी तुम ना,
कभी करती रहती तुम मनमानियाँ।
कभी हाथ पकड़ लिए चलती,
कभी जला कर संग,दीये चलती।
कभी रेत पर बनाती मरीचिका,
कभी बन जाती तुम मेरी प्रेमिका।
हर सफर पर साथ चलते,
दोनों डगमगाते और संभलते
बस प्यारी सी तुम ख्वाब़ हो?
तुम मेरी किताब हो,किताब हो!!
*©पुखराज यादव "राज"*
pukkhu007@gmail.com
कुछ तो रहस्य है तुममें,
कुछ तो हास्य है तुममें?
खामोश रहती मगर हसी,
बहूत राज छूपें है तुममें।
कभी मुस्कुराती कभी लजाती,
कभी शैतानियां,या नादानियाँ
लाजवाब बातों से भरी तुम ना,
कभी करती रहती तुम मनमानियाँ।
कभी हाथ पकड़ लिए चलती,
कभी जला कर संग,दीये चलती।
कभी रेत पर बनाती मरीचिका,
कभी बन जाती तुम मेरी प्रेमिका।
हर सफर पर साथ चलते,
दोनों डगमगाते और संभलते
बस प्यारी सी तुम ख्वाब़ हो?
तुम मेरी किताब हो,किताब हो!!
*©पुखराज यादव "राज"*
pukkhu007@gmail.com