Wednesday, October 31, 2018

पतन की ओर.....by Poet Pukhraj Yadav "Raj"



क्या समझूँ??
        या ना समझूं??
दुनिया को??, पर..
        मै भी तो हिस्सा हुँ?
जो है गमित क्षण में,
        उसका थोड़ा किस्सा हूँ।
लाख सवाल खड़े,
        मानवता के प्रतिक पे?
या हो कर्तव्य के,
        मूल्यों के नजदिक पे?
हर मानव मानो भूला रे,
        नैतिक पथ का झूला रे..
पर किसे पड़ी है सबकी,
        सब अपने में,सब भूला रे।
ऐब की जैसे होड़ हो,
       तैयार सारे लेकर खटोला रे।
मैल ही मैल भरा मन,
       किसने कितनाअंदर टटोला रे।
और जनक है अपराधों के,
       मन में बैठा पहने भ्रमक चोला रे।
और पता नहीं तुम आओगे,
       मेरे विचारों सटीक भवर पर....
या हो जाओगे तटस्थ बन,
       उफनते देख तपित लहर पर....!
क्या समझू????
          या ना समझूँ???
दुनिया को??,पर
          मै भी तो हिस्सा हूँ.....!!!!
          मै भी तो हिस्सा हूँ.....!!!!

       ©पुखराज यादव "राज"
     pukkhu007@gmail.com