______///❤ये लब कह बैठेंगे///______
रोको ना आज,कुछ इस कदर,
तेरे सीने से लग जाएंगे।
की लबों से लब टकराए,
कुछ तेरे नशे में खो जाएंगे।
युँ..असर इँश्किया..
आज हो सकता है।
बस भी करो.....
लब ये कह बैठेंगे.......!
हो सकता है लहराकर,
टकराएंगी शरारतें तेरी...
मेरे दिल से हू-ब-हू जैसे लहर..
हो सकता है तेरी छूअन हो,
होटो के दरमियां थोड़ी ठहर-ठहर।
या हो सकता है...
लबों पर लब कुछ इस हाल में हों,
की लबों से पार बैरन हवा लैटे...
और आह की आवाज...
हलक पर चुप्पी दबाए बैठी मुस्कुराए...
हो सकता है...आप तो कभी हम...
इक दूजे को सताएंगे...
हो सकता है टकराकर...
दोनो के लब मुस्कुराएंगे।
हो सकता है....
इतना ना कर अए हसी,
ये लब कह बैठेंगे.....।
समंदर की लहरों सी,
या रेतिली पवन की चाल सी,
या फिर आकाशगंगा सी,
मिलन को करती पड़ताल सी,
इन लबों को पास आ जाने दे,
थोड़ी तड़पन है और इश्क की तपन में,
आज भागीरथ सा दोनो लबो के बीच,
सरसरी सी लहर फूट जाने दे।
हो सकता है...लाज पर्दों के बार निकल बैठेंगे,
आज सारी हद हम,तोड़ बैठेंगे।
इतना ना धड़क दिल कि...मै थराथरा उठूँ,
बहकू और लड़खड़ा उठूँ....
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
और तू...चुम्बक मै अयस्क,
और आकर्षण प्रेम बन सज लेंगे।
इक मीठी चूभन,छूवन से दोनो में,
तन,मन में ज्वार सा भर देंगे।
करीब इतना बढ़ों की एक बंधन सा,
लब आपस में अद्वितीय गढ़ लेंगे।
फिर लब-लब में खोकर,
कुछ तो हलचल सा कर देंगें...
और बढ़े ये तेरा शुरूर-ए-तलब,
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
_*पुखराज यादव"पुक्खू"*
Pukkhu007@gmail.com
रोको ना आज,कुछ इस कदर,
तेरे सीने से लग जाएंगे।
की लबों से लब टकराए,
कुछ तेरे नशे में खो जाएंगे।
युँ..असर इँश्किया..
आज हो सकता है।
बस भी करो.....
लब ये कह बैठेंगे.......!
हो सकता है लहराकर,
टकराएंगी शरारतें तेरी...
मेरे दिल से हू-ब-हू जैसे लहर..
हो सकता है तेरी छूअन हो,
होटो के दरमियां थोड़ी ठहर-ठहर।
या हो सकता है...
लबों पर लब कुछ इस हाल में हों,
की लबों से पार बैरन हवा लैटे...
और आह की आवाज...
हलक पर चुप्पी दबाए बैठी मुस्कुराए...
हो सकता है...आप तो कभी हम...
इक दूजे को सताएंगे...
हो सकता है टकराकर...
दोनो के लब मुस्कुराएंगे।
हो सकता है....
इतना ना कर अए हसी,
ये लब कह बैठेंगे.....।
समंदर की लहरों सी,
या रेतिली पवन की चाल सी,
या फिर आकाशगंगा सी,
मिलन को करती पड़ताल सी,
इन लबों को पास आ जाने दे,
थोड़ी तड़पन है और इश्क की तपन में,
आज भागीरथ सा दोनो लबो के बीच,
सरसरी सी लहर फूट जाने दे।
हो सकता है...लाज पर्दों के बार निकल बैठेंगे,
आज सारी हद हम,तोड़ बैठेंगे।
इतना ना धड़क दिल कि...मै थराथरा उठूँ,
बहकू और लड़खड़ा उठूँ....
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
और तू...चुम्बक मै अयस्क,
और आकर्षण प्रेम बन सज लेंगे।
इक मीठी चूभन,छूवन से दोनो में,
तन,मन में ज्वार सा भर देंगे।
करीब इतना बढ़ों की एक बंधन सा,
लब आपस में अद्वितीय गढ़ लेंगे।
फिर लब-लब में खोकर,
कुछ तो हलचल सा कर देंगें...
और बढ़े ये तेरा शुरूर-ए-तलब,
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
हो सकता है ये लब कह बैठेंगे।
_*पुखराज यादव"पुक्खू"*
Pukkhu007@gmail.com