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Sunday, September 9, 2018

सफर है....

ये जिंदगी,
ये सफर...।
बहूत है...,
चलते रहिए।

कई मोड़,
कई छांव,
कई पड़ाव,
सफर है...।

कल नहीं,
आज यहीं..!
गूजरे फिर,
बीता,सफर है।

बहुँत है और,
चुनौतियाँ....!
कई लहर है,
जैसे मोतियाँ।

चल निकले,
उस पार को।
ठहरे क्यो??,
बेकार को...!

तारीख वही,
पहचान नया!
घर वहीं है,
मेेहमान नया!

और,और नहीं,
ढ़लती ये शाम।
क्षण चार बस,
दूजा कर काम।

क्या मिला,
ये फिक्र नहीं।
क्या छोड़ना,
ये सोच ज़रा।

जाना दूर है,
पल-दो-पल,
तेरा-मेरा..
यहां सफर है।

बस सफर है,
बस सफर है।।

*✍🏻पुक्खू यदू*
      महासमुन्द