Thursday, November 3, 2016

Diwali Parw ki Sarthak jankari

पांच ज्ञानेन्द्रियों को ज्योतिपूर्ण करने का पांच दिवसीय पर्



'यत्र ब्रह्मांडे तत्र पिण्डे' के अनुसार जो कुछ बाहर है, वही मनुष्य के अंदर भी है । बाहर की सकारात्मकता एवं शक्ति को अपनाने के लिए उत्सव एवं पर्व-त्यौहार की परंपरा चली आ रही है ।
मनुष्य के जीवन को उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ निर्धारित करती हैं । 5 दिवसीय दिवाली में इन्हें ऊर्जायुक्त करने का भाव है । दिवस का अर्थ भी प्रकाश है । दिव् धातु से ही देवता शब्द बना । यानि जो प्रकाश दे, वह देवता और अंधकार दे, वह असुर ।
1- धनतेरस (धन्वन्तरि जयंती)- ज्ञानेन्द्रियों में प्रथम नासिका (नाक) लें तो इससे सबसे कीमती साँस ली जाती है । इसके बिना 3 मिनट व्यक्ति जी नहीं सकता । यानि यह एक धन है । योग तथा शुद्ध वातावरण में रहने का दिन ताकि धनुष के रूप में आन्तरिक जगत का मन स्वस्थ रहे।
2-छोटी दिवाली ( नरक चतुर्दशी)- नस-नाड़ियों के जाल से संचालित शरीर को तुलसीदास 'पँच रचित यह अधम शरीरा' कहते हैं । यानि नरक समान है । 10 इन्द्रियों और मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इन 4 भाव-तत्व मिलाकर 14 सर्किट से चलने वाले जीवन को आहार की शुध्दता से बेहतर किया जा सकता है । यह दूसरी ज्ञानेन्द्रिय जिह्वा को अनुकूल बनाने का दिवस । यानि सकारात्मक आहार ।
3-दिवाली : आँखें- दृष्टि की पवित्रता से आँखों में दिव्य-ज्योति उत्पन्न करने का पर्व।
4-गोवर्धनपूजा-कान : प्रलययुक्त वर्षा के दौरान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के सहारे मुकाबला किया । कृषि की भी रक्षा हुई । कटुता, कलुषता के शब्दवेधी वाणों की जीवन में जब गूँज होने लगे तो उन शब्दों से मन रूपी कृषि क्षेत्र की तबाही न हो, इसके लिए बुद्धि रूपी गोवर्धन को ज्ञान के सहारे संरक्षित करने का सन्देश ।
5-भाई-दूज- नख से शिख तक 5वीं ज्ञानेन्द्रिय बाह्य त्वचा और अंदर के हिस्से भाई बहन की तरह एक दूसरे का हित करते हैं । अतः स्पर्श का मन पर तत्काल असर पड़ता है । अतः इसे भी सकारात्मक करने का सन्देश.........